जिंदगी के मायने क्या?
जिंदगी के मायने क्या?
श्रीकांत पाराशर
समूह संपादक, दक्षिण भारत
क्या जो कुछ मैं कर रहा हूं, यही सब मुझे करना था या फिर मैं कोई रास्ता भटक गया हूं? जिंदगी आखिर है क्या, इसके मायने क्या हैं, ये सवाल तो मन में उठने ही चाहिएं। यह मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि हम मनुष्य हैं। जीवन तो पशु पक्षियों का भी है परंतु उनके पास विकसित मस्तिष्क नहीं है। हमारे पास एक अदद ऐसा दिमाग है कि उसमें अपने आप से भी सवाल करने की क्षमता है। और ऐसे सवाल दिमाग में कौंधने ही चाहिएं कि उसे झिंझोड़ कर रख दें। जिंदगी के बारे में यह सवाल कुछ ऐसा ही है कि जिंदगी के मायने क्या हैं? लेकिन ऐसे सवाल मन में तभी उठते हैं जब मन चैतन्यता की स्थिति में हो। सुषुप्त मन में कोई खदबदाहट नहीं होती। मन की चेतना चैन से नहीं बैठने देती। वही प्रेरित करती है कि जीवन में कुछ विशेष करो, कुछ उल्लेखनीय करो, कुछ अविस्मरणीय करो कि जिंदगी के कुछ मायने निकलें।
आध्यात्म या दार्शनिक भाषा में जिंदगी के मायने अथवा मकसद या फिर कहें कि जिंदगी के उद्देश्य की बात करें तो बात गहरी होगी। संभवतः यह कहा जाएगा कि जिंदगी का असली मकसद तो मोक्ष की प्राप्ति होना चाहिए और मोक्ष कोई धन, पद, प्रतिष्ठा, रिश्ते-नातों में उलझे रहने से नहीं मिलता। उसके लिए चाहिए इन सबका त्याग, चाहिए ध्यान। हो सकता है इसके साथ कई गूढ ज्ञान रहस्य भी बताए जाएं परंतु सामान्य सा इंसान, जिसने इस धरती पर जन्म लिया और जन्म लेते ही रिश्ते नातों में बंध गया, पारिवारिक जिम्मेदारियों में फंस गया और फिर शुरू हुई इन सबको निभाने के लिए जिंदगी की दौड़ जो अंत तक थमी ही नहीं।
इस भागदौड़ में कहीं बहुत दूर निकलने के बाद जिंदगी के मायने, जिंदगी का उद्देश्य तलाशने का विचार भी आया तो आभास हुआ कि अब तो बहुत देर हो चुकी है, शाम ढलने को है, अब कैसी तलाश? कोई समय से चेत गया तो उसकी तलाश पूरी हो गई और कोई बिना तलाश किए यों ही इस दुनिया से चला गया। जिंदगी के मायने यदि मोक्ष/मुक्ति है तो वह क्या इस दुनियादारी के झमेले के साथ संभव है? यह प्रश्न महत्वपूर्ण है। रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कहा था…’मुझे वह मुक्ति नहीं चाहिए जो वैराग्य साधने से मिलती है। मैं तो असंख्य बंधनों के बीच ही मुक्ति का आस्वादन करना चाहूंगा।” मुझे भी यही लगता है कि जिंदगी का अर्थ ऐसा हो जिसकी तलाश सारे झंझट-झमेलों के साथ की जा सके और उसके अनुकूल जीवन जीया जा सके। हर कोई साधारण से साधारण व्यक्ति भी कर सके क्योंकि हर कोई तो वैराग्य धारण नहीं कर सकता।
दो वक्त की रोटी का जुगाड़ ही जीवन का उद्देश्यः
बहुत सारे लोगों का जीवन प्रारंभ से ही संघर्षमय होता है। उनका जन्म जिन परिस्थितियों में होता है उसमें बचपन से लेकर जवानी तक संघर्ष ही संघर्ष रहता है। अभावों में जीने वाले लोग दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में ही चक्करघिन्नी हुए रहते हैं। बच्चों के कपड़े लत्ते, उनकी पढाई के लिए कर्ज लेकर व्यवस्था, ताकि वे बड़े होकर किसी लायक बन सकें और जीवन के कोई मायने ढूंढ सकें। फिर बच्ची की शादी के लिए, फिर पत्नी या माता-पिता के इलाज के लिए कर्जा लेकर व्यक्ति इतना कर्ज में डूब चुका होता है कि उसे उतारने की मशक्कत में ही जिंदगी कब पूरी हो जाती है, पता ही नहीं चलता। कभी पल भर के लिए भी वह यह नहीं सोच पाता कि इस जिंदगी के मायने क्या हैं? उसके लिए अपने व अपने परिवार के लिए पेटभर भोजन की व्यवस्था करना ही जिंदगी का अर्थ है। ऐसे लोगों को किसी प्रकार का दोष देना व्यर्थ है।
