प्राचीन इतिहास भूलते जा रहे हैं लोग: आचार्य विमलसागरसूरीश्वर

'क्षत्रियों और ब्राह्मणों का जैनधर्म में ऐतिहासिक योगदान है'

प्राचीन इतिहास भूलते जा रहे हैं लोग: आचार्य विमलसागरसूरीश्वर

'सभी जैन तीर्थंकर क्षत्रिय थे और महावीरस्वामी के सभी ग्यारह प्रमुख शिष्य ब्राह्मण थे'

गदग/दक्षिण भारत। गुरुवार को स्थानीय राजस्थान जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ के तत्वावधान में जीरावला पार्श्वनाथ सभागृह में धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्यश्री विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि क्षत्रियों और ब्राह्मणों का जैनधर्म में ऐतिहासिक योगदान है। उनकी सेवाओं को कभी विस्मृत नहीं किया जा सकता। सभी जैन तीर्थंकर क्षत्रिय थे और महावीरस्वामी के सभी ग्यारह प्रमुख शिष्य ब्राह्मण थे। इनके अलावा अनेक महान जैनाचार्य ब्राह्मण कुल में जन्म लेकर जैनधर्म में दीक्षित हुए थे।

Dakshin Bharat at Google News
आचार्यश्री रत्नप्रभसूरी ने अपने बत्तीस वर्ष के कार्यकाल में चौदह लाख लोगों को मांसाहार, शराब, जुआ, अंधविश्वास, बलिप्रथा, दुराचार और व्यसनों से मुक्त कर जैन बनाया था। यह मानवीय गुणों से संपन्न सात्विक जीवनशैली का सूत्रपात था। 

ओसवाल वंश के 2482वें स्थापना दिवस समारोह में बोलते हुए आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि हम नया इतिहास तो जानते हैं, पर प्राचीन इतिहास भूलते जा रहे हैं। वर्तान जैन समाज पर आचार्य स्वयंप्रभसूरी और आचार्यश्री रत्नप्रभसूरी का बहुत बड़ा उपकार है। ये दोनों भगवान पार्श्वनाथ की परंपरा के विद्याधर कुल के प्रभावशाली आचार्य थे। आचार्य स्वयंप्रभसूरी पूर्वी भारत से अपने पांच सौ शिष्यों के साथ करीब छब्बीस सौ वर्ष पूर्व मारवाड़ पधारे थे। 

आपके सान्निध्य में तत्कालीन श्रीमाल नगर (वर्तमान में जालोर जिले के भीनमाल) में राजा जयसेन के नेतृत्व में नब्बे हजार क्षत्रियों और ब्राह्मणों ने जैन धर्म अंगीकार किया था। उस समय जैनाचार्य ने क्षत्रियों के लिए पोरवाल और ब्राह्मणों के लिए श्रीमाली वंश की स्थापना की थी। 

आगे चलकर राजस्थान के रतनपुर के राजकुमार रत्नचूड़ ने जैन दीक्षा अंगीकार की थी। वे ही आचार्य रत्नप्रभसूरी बने, जिनके उपदेशों से श्रावण कृष्ण चतुर्दशी को तत्कालीन उपकेशपुर नगर (वर्तमान में जोधपुर के पास ओसियां) में एक लाख पच्चीस हजार क्षत्रियों ने जैनधर्म स्वीकार किया था। इन नए जैनों के लिए जैनाचार्य ने ओसवाल वंश की स्थापना की थी। वर्तमान समाज में ओसवाल, पोरवाल और श्रीमाली, ये तीन मुख्य जैन जातियां हैं। जैनों में सर्वाधिक संख्या ओसवालों की हैं। 

गुरुवार को पुष्य नक्षत्र और अमृतसिद्धि योग में गौधूली वेला में आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी और गणि पद्मविमलसागरजी के सान्निध्य में श्रीफल अभिमंत्रित करने का मंगलमय विधान हुआ। पांच सौ से अधिक साधक इस अनुष्ठान में सम्मिलित हुए। 

सचिन पोरवाल ने जानकारी दी कि श्रमण परिवार ने प्राचीन स्तोत्रों और विविध मंत्रों द्वारा यह विधान संपन्न करवाया। संघ के अध्यक्ष पंकज बाफना ने बताया कि शुक्रवार को नूतन माह के शुभारंभ के अवसर पर प्रातः पौने नौ बजे महामांगलिक की जानकारी दी।

About The Author

Dakshin Bharat Android App Download
Dakshin Bharat iOS App Download