कारगिल का गुनहगार
मुशर्रफ अपने प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ को भी धोखा देने से बाज़ नहीं आए थे
मुशर्रफ ने जितना बड़ा धोखा दिया, उसकी किसी ने उम्मीद नहीं की थी
परवेज मुशर्रफ पाकिस्तान के पूर्व थल सेना प्रमुख, सैन्य तानाशाह, राष्ट्रपति ... के अलावा ऐसे व्यक्ति के तौर पर जाने जाएंगे, जिसने भारत के साथ शांति के महत्त्वपूर्ण प्रयासों को नाकाम कर दिया था। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जिस खुले दिल के साथ बस लेकर लाहौर गए, दोस्ती का हाथ बढ़ाया; मुशर्रफ ने उसके बदले कारगिल युद्ध छेड़ा, जिसमें हमारे कई सैनिक घायल हुए, वीरगति को प्राप्त हुए।
कारगिल की पहाड़ियों को खून से रंगने वाले मुशर्रफ की कहानी एक ऐसे शख्स का सफरनामा है, जो ज़िंदगीभर उस देश (भारत) की तबाही के ख्वाब देखता रहा, जिसने उसे जन्म दिया था; वह उस देश (पाकिस्तान) के कानून से बचता, भागता रहा, जिसकी रक्षा का वह सबसे बड़ा दावेदार था। जब उसने आखिरी सांस ली तो इनमें से कोई भी उसे मयस्सर नहीं हुआ।
तानाशाहों को इससे सबक लेना चाहिए, खासतौर से उन पाकिस्तानी फ़ौजी हुक्मरानों को, जिनका आज भी यही ख्वाब है कि किसी तरह भारत को नुकसान पहुंचाया जाए। वे 1947 से कश्मीर मांग रहे हैं। कश्मीर मांगते-मांगते आटा मांगने की नौबत आ गई! हमारे ऋषियों ने भारत को ज़मीन का टुकड़ा नहीं, बल्कि मां का दर्जा दिया है।
जिन्ना से लेकर ज़िया-उल हक़ और परवेज़ मुशर्रफ़ तक, इन सबकी ज़िंदगी इस बात का प्रमाण है कि जो भारत माता के टुकड़े करने की नीयत रखता है, उसका अंत भयानक होता है। पाकिस्तान के कई हुक्मरान यह मंसूबा लिए मर गए कि उन्हें भारत माता को, उसकी संतानों को लहूलुहान करना है।
अपने सीने में, ख़ासतौर से हिंदुओं के लिए नफ़रत का ज़हर लिए ये पाकिस्तानी यह सोचने की जहमत नहीं करते कि इन सबके बदले उन्हें क्या मिला! पाकिस्तान की धमकियों, युद्धों, आतंकवाद, घुसपैठ जैसी लाखों कोशिशों के बावजूद भारत मजबूती से आगे बढ़ रहा है। वह ब्रिटेन को पछाड़कर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है, जबकि पाकिस्तान में आटे के लिए हाहाकार मचा हुआ है।
जब अटलजी ने लाहौर में ऐतिहासिक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए थे तो एक उम्मीद जगी थी कि अब दोनों देशों के बीच संबंध सुधरेंगे, लेकिन मुशर्रफ ने जितना बड़ा धोखा दिया, उसकी किसी ने उम्मीद नहीं की थी। कारगिल युद्ध ने भारतवासियों के मन में यह बात अच्छी तरह से बैठा दी कि धोखा देना पाकिस्तान की फितरत में है; हम उसके साथ संबंध सुधारने की कितनी ही कोशिशें कर लें, बदले में धोखा ही मिलेगा।
मुशर्रफ अपने प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ को भी धोखा देने से बाज़ नहीं आए थे। मौका पाकर उनका ही तख्तापलट कर दिया था। आज पाकिस्तान जिस आतंकवाद और आर्थिक संकट की आग में झुलस रहा है, उसमें मुशर्रफ ने बड़ा हिस्सा डाला था, लेकिन इस पड़ोसी देश की जनता भारत और हिंदुओं से नफ़रत में इतनी आगे बढ़ गई है कि उसे तानाशाह और खुद की तबाही भी खुशी-खुशी कबूल हैं।
मुशर्रफ के बारे में मशहूर है कि वे सैन्य रणनीतियां बनाने में महारत रखते थे। हालांकि उनकी ये रणनीतियां कागजों तक ही कमाल दिखा सकती थीं। वे धरातल तक पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ देती थीं। मुशर्रफ ने थल सेना प्रमुख बनने से पहले ही कारगिल युद्ध की 'रणनीति' तैयार कर रखी थी, जो बाद में बुरी तरह विफल साबित हुई।
भारतीय सेना और खुफिया एजेंसियों ने जिस तरह उनके मंसूबों की पोल खोली, टेप जारी किए, सैन्य अभियान को अंजाम तक पहुंचाया, उसके आधार पर यह कहना अधिक उचित है कि मुशर्रफ एक अयोग्य सेना प्रमुख थे, जिन्होंने नफ़रत, अति-आत्मविश्वास और कुंठा के वशीभूत होकर न केवल शांति प्रयासों पर पानी फेरा, बल्कि उनके फैसलों के कारण कई लोगों को जान गंवानी पड़ी। हां, मुशर्रफ का एक कदम ऐसा था, जिसमें उन्हें पूरी तरह कामयाबी मिली। वह था- पाक में तख्तापलट, जिसके दुष्परिणाम उनका देश आज भी भुगत रहा है।
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