परमवीर पीरू सिंह: जिनके प्रहार से थर्राया पाक, ध्वस्त कर दिया कश्मीर पर कब्जे का सपना

परमवीर पीरू सिंह: जिनके प्रहार से थर्राया पाक, ध्वस्त कर दिया कश्मीर पर कब्जे का सपना

नई दिल्ली/दक्षिण भारत। वीरों की धरती शेखावाटी ने ऐसे अनेक सपूतों को पैदा किया है जिन्होंने देश की रक्षा करते हुए अपने प्राणों का बलिदान दिया। परमवीर पीरू सिंह शेखावत भी महान योद्धा एवं बलिदानी थे, जिन्होंने आखिरी सांस तक भारत माता की सेवा की और अपने प्राण न्योछावर कर दिए। उनकी वीरगाथा हमें देशसेवा की प्रेरणा देती है।

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झुंझुनूं में उनके नाम पर ‘पीरू सिंह शेखावत’ सर्किल भी है जहां विभिन्न अवसरों पर शहीद को श्रद्धा सुमन अर्पित किए जाते हैं। पीरू सिंह का जन्म 20 मई, 1918 को रामपुरा बेरी गांव में हुआ। बचपन से ही उन्हें साहसिक कार्य और खेल बहुत पसंद थे। वे खेती के कार्य में पिता लाल सिंह का हाथ बंटाते थे। उनकी माता का नाम श्रीमती जारा बाई था।

साल 1936 में पीरू सिंह फौज में भर्ती हो गए। करीब चार साल बाद वे लांस नायक के रूप में पदोन्नत हो गए। पीरू सिंह बहुत बहादुर, कर्मठ और अपने कर्तव्यों को गंभीरता से निभाने वाले सैनिक थे। उन्हें पंजाब रेजिमेंट सेंटर में इंस्ट्रक्टर का दायित्व भी मिला और साल 1943 में कंपनी हवलदार मेजर बन गए।

साल 1948 आते-आते पाकिस्तान ने कश्मीर पर कब्जा करने के लिए बड़े स्तर पर षड्यंत्र रच लिया। उसने खुद की फौज और कबाइलियों को कश्मीर में भेजा ताकि वहां अशांति पैदा हो। भारतीय सेना ने जवाबी कार्रवाई की तो पाकिस्तानियों को वहां से भागना पड़ा। हालांकि इस दौरान भारतीय सेना के कई जांबाज वीरगति को प्राप्त हो गए।

राजपुताना राइफल्स की छठी बटालियन में तैनात हवलदार मेजर पीरू सिंह को जिम्मेदारी सौंपी गई थी कि वे तिथवाल में पहाड़ी पर स्थित दुश्मन की टुकड़ी पर हमला करें। उस समय दुश्मन ने वहां मीडियम मशीनगनें लगा रखी थीं। पहाड़ी पर स्थित होने के कारण वह सामने से हर रास्ते पर नजर रख सकता था।

इसके अलावा दुश्मन अपने बंकरों से ग्रेनेड फेंक रहा था। इससे भारतीय सेना के कई जवान शहीद और घायल हो गए थे। स्थिति बहुत गंभीर थी। ऐसे में पीरू सिंह ने अपने साथी सैनिकों का हौसला बढ़ाया और दुश्मन पर धावा बोला। दोनों ओर से भयंकर गोलीबारी हो रही थी। पीरू सिंह और उनके साथियों ने बेहद बहादुरी का प्रदर्शन किया और दुश्मन को काफी नुकसान पहुंचाया। दुश्मन गोलीबारी के साथ लगातार बम बरसा रहा था। उसके छर्रों से पीरू सिंह घायल हो गए। इसक बावजूद उन्होंने मुकाबला जारी रखा। वे दुश्मन के ठिकाने तक पहुंचने में कामयाब रहे और मीडियम मशीन गन से फायर कर रहे उसके फौजी को ढेर कर दिया।

इस दौरान उन्होंने बंकर में घात लगाकर बैठे दुश्मन के सभी फौजियों को मारकर पोस्ट पर कब्जा कर लिया। इसी दौरान दुश्मन ने उन पर बम से हमला किया जिससे पीरू सिंह के चेहरे और आंखों से खून बहने लगा। उन्हें महसूस हो गया था कि अब मातृभूमि को अंतिम बार प्रणाम करने का समय आ गया है। वे रेंगते हुए बाहर निकले और दुश्मन के दूसरे बंकर पर बम फेंका। उन्होंने दुश्मन के दो सैनिकों को स्टेन गन के आगे लगे चाकू से मार गिराया। इसके बाद वे तीसरे बंकर की ओर जाने लगे, तभी उनके सिर में गोली लगी।

18 जुलाई, 1948 को देश के इस वीर सपूत ने प्राण न्योछावर करते हुए भी दुश्मन का तीसरा बंकर उड़ा दिया। पीरू सिंह को 1952 में गणतंत्र दिवस पर ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया। उनका साहस, त्याग और बलिदान हमें सदैव प्रेरणा देता रहेगा।

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