चीन की ‘पीड़ा’

गृह मंत्री ने किबिथू जाकर उचित ही किया

चीन की ‘पीड़ा’

चीन तो यह चाहता था कि वह अरुणाचल के कुछ स्थानों का ‘नामकरण’ करके और उद्दंडता दिखाए

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अरुणाचल प्रदेश के किबिथू गांव में ‘वाइब्रेंट विलेज’ कार्यक्रम की शुरुआत ही नहीं की, बल्कि चीन को भी स्पष्ट संदेश दे दिया कि बीजिंग की ‘गीदड़ भभकियों’ का ज़माना चला गया, अब यहां उसकी कोई परवाह नहीं करता। चाहे चीनी सरकार भारत पर मनोवैज्ञानिक दबाव डालने के लिए अरुणाचल प्रदेश के कई इलाकों के चीनी भाषा में ‘नामकरण’ करती रहे, धरातल पर तो यह कभी नहीं होगा। 

गृह मंत्री ने किबिथू जाकर उचित ही किया। चीन तो यह चाहता था कि वह अरुणाचल के कुछ स्थानों का ‘नामकरण’ करके और उद्दंडता दिखाए तथा भारत सरकार की ओर से तुरंत कोई बड़ा दौरा भी इस राज्य का न हो। भारत ने ड्रैगन के उस गुब्बारे की हवा निकाल दी, जिसे देखकर कई देशों को भ्रम होता था कि बीजिंग इतना ताकतवर है कि कोई उसे आंखें नहीं दिखा सकता। 

शाह ने किबिथू पहुंचकर चीन की आंखों में आंखें डालकर कह दिया कि ‘वह युग चला गया, जब कोई भी हमारी भूमि का अतिक्रमण कर सकता था। अब सुई की नोक के बराबर भूमि तक का अतिक्रमण नहीं किया जा सकता।’ निस्संदेह शांति की रक्षा मात्र सज्जनता से नहीं की जा सकती। इसके लिए शक्तिशाली भी बनना होता है। विशेष रूप से तब, जब हमारे पड़ोस में चीन और पाकिस्तान जैसे देश हों, जिनकी नीतियां अत्यंत धूर्ततापूर्ण हैं। 

भारत ने आज़ादी के बाद इन दोनों देशों के प्रति बहुत सज्जनता और शालीनता दिखाई, जिसके बदले हम पर युद्ध थोपा गया, हमारे कई सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए। निस्संदेह भारत ने उन कड़वे अनुभवों से बड़ा सबक लिया और साल 1965 व 1971 में पाक को बड़ी शिकस्त दी थी। अब पाकिस्तान का तो काफी हद तक ‘इलाज’ हो गया। उसकी अर्थव्यवस्था तबाह हो गई। वह कभी-कभार आतंकवादी भेजकर संतोष कर लेता है, जिन्हें भारतीय सैनिक एलओसी पर मार गिराते हैं।

चीन अपने यहां आतंकवादियों के शिविर नहीं लगाता, क्योंकि वह जानता है कि भविष्य में वे उसके यहां उत्पात मचा सकते हैं। वह भारत को परेशान करने के लिए पाक को मदद भेजता रहता है। उसने पिछले तीन दशकों में बहुत आर्थिक प्रगति की है। वह एलएसी से लगते इलाकों में बुनियादी ढांचे पर भारी-भरकम रकम लगाकर अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है। चीन ने उस इलाके के गांवों में काफी सुविधाओं का विस्तार किया है, जिसका महिमा-मंडन (जो अतिशयोक्तिपूर्ण भी होता है) कर वह बताना चाहता है कि विकास के लिए उसका मॉडल सर्वश्रेष्ठ है। 

निस्संदेह भारत ने भी हाल के वर्षों में इस इलाके में मूलभूत सुविधाओं पर बहुत जोर दिया है। बिजली, पानी, पुल, सड़कों, चिकित्सालयों आदि से संबंधित परियोजनाओं के शिलान्यास-उद्घाटन होते रहे हैं। अभी यहां और सुविधाओं के विस्तार की गुंजाइश है। किबिथू में शाह का यह कहना कि ‘साल 1962 में जो कोई भी इस भूमि का अतिक्रमण करने आया, उसे यहां रहने वाले देशभक्त लोगों के कारण लौटना पड़ा’, से चीन को भारी पीड़ा हुई है, जो कि होनी ही थी। 

एक दशक पहले तक उत्तर-पूर्व के कई इलाके उग्रवाद की चपेट में थे, जहां अब स्थिति सामान्य हो गई है। वहां लोग मुख्यधारा में लौट आए हैं। चीन को इसका भी ‘दुःख’ है। उसके उद्देश्यों की पूर्ति तब होती, जब यहां उग्रवाद बरकरार रहता। 

शाह के दौरे को लेकर चीन की ओर से जो बयान आया, वह ‘चोरी और सीनाजोरी’ वाला है। वह इसे ‘चीनी संप्रभुता का उल्लंघन’ करार दे रहा है। सफेद झूठ गढ़ने में माहिर इस पड़ोसी देश को समझ लेना चाहिए कि अब भारत किसी भी धमकी या झांसे में आने वाला नहीं है। अगर उसने कोई उद्दंडता दिखाई तो भारत उसकी हरकतों का भलीभांति जवाब देना जानता है।

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