अतिदोहन से दूरी
हमें नहीं भूलना चाहिए कि हमारा जीवन तब तक ही है, जब तक कि धरती रहने लायक है
महंगाई, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार, आपसी टकराव जैसे अनगिनत मामलों से जूझती दुनिया का ध्यान पर्यावरण संरक्षण की ओर कम ही जाता है। ऐसे समय में ग्रीनलैंड की बर्फ का तेजी से पिघलना चिंता का विषय है। वैज्ञानिक बताते हैं कि इससे समुद्र के स्तर में कम से कम 10 इंच की बढ़ोतरी हो सकती है। अक्सर धरती बचाने की मुहिम को लेकर नारेबाजी तो खूब होती है, लेकिन धरातल पर उसके प्रयास कम नज़र आते हैं।
हमें नहीं भूलना चाहिए कि हमारा जीवन तब तक ही है, जब तक कि धरती रहने लायक है। मनुष्य ने पर्यावरण को क्षति पहुंचाकर धरती पर जीवन-योग्य परिस्थितियों को क्षीण करने में कसर नहीं छोड़ी है, जिसका परिणाम आज हम देख रहे हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ ट्रोम्सो में ग्लेशियोलॉजी के प्रोफेसर अलन हबर्ड जब ग्रीनलैंड गए तो वहां बर्फ की चादर देखकर मंत्रमुग्ध थे, लेकिन उन्होंने दुनिया का ध्यान एक संकट की ओर दिलाने के लिए जिन शब्दों का उपयोग किया, वे भयावह हैं- ‘ग्लेशियर के सामने का एक मील चौड़ा हिस्सा टूट गया है और एक विशाल हिमखंड से अलग होकर समुद्र में गिर रहा है।’यही नहीं, बर्फ के विशाल स्तंभ, पासे की तरह इधर-उधर डोल रहे हैं, जिनकी ऊंचाई उतनी है, जितनी एक तीन मंजिला भवन की होती है। जब इस हिमनद के विशाल टुकड़े समुद्र में गिरते हैं तो कई टन बर्फ के टुकड़े हवा में उड़ते दिखाई देते हैं। इसके बाद उठी ऊंची लहरें अपने रास्ते में सभी को जलमग्न कर देती हैं। यह देखने या कल्पना करने में हॉलीवुड की किसी फिल्म का नजारा लगता है, लेकिन दुनिया के निचले समुद्र तटों के लिए खतरे की घंटी से कम नहीं है। पिछले 30 वर्षों में बर्फ की इन चादरों में आश्चर्यजनक परिवर्तन देखे गए हैं। पिछले कुछ वर्षों में ये परिवर्तन तेज हुए हैं।
पहले माना जाता था कि बर्फ की चादरें सहस्राब्दी समय के पैमाने पर प्रतिक्रिया करती हैं, लेकिन आज ऐसा नहीं दिख रहा है। अध्ययन का यह पहलू चिंताजनक है कि ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर अपने वर्तमान आकार को बनाए नहीं रख पा रही है। इसके पीछे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन बड़ी वजह बताई जा रही है। वर्तमान तापमान से ग्रीनलैंड की बर्फ को जो नुकसान होगा, उससे वैश्विक समुद्र का स्तर कम से कम 10.8 इंच बढ़ सकता है।
अगर समुद्र तल में यह वृद्धि जारी रहती है तो आने वाले वर्षों में इसके भयानक परिणाम होंगे। वैज्ञानिक पहले ही बता चुके हैं कि जापान, इंडोनेशिया, मालदीव, भारत समेत कई देशों में समुद्र तट के कई इलाके जलमग्न हो सकते हैं। विशेषज्ञ बता चुके हैं कि साल 2050 तक कारोबारी जिले नरीमन प्वाइंट और राज्य सचिवालय ‘मंत्रालय’ सहित दक्षिण मुंबई का एक बड़ा हिस्सा पानी के नीचे जा सकता है। चूंकि समुद्र तल में बढ़ोतरी होगी। इससे पानी ऊपर आएगा और जमीन डूब जाएगी। जलवायु परिवर्तन जिस तरह गंभीर समस्या बन सकता है, उसका असर सिर्फ समुद्र के जल स्तर तक सीमित नहीं रहेगा।
आलू, किशमिश, सेब समेत कई फसलों का उत्पादन घट सकता है। वास्तव में प्रकृति हमें चेतावनी दे रही है कि अतिदोहन से दूर रहें और धरती को बचाने के लिए गंभीरता से काम करें। सरकारों और नागरिकों को ऐसी आदतों को बढ़ावा देना होगा, जो पर्यावरण के अनुकूल हों। प्रतिकूल आदतों को आज नहीं बदलेंगे, तो भविष्य में बदलने को विवश होंगे, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।