मोदी फिर जीत गए!
मोदी का गृहराज्य होने के कारण गुजरात चुनाव परिणाम को उनसे जोड़कर देखा जाना स्वाभाविक है
गुजरात चुनाव परिणाम प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता का टेस्ट थे
गुजरात विधानसभा चुनाव परिणाम ने भाजपा कार्यकर्ताओं को नई ऊर्जा दे दी है। हालांकि हिमाचल प्रदेश के नतीजे उनके अनुकूल नहीं आए। यहां कांग्रेस सफल रही, लेकिन देश-दुनिया की निगाहें हिमाचल से ज्यादा गुजरात पर थीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृहराज्य होने के कारण गुजरात चुनाव परिणाम को उनसे जोड़कर देखा जाना स्वाभाविक है।
अगर भाजपा प्रचंड बहुमत के साथ हिमाचल जीत जाती, लेकिन गुजरात में सत्ता गंवा देती तो गुजरात के नतीजे ही सबसे ज्यादा चर्चा में रहते और उन्हें इस रूप में भी प्रचारित किया जाता कि मोदी अपना जादू खो रहे हैं। गुरुवार शाम को जब स्थिति काफी हद तक स्पष्ट हो चुकी थी और टीवी स्टूडियो में बैठे बुद्धिजीवी यह मंथन करने में व्यस्त थे कि गुजरात में आखिर 'कौन' जीता तो इसी राज्य में एक ग्रामीण महिला ने संवाददाता के सवाल का जवाब देते हुए जो कहा, उस पर गौर किया जाना चाहिए। उसने कहा, 'गुजरात में मोदी जीत गए!'
वास्तव में गुजरात चुनाव परिणाम प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता का टेस्ट थे, जिनमें वे न केवल उत्तीर्ण हुए, बल्कि विशेष योग्यता के साथ प्रथम स्थान पर भी आए हैं। भाजपा को इस बार गुजरात में जो जनादेश मिला, वह अद्भुत है। पिछले विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद टीवी स्टूडियो में बुद्धिजीवी कह रहे थे कि 'अब भाजपा '99' के फेर में फंस गई है ... कांग्रेस उसके गले तक पहुंच गई है ... अगले चुनाव में बाजी पलट सकती है ... अब मोदी के लिए गुजरात जीतना उतना आसान नहीं रहेगा!' पांच साल बाद ये कयास ग़लत साबित हुए हैं।
गुजरात में भाजपा का संगठन, मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायक, कार्यकर्ता ... सब मैदान में थे, लेकिन हर किसी को लग रहा था कि यह चुनाव मोदी बनाम कांग्रेस है। मोदी के आलोचकों को भी यह स्वीकार करना होगा कि गुजरात की जनता उनके नाम पर वोट देती है, भले ही वे प्रधानमंत्री बनकर दिल्ली चले गए हों। अगर कांग्रेस पिछली बार की तुलना में अपने प्रदर्शन को थोड़ा और बेहतर कर लेती तो निश्चित रूप से हिमाचल की जीत के साथ यह 'सोने पर सुहागा' ही होती।
इस बार कांग्रेस ने गुजरात चुनाव परिणामों में जैसा निराशाजनक प्रदर्शन किया, उससे आश्चर्य भी होता है। कांग्रेस से इतने कमजोर प्रदर्शन की उम्मीद नहीं थी। एक ओर जहां भाजपा ने सीटों के पिछले रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए, दूसरी ओर कांग्रेस ने भी कमजोर प्रदर्शन का कीर्तिमान बना दिया। उसे आत्म-मंथन करना चाहिए कि भाजपा के ढाई दशक से ज्यादा समय के लगातार शासन में मतदाता हर बार उसे (कांग्रेस) क्यों नकार रहा है?
प्राय: इतनी लंबी अवधि में सत्ता-विरोधी लहर उत्पन्न हो जाती है, जिसका लाभ विपक्ष के सबसे बड़े दल को मिलता है; कांग्रेस यहां भी चूक गई। उसने साल 1985 में माधवसिंह सोलंकी के नेतृत्व में 149 सीटें जीतने का जो रिकॉर्ड बनाया था, मोदी लहर पर सवार भाजपा उससे कहीं ज्यादा आगे निकल चुकी है। गुजरात में कांग्रेस अपने लिए सबसे ज्यादा प्रतिकूल समय देख रही है, जहां वह 40 सीटें भी नहीं निकाल पाई। गुजरात चुनाव परिणाम के आंकड़े (जिनमें अभी थोड़ा परिवर्तन संभव है) भी बता रहे हैं कि इस बार मोदी ने जो चक्रव्यूह रचा, उससे पार पाना कांग्रेस के बड़े-बड़े धुरंधरों के बस की बात नहीं थी।
भाजपा यहां डाले गए कुल मतों का लगभग 52 प्रतिशत हिस्सा ले गई, जिसका सीधा-सीधा आशय है कि मतदाताओं का एक बड़ा तबका उसके पाले में आया है, उसके नेतृत्व पर विश्वास किया है। कांग्रेस लगभग 27 प्रतिशत मत पाने में सफल हुई, लेकिन उसके देखते ही देखते आम आदमी पार्टी (आप) 12 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा ले गई। ये दोनों 39 प्रतिशत के बराबर बैठते हैं।
अगर कांग्रेस 35 प्रतिशत लेने में भी सफल हो जाती तो उसका प्रदर्शन बहुत बेहतर होता। 'आप' ने दिल्ली में तो कांग्रेस का सफाया किया ही, अब गुजरात में भी उसके समीकरण बिगाड़ने की स्थिति में आ गई है, जिसके लिए उसे भविष्य में सचेत रहना होगा।
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