बर्बरतापूर्ण हमला
बर्बरतापूर्ण हमला
जिस तरह से श्रीनगर की प्रसिद्ध जामा मस्जिद के बाहर जम्मू-कश्मीर पुलिस के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी मोहम्मद अयूब पंडित को भी़ड के आक्रोश का सामना करना प़डा और जिस तरह से उन्हें पीट-पीट कर मौत के घाट उतार दिया गया उससे कश्मीर में पुलिस और अन्य सुरक्षा बलों पर किये जा रहे अमानवीय हमलों की समस्या फिर एक बार उभरकर सामने आती दिख रही है। इंसानियत पर सवाल उठाने वाली इस घटना में मस्जिद परिसर के पास पुलिस के उप अधीक्षक की निर्मम हत्या को रमजान के पवित्र महीने के दौरान अंजाम दिया गया। शब-ए-कद्र के चलते मौ़का ए वारदात पर मस्जिद में इबादत के लिए आये श्रद्धालुओं की भारी भी़ड भी थी। अयूब पंडित घटना के समय काम पर तैनात थे, लेकिन सादी वर्दी में। जिस तरह से कुछ खबरों में कहा गया है कि संभवत: उन्हें जासूस समझ कर भी़ड ने उन पर हमला किया परंतु ऐसे बर्बरता भरे बर्ताव की क्या आवश्यकता थी ? सरकार को इस बात का अभी तक पता नहीं कि कहीं भी़ड को उकसाया तो नहीं जा रहा था ? सवाल तो यह भी उठता है कि इबादत करने आए लोगों की भी़ड में से कोई भी इस बर्बरता को रोकने के लिए आगे क्यों नहीं आया ? जहाँ लंदन में कुछ दिनों पहले मस्जिद से निकल रहे लोगों पर हमला करने वाले को मस्जिद के इमाम ने भी़ड से बचाकर पुलिस के हवाले किया था वहीं दूसरी ओर श्रीनगर के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी पर भी़ड ने इसलिए हमला कर दिया क्योंकि वह अपने ़फोन पर कैमरा चालू कर गतिविधि पर निगरानी कर रहे थे। भी़ड द्वारा दिखाई गई बर्बरता अमानवीय है और निश्चित रूप से कोई भी दलील इस गंभीर घटना से ध्यान नहीं भटका सकती है। जामा मस्जिद में घटना के समय हुर्रियत कांफ्रेंस के नेता मीरवाइज मौलवी उमर फारूक अपने समर्थकों संग मौजूद थे। शर्म की बात है कि उन्होंने इस बर्बरता को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया और न ही उनके समर्थकों ने कोई प्रयास किया। जिस जगह अयूब को घेरा गया और जिस तरह से उनकी निर्मम हत्या की गई, उससे ऐसा भी लगता है कि जानबूझकर अयूब को निशाना बनाया गया हो। अयूब के सुरक्षाकर्मियों की लाचारी पर भी सवाल उठाए जा सकते हैं। अयूब के सुरक्षाकर्मियों को अपने अधिकारी की रक्षा करने के लिए पुलिस कंट्रोल रूम या चौकी तक खबर पहुंचानी चाहिए थी। ऐसा क्यों नहीं हुआ ? और अगर खबर पहुंचाई गई तो फिर वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की सुरक्षा के लिए घटना स्थल पर समय रहते अतिरिक्त पुलिस बल क्यों नहीं भेजा गया? पत्थरबाजों ने जिस तरह का कश्मीर में उधम मचा रखा है उससे तो ऐसा ही लगता है कि अयूब को भी जानबूझकर निशाना बनाया गया। जिस तरह के हालात कश्मीर में बन चुके हैं उन पर काबू पाने के लिए केंद्र सरकार को सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है। अलगाववादी नेताओं के खिलाफ भी क़डी कारवाही करने की जरूरत है। ऐसे नेताओं को भारत सुरक्षा मुहैया करा रहा है और वे पाकिस्तान की जुबान ही बोलते ऩजर आते हैं। केंद्र सरकार को कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मु़फ्ती के उस बयान पर गौर करने की जरुरत है कि अगर पुलिस वाले अपना संयम खो देंगे तो बहुत ब़डी समस्या ख़डी हो जाएगी। मु़फ्ती के बयान से समस्या का विकराल रूप सामने आता है। जिस तरह से कश्मीर में स्थानीय सुरक्षा कर्मियों के खिलाफ हमले हो रहे हैं उसके बाद अगर कोई सुरक्षाकर्मी ने अपनी जान बचने के लिए कई उपद्रवियों को मार डाले तो इसका मलाल किसी को नहीं होना चाहिए।