भाजपा के वासुदेव देवनानी यहां बना चुके हैं हैट्रिक, कांग्रेस ‘पार्षद’ तक नहीं जिता पाई

भाजपा के वासुदेव देवनानी यहां बना चुके हैं हैट्रिक, कांग्रेस ‘पार्षद’ तक नहीं जिता पाई

vasudev devnani

अजमेर/दक्षिण भारत। राजस्थान की राजनीति में आगामी विधानसभा चुनाव के चलते सरगर्मियां बढ़ने लगी हैं। जुलाई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पिछले महीने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की जयपुर रैली के बाद से चुनावी प्रचार अभियान ने रफ्तार पकड़ ली है। लेकिन प्रदेश के अजमेर शहर की एक विधानसभा सीट ऐसी भी है जहां दोनों ही पार्टियों की नजरें जीत के लिए किसी एक समुदाय पर टिकी हैं।

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हम बात कर रहे हैं अजमेर उत्तर विधानसभा सीट की। यहां कांग्रेस-भाजपा प्रत्याशी अब तक 5-5 बार जीते हैं, कुल 13 बार विधानसभा चुनाव और एक बार उपचुनाव (कांग्रेस की जीत) हो चुका है लेकिन हर बार जीत सिंधी समुदाय के उम्मीदवार की होती है। वर्तमान में शिक्षा राज्य मंत्री वासुदेव देवनानी यहां बीजेपी की टिकट पर जीत की हैट्रिक बना चुके हैं, जबकि इस दौरान यहां कांग्रेस का एक सिंधी पार्षद तक नहीं जीत सका है।

आ़जादी के बाद सिंध से हिंद में रहने आए सिंधी समुदाय ने अजमेर शहर में ऐसी जड़ें जमाईं कि यहां की राजनीति भी उनके इशारे पर नाचने लगी। आजादी के बाद से शहर की एक विधानसभा सीट पर आज तक जितने भी चुनाव हुए उसमें सिर्फ सिंधी उम्मदीवार ने ही जीत दर्ज की। गैर सिंधी नेताओं और राजनीतिक दलों ने इस तिलिस्म को तोड़ने की लाख कोशिश की लेकिन कोई सफल नहीं हो सका।

अब तो यहां तक कहा जाने लगा है कि अजमेर उत्तर की सीट अघोषित रूप से सिंधी समाज के लिए आरक्षित हो गई है। वर्ष 1957 से अजमेर में शुरू हुए विधानसभा चुनाव से लेकर 2013 के आखिरी चुनाव तक अजमेर उत्तर विधानसभा सीट जो परिसीमन से पहले अजमेर पूर्व कहलाती थी वह सिंधीवाद और गैर सिंधीवाद की जद्दोजहद से जूझ रही है।

यह कश्मकश इसलिए भी बढ़ती जा रहा है कि बीजेपी-कांग्रेस, दोनों ही दल सिंधी प्रत्याशी को लेकर कोई रिस्क लेने के मूड में दिखाई नहीं देते। साल 2003 से लगातार तीन बार भाजपा के वासुदेव देवनानी इस सीट से जीतते आ रहे हैं। उनसे पहले कांग्रेस के कद्दावर नेता स्व. किशन मोटवानी ने इस सीट से अपनी जीत का सिलसिला कायम किया था।

ऐसा नहीं कि इस मिथक को तोड़ने का प्रयास नहीं हुआ हो, कांग्रेस ने लगातार दो बार गैर सिंधी उम्मीदवार के रूप में गोपाल बाहेती को उतारा लेकिन उन्हें भी हार का मुंह देखना पड़ा। एक बार फिर चुनाव नजदीक आ रहे हैं और इस क्षेत्र में फिर से दोनों दलों की और से सिंधी और गैर सिंधी दावेदार अपनी ताल ठोंक रहे हैं।

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