पाखंड का पर्दाफाश
पाक को हर मंच पर इसी तरह बेनकाब करने की जरूरत है

पाक की आतंकी गतिविधियां खुलकर सामने आ रही हैं
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर के बारे में जो अनर्गल बयानबाजी की है, उसका जवाब देते हुए भारत ने इस पड़ोसी देश के पाखंड का पर्दाफाश किया है। पाक को हर मंच पर इसी तरह बेनकाब करने की जरूरत है। यह तीन दशक पुरानी दुनिया नहीं है, जब पाकिस्तान अपने झूठ को छिपाने में कामयाब हो जाता था। अब सोशल मीडिया के जमाने में उसकी आतंकी गतिविधियां खुलकर सामने आ रही हैं। भारत ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के 58वें नियमित सत्र में उत्तर देते हुए सत्य कहा कि 'पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मदद पर टिका एक नाकाम देश है, जो अपने सैन्य-आतंकवादी गठजोड़ द्वारा फैलाए गए झूठ को आगे बढ़ाता है।' वास्तव में पाकिस्तान बहुत पहले भलीभांति बेनकाब किया जा सकता था, खासकर पश्चिमी देशों को उसका असल चेहरा दिखाया जा सकता था, लेकिन हमारे प्रयासों में कमी रही। एक ओर जहां पाकिस्तान झूठ की बुनियाद पर जम्मू-कश्मीर का मुद्दा उठाकर दुनिया से हमदर्दी बटोरता रहा, आतंकवादी शिविर चलाता रहा, वहीं हम उसके दुष्प्रचार का जवाब ही देते रहे। बल्कि जवाब भी पर्याप्त नहीं दिया गया। हमें आक्रामक ढंग से पाकिस्तान की पोल खोलनी चाहिए थी। वह किसी किस्म के दुष्प्रचार को हवा देता, उससे पहले ही दुनिया को बता देना चाहिए था कि उसके आंसू घड़ियाली हैं। इसके लिए अंग्रेजी, अरबी, रूसी, तुर्की, फ्रेंच, जर्मन, चीनी, स्पेनिश, जापानी जैसी भाषाओं में सामग्री का निर्माण कर संबंधित देशों में उसका खूब प्रचार करना चाहिए था। पाकिस्तान इतनी चालाकी से लोगों के दिलो-दिमाग में भारतविरोध की भावना पैदा करता है कि उन्हें पता ही नहीं चलता। सोशल मीडिया पर पाकिस्तानी धारावाहिक बहुत देखे जाते हैं। जब कभी उनके निर्माता किसी धारावाहिक की कामयाबी का जश्न मनाते हैं या कोई अवॉर्ड शो आयोजित करते हैं तो उसमें 'कश्मीर' शब्द जोड़ देते हैं।
चूंकि ये धारावाहिक भारत में भी बहुत लोग देखते हैं। इस तरह उनके मन में यह झूठी बात बैठाने की कोशिश की जाती है कि 'कश्मीर' के संबंध में पाकिस्तान का रुख सही है! क्यों? उसके धारावाहिकों के किरदार बड़े मासूम हैं! जिन किरदारों के साथ लोग खुद को जोड़कर देखने लगते हैं, उनसे जुड़ीं दूसरी बातों को भी सही मान लेते हैं। पाकिस्तान इन्हीं धारावाहिकों को अरबी और तुर्की भाषा में प्रस्तुत करता है। आसान शब्दों में कहें तो इन देशों की जनता से समर्थन जुटाने का चालाकी भरा पैंतरा! हमारे धारावाहिक निर्माता जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तानी साजिशों, आतंकवाद, कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार, आम कश्मीरियों की ज़िंदगी में आईं मुश्किलों के बारे में बताने के लिए क्या कर रहे हैं? हम अरब देशों के लोगों को क्यों नहीं बताते कि पाकिस्तान ने कश्मीर घाटी को लहू-लुहान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी? वर्ष 2022 में आई एक फिल्म में जरूर यह दिखाया गया था। उससे पहले और बाद कितने निर्माताओं ने हिम्मत की थी? पाकिस्तान कर्ज लेकर भी दुनिया में अपना झूठ बेच रहा है। उसकी अर्थव्यवस्था तबाह हो गई, लेकिन वह दुष्प्रचार में पूरी ताकत लगा रहा है। हमें दुनिया के सामने सच रखने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति दिखानी होगी। दुर्भाग्य की बात है कि जो अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर में भेदभाव और अलगाववाद को बढ़ावा दे रहा था, जब उसे हटाया गया तो कुछ बुद्धिजीवी विरोध करने लगे! वे न्यायालय चले गए थे। एक राष्ट्रीय पार्टी के तत्कालीन सांसद ने तो लोकसभा में चर्चा के दौरान कहा था कि कश्मीर का मामला संयुक्त राष्ट्र में है! क्या हमें अपने घरेलू मामलों पर चर्चा करने, कानून बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र से हरी झंडी लेनी होगी? नेतागण हों या आम नागरिक, उन्हें राष्ट्र की एकता एवं अखंडता से जुड़े ऐसे मामलों पर बहुत सोच-समझकर टिप्पणी करनी चाहिए। इस दौर में ऐसा इसलिए ज्यादा जरूरी हो जाता है, क्योंकि सोशल मीडिया पर उन बयानों से 'तिल का ताड़' बनते देर नहीं लगती। पाकिस्तानी मशीनरी तो ऐसे मौके को लपकने के लिए तैयार ही बैठी है।