कोचिंग कारोबार का सिंहासन हिला पाएगी डिजिटल की दस्तक?

कोचिंग कारोबार का सिंहासन हिला पाएगी डिजिटल की दस्तक?

कोचिंग कारोबार का सिंहासन हिला पाएगी डिजिटल की दस्तक?

प्रतीकात्मक चित्र

.. राजीव शर्मा ..

नई दिल्ली/दक्षिण भारत। कोरोना महामारी ने हर क्षेत्र में उथल-पुथल मचाई है। हालांकि इस दौरान स्थापित तौर-तरीके से हटकर ऐसी राह निकालने की कोशिशें भी खू​ब हुईं ताकि संक्रमण न फैले और जीवन चलता रहे। लॉकडाउन के बाद कोचिंग क्षेत्र कई बदलावों के दौर से गुजर रहा है। खासतौर से मेडिकल, इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षाओं और विभिन्न सरकारी नौकरियों की तैयारी में जुटे अभ्यर्थियों के सामने काफी मुश्किलें थीं लेकिन ऑनलाइन कोचिंग काफी हद तक मददगार साबित हुई।

ऐसे में यह सवाल बहुत प्रासंगिक हो गया है कि क्या महामारी समाप्त होने के बाद कोचिंग के ‘गढ़’ रहे कई शहर अपना वर्चस्व कायम रख पाएंगे। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के अलावा इंदौर, इलाहाबाद और कोटा जैसे शहरों की एक पहचान कोचिंग कारोबार की भी है। खासतौर से मेडिकल, इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं के लिए तो कोटा सबसे ज्यादा जाना-पहचाना नाम है।

कोचिंग कारोबार का एक गणित यह भी है कि उसके साथ कई और सहायक उद्योग पनपने लगते हैं। उदाहरण के लिए, पेइंग गेस्ट, होस्टल और टिफिन सर्विस आदि। विश्लेषकों की मानें तो देशभर में कई हजार करोड़ के कोचिंग कारोबार को आने वाले समय में सबसे ज्यादा टक्कर ऑनलाइन से ही मिलने वाली है।

हालांकि इसके कई फायदे भी हैं, खासतौर से विद्यार्थियों के लिए। लॉकडाउन के बाद कोटा से पश्चिम बंगाल स्थित अपने गांव लौटे रोहित के लिए पढ़ाई का तरीका बदल गया है। अब मोबाइल फोन ही उसके लिए क्लासरूम बन गया है। वह एक ऐप डाउनलोड करने के बाद ऑनलाइन कोचिंग की सदस्यता ले चुका है। उसे पढ़ाई में लगभग उतना ही समय देना पड़ता है जितना पहले दिया करता था। रोहित के पिता को अब हर महीने कमरे का किराया, भोजन शुल्क के रूप में वह रकम नहीं भेजनी पड़ती जो उनकी कमाई का एक बड़ा हिस्सा है।

इन सबके बीच ऑनलाइन कोचिंग ऐप्स का दबदबा बढ़ता जा रहा है। फेसबुक पर उनके पेज खूब लाइक बटोर रहे हैं और ऐप डाउनलोड होने के साथ ही कमाई भी बढ़ रही है। परंपरागत कोचिंग से हटकर ऑनलाइन कोचिंग में बहुत ज्यादा जगह और संसाधनों की जरूरत नहीं होती। एक ठीक-ठाक जगह और तकनीकी उपकरण, जो आसानी से मिल जाते हैं। विषय का ज्ञान और उसकी प्रस्तुति जरूर मायने रखती है।

सीखने का यह माध्यम कितना असरदार साबित होगा, क्या यह परंपरागत कोचिंग का सिंहासन हिला पाएगा? ऐसे सवाल खूब चर्चा में हैं जिनके जवाब विशेषज्ञ और विद्यार्थी अपने ढंग से तलाश रहे हैं। इसमें चुनौतियां आएंगी, सवाल भी उठेंगे लेकिन समय के साथ उन्हें दूर करने की कोशिशें होती रहेंगी। ऑनलाइन कोचिंग ने विद्यार्थियों के अलावा उन लोगों के लिए एक राह जरूर खोल दी है जिनके पास ‘ज्ञान’ है लेकिन उपयुक्त मंच और संसाधन नहीं। डिजिटल की दस्तक इन दोनों की पूर्ति करती दिख रही है।

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