धन और सुख सुविधाएं जुटाना ही सब कुछः
जहां एक तरफ बहुत से लोग अभावों में जीते हैं वहीं दूसरी ओर एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जिसने बड़ा सा मकान, महंगी कार, सभी सुविधाओं के शानदार साधन जुटा लेने को जीवन का ध्येय बनाया और उनको प्राप्त भी कर लिया। जैसे जैसे अभिलाषाएं पूरी होती गईं वैसे वैसे नई इच्छाओं ने जन्म लिया। सब कुछ होने के बावजूद ऐसे लोगों की प्यास कभी नहीं बुझती और वे एक के बाद एक ऐशोआराम के साधन जुटाते रहते हैं और इस प्रकार की सफलता को ही जिंदगी का अर्थ मान बैठते हैं। हालांकि सब कुछ होने के बाद भी मन में शांति न होने की पीड़ा इनको भी सताती रहती है। बहुत से साधन सम्पन्न लोग तो ऐसे होते हैं कि उनके पास आवश्यकता से अधिक होने पर भी किसी को कुछ देने के लिए उनके मन में कोई भाव ही जाग्रत नहीं होता। वे बेझिझक यह कहते हैं कि हमने बहुत मेहनत करके सब पाया है, वह अपने एन्जॉय करने के लिए है, बांटने के लिए नहीं है। वे यह भी कहते हैं कि हमको भी तो किसी और ने नहीं दिया, खुद कड़ी मेहनत करके हासिल किया है, इसलिए जो भी व्यक्ति कुछ पाना चाहता है तो वह खुद मेहनत करे और प्राप्त करे। किसी से कोई अपेक्षा करे ही क्यों? ऐसे लोग जिंदगी के मायने ढूंढने में वक्त और ऊर्जा जाया नहीं करते। वे जो ऐशोआराम का जीवन जी रहे हैं वही उनके लिए जिंदगी का सही अर्थ है।
हालांकि साधन सम्पन्न और धनी लोगों में एक वर्ग ऐसा भी है जो मन से उदार है और अपनी कमाई पूरी तरह केवल अपने ऊपर खर्च नहीं करता। वह समाज के जरूरतमंदों के लिए भी कुछ सेवा कार्यों में सहयोग करता है। ऐसे लोगों को समाज में स्वतः ही पद प्रतिष्ठा मिलती है। कुछ लोग पद प्रतिष्ठा के लिए, तो कुछ बिना किसी अपेक्षा के समाजसेवी कार्यों में रुचि लेते हैं तथा यह सब वे अपनी मानसिक शांति के लिए करते हैं। यह वर्ग उनसे कहीं बेहतर है जो केवल और केवल अपने ऊपर खर्च करता है और यह सोचता है कि भगवान ने उसे जो कुछ उपलब्ध कराया है उसका भोग करने का केवल उसी का अधिकार है। ऐसे लोग दूसरों की सेवा की बात तो छोड़िये, अपने से कमजोर अपने भाई बहनों, रिश्तेदारों की भी कोई मदद नहीं करते। ऐसे लोगों के लिए पैसा ही सब कुछ है। वही जिंदगी का अर्थ है और वही ध्येय है।
अपनी संतानों के लिए इकट्ठा करना ही जिंदगी का अर्थः
कुछ लोगों का मानना है कि उनकी जिंदगी अर्थपूर्ण तभी होगी जब वे मरने के पहले अपनी संतानों के लिए सारी सुख सुविधाओं का इंतजाम कर देंगे। ऐसे लोग स्वयं पर आवश्यक खर्च भी नहीं कर पाते। अपना मन मसोसकर एक एक रुपया इकट्ठा करते रहते हैं और अपने बच्चों के भविष्य के लिए आर्थिक सुरक्षा करने में अपना संपूर्ण जीवन झोंक देते हैं। बुढापे में ये खुद की किसी आवश्यक जरूरत के लिए भी बच्चों के मुंह की ओर ताकते रहते हैं कि वह उस मामूली सी आवश्यकता को पूरा कर दें क्योंकि अपनी ही कमाई को खर्च करने का अधिकार उनसे जाने अनजाने छिन चुक होता है। वह चाबी बच्चों के हाथ में जा चुकी होती है।
एक पुरानी कहानी है…एक व्यवसायी ने अपनी जिंदगी भर की कमाई से एक सोने की ईंट बनवा ली और उसे तिजोरी में रख दिया। वह पूर्ण संतुष्ट था कि उसने अपने दो बेटों के भविष्य का पुख्ता इंतजाम कर दिया है। इस सोने की ईंट के इंतजाम में न तो उसने अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखा और न अपनी पत्नी का। इसके फलस्वरूप पत्नी तो कई बरस पूर्व ही भगवान को प्यारी हो गई। अब वह खुद भी गंभीर रूप से बीमार हो गया। उसने खाट पकड़ ली लेकिन उसकी जान अटकी थी सोने की ईंट में। तिजोरी की चाबी वह खुद अपने तकिए के नीचे रखता था। रोज अपने बेटों को बुलाकर अपनी आंखों के सामने तिजोरी खुलवाता और सोने की ईंट को बाहर निकलवा कर हाथ लगाकर देखता। दोनों में से कोई एक बेटा रोज नियम से एक थाली में रखकर ईंट को पिताजी के सामने लाता। वह हाथ लगाकर तसल्ली कर लेते तो ईंट वापस रख दी जाती।
