ऑनलाइन बिक्री पर दुकानदारों का आक्रोश जायज

ऑनलाइन बिक्री पर दुकानदारों का आक्रोश जायज

* बड़े व्यापारिक संगठन एकजुट होकर प्रधानमंत्री तक पहुंचाएं अपनी पीड़ा

* कुछ दिन टीवी, फ्रिज, मोबाइल नहीं बिकेंगे तो कोई पहाड़ नहीं टूट पड़ेगा

श्रीकांत पाराशर
समूह संपादक, दक्षिण भारत राष्ट्रमत

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बेंगलूरु/चेन्नई/दक्षिण भारत। पूरे देश में घरेलू सामान, जैसे फ्रिज, टीवी, मोबाइल की आनलाइन बिक्री की छूट का जैसे ही समाचार आया, मध्यम स्तर के और छोटे छोटे दुकानदारों के पैरों के तले से जमीन खिसक गई। ऐसा होना स्वाभाविक है। यह वही दुकानदार हैं जिन्होंने कोरोना वायरस से संघर्ष में प्रधानमंत्री की अपील के एक एक शब्द को सम्मान दिया। प्रधानमंत्री के जनता कर्फ्यू का पूरी सिद्दत से पालन करते हुए यह जताया कि प्रधानमंत्रीजी हम आपके साथ हैं। प्रधानमंत्री मोदी के कहे अनुसार उन्होंने अपने घर के दरवाजे और बालकनी पर खड़े होकर ताली बजाई, थाली बजाई, शंख बजाया और मोदी को यह महसूस कराया कि कोरोना की लड़ाई में पूरा देश उनके साथ खड़ा है तथा इन खड़े होने वालों में वे सब दुकानदार भी शामिल हैं जिनकी कमर पहले ही टूट चुकी थी।

मंदी की मार झेल रहा छोटा और मध्यम व्यापारी गर्व से यह कहते हुए देश के साथ अग्रिम पंक्ति में खड़ा नजर आया कि कोरोना संकट के कारण देश मुसीबत में है परंतु यह अस्थायी है। जल्दी ही हालात में सुधार आएगा तब सब ठीक हो जाएगा। अपने आपको ढाढस बंधाते हुए व्यापारी अपनी टेढी हुई कमर के बावजूद अपना सीना तानकर देशवासियों के साथ खड़ा हो गया। उसे अपने भविष्य की चिंता थी परंतु उसे अपने आप से ज्यादा चिंता देश की थी। इसलिए व्यापारियों ने प्रधानमंत्री द्वारा घोषित लाकडाउन का भी हृदय से स्वागत किया। उसने प्रधानमंत्री द्वारा खेंची गई लक्ष्मण रेखा को लांघना तो दूर, लांघने का विचार स्वप्न में भी नहीं आने दिया। उसने सरकार के हर निर्देश को अध्यादेश की तरह माना। लाकडाउन में अपने आपको घर में कैद कर लिया।

* पहले से ही मुसीबत में है व्यापारी
यह वही व्यापारी है जिसे मालूम है कि बिना सामान बेचे भी उसे दुकान का किराया चुकाना होगा क्योंकि कभी कोई सरकार किसी व्यापारी को ऐसी कोई राहत नहीं देती कि बिना खुद कमाए अपनी दुकान का किराया अदा कर सके। इतना ही नहीं, एक और महत्वपूर्ण पहलू है, जिस पर गौर नहीं किया जाता। जब जब भी देश किसी विपदा में फंसता है तो यही व्यापारी अपने गल्ले से सबसे पहले देशवासियों की मदद के लिए अपनी सामर्थ्य के अनुसार धन उपलब्ध कराता है। वह स्वेच्छा से मदद करने वाला पहला जीव है।

व्यापारी अपने व्यापारिक संगठन के माध्यम से, सामाजिक और धार्मिक संगठनों से जुड़े होने के कारण उन संगठनों के माध्यम से भी उदार हृदय से आर्थिक सहयोग देता है। जो राशि वह अपने व्यापार संबंधी सामान खरीदने या अपने भविष्य के लिए बचत कर रखी होती है, वह भी बिना झिझक उदारता के साथ देश के जरूरतमंदों के लिए दे देता है। यह सब बताना यहां जरूरी इसलिए है क्योंकि वही व्यापारी आज खुद संकट में है। वह सोचता है, भविष्य में सब ठीक हो जाएगा, वह कड़ी मेहनत कर लेगा, अपनी जरूरतों को और कम कर लेगा, अपने खर्चों में कटौती करेगा, अपने बच्चों की इच्छाओं को भी दबाने में कामयाब हो जाएगा, परिवार को समझा लेगा कि जल्दी ही सब सामान्य हो जाएगा तब सबकी इच्छाओं पर गौर कर लिया जाएगा।

