ऑनलाइन की धूम के बीच भी कम नहीं हुई है किताबों की महक

ऑनलाइन की धूम के बीच भी कम नहीं हुई है किताबों की महक

किताबें

नई दिल्ली/भाषा। ऑनलाइन बढ़ती किताबों की बिक्री, किंडल और ई-रीडर्स की तेजी से फैलती दुनिया में भी किताबों की महक कम नहीं हुई है। अभी भी लोग नई छपी किताबों से आती स्याही की महक, किताब को छूने से होने वाले अहसास, हाथों में कागज का खुरदरापन और खरीदने से पहले किताब के बारे में पूछताछ/चर्चा पाठकों को किताबों की दुकान तक खींच ले जा रही है।

Dakshin Bharat at Google News
भले ही लोगों को लगता हो कि ऑनलाइन शॉपिंग साइटों ने किताबों की दुकानों की बिक्री घटा दी है, लेकिन ऐसा नहीं है। दिल्ली के मशहूर किताब की दुकानों के मालिकों का कहना है कि उनका व्यवसाय भी बढ़ा है, और वह न सिर्फ लाभ कमा रहे हैं बल्कि ऑनलाइन मंचों के मुकाबले पाठकों को बेहद निजी और अच्छे अनुभव भी दे रहे हैं।

दिल्ली की मशहूर किताब की दुकान ‘बाहरीसंस’ के अनुज बाहरी मल्होत्रा ने बताया, किताब की दुकानें अच्छी चल रही हैं। मुझे बहुत खुशी है कि नई पीढ़ी, हमारी पीढ़ी के मुकाबले बहुत पढ़ती है। भले ही आपको किताब की दुकानों में भीड़ नजर न आए, लेकिन किताबों की ब्रिक्री में 35 प्रतिशत तक का इजाफा हुआ है। यह सच है।

हालांकि, मल्होत्रा भी ऑनलाइन मंचों से मिल रही टक्कर को मान रहे हैं, लेकिन उन्हें लगता है कि निजी अनुभव और किताबों की किस्में पाठकों को दुकानों तक खींचती रहेंगी।

वह कहते हैं, अमेजन विक्रेता नहीं है, वह सिर्फ एक मंच है। मेरे पास सीगुल, विंटेज, ब्लूम्सबरी और तमाम अन्य प्रकाशकों की किताबें हैं। सभी अपनी किताबें नहीं बेच रहे हैं। ऐसे में हम भी अमेजन की तरह ही रीटेल विक्रेता हैं।

वह कहते हैं, ऑनलाइन में सिर्फ एक ही कॉम्पिटिशन है, यह कि कौन कितनी सस्ती किताब बेचता है लेकिन किताबों को लेकर कुछ खास नहीं है। मेरे पास ऐसी किताबें भी हैं जो आपको कभी ऑनलाइन नहीं मिलेंगी, क्योंकि उनमें से कुछ अभी तक रिलीज नहीं हुई हैं जबकि कुछ सिर्फ मेरे कलेक्शन का हिस्सा हैं।

मल्होत्रा की यह दुकान दुनिया के सबसे महंगे रीटेल बाजार, खान मार्केट में पिछले 60 साल से है। वह अपनी दुकान की बेहतरी का सारा श्रेय अपने पाठकों और किताब बेचने वाले स्टाफ को देते हैं जिन्हें दुनिया के तमाम लेखकों और उनकी लेखनी की जानकारी है। जो पाठकों के साथ उनकी किताबों और और पसंद के लेखकों के बारे में बात कर सकते हैं।

वहीं कुछ ऐसी दुकानें भी हैं, जिन्होंने पिछले कुछ वर्षों में न सिर्फ अपनी जगह बदली है बल्कि अपने काम करने का तरीका भी बदला है। ऐसी ही एक दुकान है ‘द बुक शॉप’। कुछ साल पहले वह खान मार्केट छोड़कर जोर बाग की शांत-सी सड़क पर जा बसा। लेकिन उसके पाठक कहीं और जाने के बजाय उसके पीछे-पीछे हो लिए। कुछ नए लोग भी जुड़े।

कनाट प्लेस की ‘अमृत बुक कंपनी’ के पुनीत शर्मा कुछ हटकर सोचते हैं। उनके लिए किताब बेचना सिर्फ व्यावसाय नहीं है। उनके लिए किताबें रोमांस हैं। उन्हें लगता है कि इसी रोमांस ने 83 साल पुरानी दुकान को पिछले पांच साल में ‘100 फीसदी’ की वृद्धि दी है।

किताबों के व्यवसाय में जुटे कुछ बड़े नाम जैसे ऑक्सफोर्ड बुकस्टोर ने हालांकि कुछ एक्सपेरीमेंट भी किए हैं। उन्होंने दुकान के भीतर ही एक कैफे खोला है और वहां तमाम तरह की अलग-अलग चीजें भी बिकने लगी हैं।

लेकिन कुछ दुकानें ऐसी भी हैं जो ऑनलाइन कॉम्पिटिशन में खड़ी नहीं रह सकीं और उनका अस्तित्व खत्म हो गया। वसंत विहार की किताब की दुकान ‘फैक्ट एंड फिक्शन’ के मालिक अजीत विक्रम सिंह को 30 साल के बाद अपनी दुकान बंद करनी पड़ी क्योंकि वह दुकान चलाने का खर्च भी नहीं निकाल पा रहे थे। वह ऐसे अकेले नहीं हैं, और भी कई हैं, जिन्हें ऑनलाइन बाजार की सस्ती किताबों ने लील लिया।

Tags:

About The Author

Dakshin Bharat Android App Download
Dakshin Bharat iOS App Download