एक दिन जरा सी लापरवाही से बेटे के हाथ से थाली छूट गई तो ईंट नीचे गिर गई और टूट गई। ईंट टूटते ही व्यापारी यह देखकर दंग रह गया कि वह तो अंदर से चिकनी मिट्टी की थी। बाहर केवल सोने की परत चढी थी। दरअसल, बेटों ने न जाने कब असली सोने की ईंट पार कर उसको ठिकाने लगा दिया था और उसी नाप की हूबहू चिकनी मिट्टी की ईंट को सोने की परत चढवा कर उसके स्थान पर रख दिया था। पिता को अपने बेटों की कारस्तानी से भारी सदमा लगा और उसी वक्त उनकी सांस निकल गई। इस कथा से यही संदेश मिलता है कि जीवन का कोई न कोई लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए और उसमें अपने विवेक का इस्तेमाल भी करना चाहिए। ऐसे लक्ष्य को प्राप्त करने में मन को शांति मिलनी चाहिए। भावनाओं में बहकर केवल अपनी संतान के भविष्य को जरूरत से ज्यादा सुविधाजनक बनाने के पीछे अपना वर्तमान इतना नीरस नहीं बना लेना चाहिए कि जिंदगी के कोई मायने ही न रह जाएं। ऐसे लोग अपना जीवन तो कष्टमय बना ही लेते हैं, अपनी संतान को भी कामचोर, निखट्टू बनने को प्रेरित करते हैं।
ऐसा कुछ करें कि लोग रखें यादः
बहुत से लोग जीवन में अपना एक लक्ष्य निर्धारित करते हैं वह चाहे अपने कैरियर से संबंधित हो या पद प्रतिष्ठा पाने से। महत्वाकांक्षी व्यक्ति बड़े बड़े सपने देखता है और उन सपनों के आधार पर अपना लक्ष्य तय करता है। अपनी, मेहनत, लगन, चतुराई और विवेक से व्यक्ति वह सब हासिल भी कर लेता है, लेकिन यह सब कुछ उसके स्वयं के लिए होता है और जो स्वयं के भौतिक सुखों के लिए किया गया है वह पूरी तरह से मन को शांति प्रदान नहीं करता। वह अपने सपनों को पूरा कर सफलता के शीर्ष पर तो पहुंच जाता है परंतु मान सम्मान के बावजूद उसे मन की भीतरी खुशी नहीं मिल पाती। वह उसकी तलाश में जिंदगी के असली मायने ढूंढना शुरू करता है।
सामान्यतया व्यक्ति के पास जब सब साधन सुविधाएं हो जाती हैं तो वह ऐसा कुछ करना चाहता है कि जब वह इस संसार में न रहे तब भी लोग उसे याद रखें। उसे यह लगने लगता है कि मनुष्य को समाज और मानवता के हितों को ध्यान में रखते हुए कुछ विशिष्ट कार्य करना चाहिए। जो व्यक्ति रोजमर्रा की जिंदगी के अलावा, जितनी जल्दी इस बात को समझ जाता है कि उसकी पसंद का कौनसा ऐसा काम है या कार्यक्षेत्र है जिसमें वह पूरी तरह डूबकर, तन्मयता से आत्मिक संतोष प्राप्त कर लेगा, और उसी काम को जिंदगी का अर्थ मानकर संकल्प के साथ जुट जाता है तो समझ लीजिए वह सही ढंग से जिंदगी के मायने समझ गया अन्यथा तो व्यक्ति को जिंदगीभर मायने की तलाश रहती है और जब सही मायने में जिंदगी के मायने समझ आते हैं तो पता चलता है कि “बहुत देर हो चुकी मेहरबां आते आते”। मेरी समझ में व्यक्ति को जिस काम में शांति और संतोष मिलता है उसी में उसे जिंदगी का अर्थ खोजना चाहिए। यदि हम अपने और अपने परिवारजनों के लिए आवश्यक साधन सुविधाएं उपलब्ध करादें तो यह हमारा दायित्व निर्वहन है परंतु इससे इतर, मानव समाज में बिना किसी अपेक्षा के, बिना किसी स्वार्थ के किसी का कोई दुख कम कर सकें, कोई मदद कर किसी के चेहरे पर खुशी ला सकें, किसी की जिंदगी को कुछ बेहतर करने में मददगार बन सकें और ऐसे कामों से अपने जीवन को कोई नया आयाम दे सकें, एक नई ऊंचाई दे सकें तो शायद यही अर्थपूर्ण जीवन है, जिंदगी के यही वास्तविक मायने हैं।