यह सब सोचकर व्यापारी धैर्य रख रहा था परंतु जैसे ही देखा कि सरकार टीवी, फ्रिज, मोबाइल, होम एप्लाएंसेज आदि बेचने के लिए आनलाइन कंपनियों को अनुमति दे रही है तो छोटे और मध्यमवर्ग व्यापारी की हिम्मत ही टूट गई। उसे लगने लगा है कि लाकडाउन खत्म होने के बाद भी उसका व्यापार सिर न उठा सके, ऐसी साजिश हो रही है। इसलिए वह अब आक्रोश में है। प्रधानमंत्री मोदी का हमेशा समर्थक रहा वह व्यापारी अपने आपको असहाय महसूस कर रहा है।

* कई मोर्चों पर सीना ताने खड़ा है छोटा व्यापारी
उसका आक्रोश जायज है। छोटे छोटे व्यापारियों पर अपने घर की जिम्मेदारी तो है ही, उसकी दुकान में काम करने वाले चार पांच कर्मचारियों के परिवार के पालन पोषण का भी दायित्व उसी पर है। बड़ी कंपनियों की तरह वह कर्मचारियों की छंटनी नहीं कर सकता क्योंकि वह अपने कर्मचारियों से भावनात्मक रूप से जुड़ा होता है। वह कर्मचारी की पीड़ा को समझता है। उसे दूध में से मक्खी की तरह निकालकर फैंक नहीं सकता। एक बात और, इस लाकडाउन में जगह जगह मजदूरों, फुटपाथ पर रहने वालों, झुग्गीवासियों को भोजन के पैकेट पहुंचाने वालों में बहुतसी जगह मुंह पर मास्क लगाए वालंटियर के रूप में यही व्यापारी खड़ा है।

जहां सरकारी कर्मचारी या पुलिसकर्मी भोजन पैकेट बांट रहे हैं वह भी अधिकतर इन व्यापारियों के सौजन्य से ही उपलब्ध कराया जा रहा है जबकि उस व्यापारी को पता है कि सरकार उस पर किसी प्रकार की रहम करने वाली नहीं है, उसे खुद की मेहनत से फिर उठ खड़े होना होगा। ऐसे में जब उसे लगता है कि उसके व्यापार के भविष्य को भी चौपट करने का प्रयास हो रहा है तो उसकी तड़पड़ाहट वाजिब है। अब उसे एकजुट होकर अपनी आवाज उठानी होगी।

* संगठन मजबूती से रखें अपनी बात
व्यापारिक संगठन अब व्यापारियों की कठिनाई को सरकार के समक्ष ठीक से रखें। व्यापारी भी ट्वीटर के माध्यम से प्रधानमंत्री तक अपनी बात अपने अपने संगठन के माध्यम से पहुंचाएं। ट्वीटर पर ही अलग अलग अपनी कैपेसिटी में भी अपनी पीड़ा उजागर करें। इसमें दो राय नहीं हो सकतीं कि आनलाइन व्यापार की छूट देना और दुकानों पर ताले लटकाए रखने को बाध्य करना साधारण व्यापारियों के साथ अन्याय है। लाकडाउन हटने तक अगर लोग टीवी, फ्रिज, मोबाइल नहीं खरीदेंगे तो कोई आसमान नहीं टूट पड़ेगा। एक तरफ आम आदमी की जान के लाले पड़े हैं और सरकार में ऊंचे पदों पर बैठे अधिकारी आनलाइन व्यापार की छूट देने की सरकार को सलाह दे रहे हैं। सरकार के इस कदम का विरोध होना चाहिए। मीडिया को भी आम व्यापारी की व्यथा को उचित प्लैटफॉर्म उपलब्ध कराना चाहिए ताकि बात सरकार तक पहुंच सके।

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