मंदिर: एक वरदान

भारतीय आध्यात्मिक परंपराओं में 'पूजा' का अर्थ अत्यंत व्यापक है

मंदिर: एक वरदान

नर सेवा को नारायण सेवा यूं ही नहीं कहा गया है

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष एस सोमनाथ द्वारा दिए गए इस सुझाव पर विचार किया जाना चाहिए कि मंदिरों में पुस्तकालय भी स्थापित किए जाएं। उन्हीं के शब्दों में -  'मंदिर केवल ऐसे स्थान नहीं होने चाहिएं, जहां बुजुर्ग भगवान का नाम जपने के लिए आएं, बल्कि इन्हें समाज में परिवर्तन लाने का स्थान भी बनना चाहिए।' निस्संदेह मंदिर-निर्माण का प्रमुख उद्देश्य तो भगवान की पूजा करना ही होता है, लेकिन भारतीय आध्यात्मिक परंपराओं में 'पूजा' का अर्थ अत्यंत व्यापक है। नर सेवा को नारायण सेवा यूं ही नहीं कहा गया है। मंदिरों के साथ सेवा और समाजोत्थान संबंधी कार्यों का लंबा इतिहास है। उदाहरण के लिए, हनुमानजी के ऐसे कई मंदिर हैं, जिनके एक हिस्से का उपयोग भगवान के पूजन और भजन-कीर्तन के लिए होता है, वहीं दूसरे हिस्से में व्यायामशाला चलाई जाती है। इस तरह मंदिर के माध्यम से आध्यात्मिक-लाभ और शारीरिक बल, दोनों प्राप्त होते हैं। हनुमान चालीसा में भी भगवान से बल, बुद्धि और विद्या की प्राप्ति के लिए प्रार्थना की गई है - 'बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार। बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।' अगर सभी मंदिरों को सेवा और समाजोत्थान के कार्यों से जोड़ दिया जाए तो देश में क्रांतिकारी बदलाव लाए जा सकते हैं। मंदिरों के साथ पुस्तकालय भी शुरू कर दिए जाएं तो इससे लोगों, खासकर युवाओं को बहुत लाभ होगा। स्कूल, कॉलेज और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियां कर रहे बच्चों के लिए संसाधनों की कमी नहीं रहेगी। वे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पाएंगे और सनातन धर्म के साथ उनका जुड़ाव भी मजबूत होगा।

Dakshin Bharat at Google News
इन दिनों जिस तरह परिवार टूट रहे हैं, कई घरों में अशांति का वातावरण बना हुआ है, रिश्तों में टकराव पैदा हो रहा है, वहां 'शिव मंदिर' इन परिवारों को एकजुट रखने में अत्यंत महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकते हैं। हमें याद रखना चाहिए कि शिवजी का परिवार प्रेमपूर्वक रहना भी सिखाता है। इसी परिवार के सदस्यों में नंदी, सर्प, सिंह, मूषक और मोर शामिल हैं, जो एक-दूसरे से भिन्न स्वभाव के होते हैं, लेकिन शिवजी की कृपा से ये अत्यंत प्रेम से रहते हैं। शिव-मंदिर के प्रांगण में बुजुर्गों, संतों और मनोवैज्ञानिकों के व्याख्यान व परामर्श सत्र आयोजित किए जा सकते हैं, जिनमें रिश्तों को निभाना, परिवार में समन्वय पैदा करना और मुश्किल हालात का मिलकर सामना करना सिखाया जाए। आज जिस तरह तलाक के मामले बढ़ते जा रहे हैं, अगर युवक-युवतियों को विवाह से पहले ही भावी जीवन के लिए 'प्रशिक्षित' कर दिया जाए तो परिवारों में ऐसी 'अप्रिय' घटनाओं को काफी हद तक टालने में मदद मिलेगी। हमारे मंदिर आमजन के स्वास्थ्य के लिए बहुत बड़े वरदान बन सकते हैं। प्राय: मंदिरों की भूमि के एक हिस्से में पेड़-पौधे लगाए जाते हैं। अगर प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेद के जानकार श्रद्धालु सहयोग करें तो वहां औषधीय पौधे लगाए जा सकते हैं। ऐसे पौधों पर क्यूआर कोड लगाकर उन्हें इंटरनेट से जोड़ा जा सकता है और लोगों को उनके बारे में विस्तृत जानकारी आसानी से मिल सकती है। यहां चिकित्सक समय-समय पर शिविर लगाकर श्रद्धालुओं की सेवा कर सकते हैं। दुनिया को वायु प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग जैसे खतरे गंभीर रूप से प्रभावित कर रहे हैं। इन खतरों को पौधे लगाने के साथ ही सौर ऊर्जा को अपनाकर टाला जा सकता है। सनातन धर्म में सूर्यदेव की जो महिमा बताई गई है, उससे पर्यावरण संरक्षण का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। अगर मंदिरों में प्रकाश व्यवस्था से लेकर प्रसाद तैयार करने तक, विभिन्न कार्यों के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग किया जाए और श्रद्धालुओं को इसकी जानकारी देते हुए प्रोत्साहित किया जाए तो कुछ ही वर्षों में हर घर सौर ऊर्जा से जगमगाने लगेगा। हमारे मंदिर दुनिया पर मंडरा रहे कई तरह के संकटों और समस्याओं से मुक्ति दिला सकते हैं। बस, उनकी शक्ति व सामर्थ्य का विवेकपूर्ण ढंग से उपयोग करने की जरूरत है। इससे उन कथित बुद्धिजीवियों को भी जवाब मिल जाएगा, जो 'दलील' देते हैं- 'मंदिर बन जाने से क्या हो जाएगा?'

About The Author

Related Posts

Dakshin Bharat Android App Download
Dakshin Bharat iOS App Download