सम्यक दर्शन को निर्मल करता है ज्ञान

सम्यक दर्शन को निर्मल करता है ज्ञान

कोयंबटूर/दक्षिण भारत। जैनाचार्यश्री रत्नसेनसूरीश्‍वरजी की निश्रा में राजस्थान निवास पर शुक्रवार को ज्ञान पंचमी की आराधना एवं देव वंदन विधि हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुई। आयोजित कार्यक्रम में आचार्यश्री ने ज्ञान का महत्त्व बताते हुए कहा कि सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चारित्र रूपी रत्नत्रयी रूप इस मार्ग में सम्यक ज्ञान केन्द्र में है। जिस प्रकार दो कमरों के बीच में रखा हुआ दीपक दोनों कमरों को प्रकाशित करता है, उसी प्रकार यह ज्ञान, सम्यग दर्शन को भी निर्मल करता है और चारित्र की प्राप्ति का भी कारण बनता है। ज्यों ज्यों तारक अरिहंत परमात्मा द्वारा निर्दिष्ट जीव आदि नौ तत्वों का गहन अध्ययन किया जाता है, त्यों त्यों जिनेश्‍वर परमात्मा के वचनों पर श्रद्धा दृढ़ होती है और इसके साथ विरति अर्थात् चारित्र के परिणाम भी पैदा होते हैं। ज्ञानपंचमी का दिन महामंगलकारी दिन होता है। इस दिन सम्यक ज्ञान की आराधना-उपासना करनी चाहिए। ज्ञान की आराधना हेतु शक्य हो तो पौषधव्रत के साथ उपवास करना चाहिए। केवलज्ञान, पूर्ण ज्ञान होने पर भी उसका स्वतंत्र रूप से दान नहीं हो सकता है। दान मात्र श्रुतज्ञान का ही हो सकता है। तीर्थंकर परमात्मा अपनी वाणी द्वारा जो उपदेश देते हैं, वह द्रव्यश्रुत कहलाता है। प्रभु के मुख से इस द्रव्यश्रुत के श्रवण से सुनने वालों के श्रुतज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम पैदा होता है। वह क्षयोपशम ही भावश्रुत कहलाता है।

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