सबकी भलाई की प्रार्थना में निहित है अपनी भलाई: आचार्यश्री विमलसागरसूरी

मात्र स्वहित की चिंता करना स्वार्थ है

सबकी भलाई की प्रार्थना में निहित है अपनी भलाई: आचार्यश्री विमलसागरसूरी

सर्वमंगल की प्रार्थना ही संसार के लिए संजीवनी जड़ी-बूटी है

गदग/दक्षिण भारत। शुक्रवार को स्थानीय राजस्थान जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ के तत्वावधान में जीरावला पार्श्वनाथ सभागृह में श्रावण माह के शुभारंभ के अवसर पर आयोजित विशेष प्रार्थना कार्यक्रम में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए जैनाचार्य विमलसागरसूरीजी ने कहा कि भगवान की पूजा-अर्चना, गुरुदर्शन, महामांगलिकया मंगलपाठ का श्रवण, देवी-देवताओं के अनुष्ठान, तीर्थयात्रा, गौपूजन, मंत्रजाप, तपस्या, शकुन देखना, गुड़ या दही खाना आदि सभी द्रव्यात्मक विधि-विधान द्रव्यमंगल हैं।

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इनका महत्त्व और प्रभाव भी अल्प ही होता है। लेकिन मन से सभी के प्रति राग-द्वेष की भावना को कम करना और सबके प्रति पवित्र मैत्री भावना की स्थापना करना भावमंगल है। सर्वमंगल की यह प्रार्थना ही संसार के लिए संजीवनी जड़ी-बूटी है। सारांश में, यह कहा जा सकता है कि बुरा सोचने से बुरा और भला सोचने से भला होता है। 

आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि आध्यात्मिक और मनोवैज्ञानिक रूप से शुभ-अशुभ का धरातल मनुष्य का मन है। जो हम दूसरों के प्रति सोचते हैं, वैसा हम अपने लिए भी प्राप्त करते हैं। इसलिए किसी का बुरा करना तो दूर की बात है, किसी का बुरा सोचने से पहले भी सौ बार विचार करना चाहिए। 

जब हम दूसरों के शुभ-मंगल की प्रार्थना करते हैं तो गहरे अर्थ में वह स्वयं के और अपने परिवार के शुभ-मंगल की भी कामना है। ठीक इसी तरह जब हम दूसरों के अशुभ या अमंगल का चिंतन करते हैं तो वास्तविक रूप में वह स्वयं के अशुभ या अमंगल की व्यवस्था करते हैं। 

इसी अर्थ में सबकी भलाई की प्रार्थना में स्वयं की भलाई की कामना निहित है। मात्र स्वहित की चिंता करना या अपने और अपने परिवार के मंगल की अभिलाषा करना तो निपट स्वार्थ है। स्वार्थपूर्ण कामना का प्रभाव बहुत गहरा नहीं होता। लेकिन सबके हित की चिंता और सबके सुख की अभिलाषा करना शुद्ध रूप से परमार्थ और परार्थ की भावना है।

संघ के अध्यक्ष पंकज बाफना ने बताया कि आचार्यश्री विमलसागरसूरीश्वरजी ने मंत्रजाप और ध्यान के लिए स्थान, समय, दिशा, आसान, मुद्रा, आलंबन, जपमाला, आहार और विधि-निषेध का ज्ञानपूर्ण तलस्पर्शी मार्गदर्शन दिया। कार्यक्रम के अंत में सभी श्रमणजनों ने सामूहिक महामांगलिक प्रस्तुत कर सर्वमंगल, विश्वमंगल की प्रार्थना की।

संघ के मंत्री हरीश गादिया ने बताया कि गणि पद्मविमलसागरजी ने रात्रिकालीन ज्ञानसत्र में धर्म, अध्यात्म के गहनतम तत्वों की सरल विवेचना की।

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