आधुनिक साधनों के अति उपयोग से पारिवारिक व सामाजिक तानाबाना बिगड़ रहा है: संतश्री ज्ञानमुनि
जैन समाज को चाहिए कि राजस्थान अपनी जन्मभूमि से किसी न किसी तरह से जुड़े रहें: ज्ञानमुनि
'दक्षिण भारत' के समूह संपादक ने ज्ञानमुनि के दर्शन किए
बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के यलहंका स्थित सुमतिनाथ जैन संघ के तत्वावधान में चातुर्मासार्थ विराजित संतश्री ज्ञानमुनिजी के दर्शनार्थ बुधवार को 'दक्षिण भारत राष्ट्रमत’ के समूह सम्पादक श्रीकांत पाराशर जैन आराधना भवन पहुंचे। पाराशर ने ज्ञानमुनिजी व लोकेशमुनिजी के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। इस मौके पर सम्पादक श्रीकांत पाराशर ने ज्ञानमुनिजी से विभिन्न धार्मिक व सामाजिक विषयों पर चर्चा की, उसी के कुछ अंश:
साधनों की अति ही पारिवारिक अशांति का मुख्य कारणइस मौके पर पाराशर ने जब मुनिश्री से समाज में सम्पन्नता आने के बावजूद भी मानसिक शांति नहीं होने और पारिवारिक व्यवस्था में आए परिवर्तन के बारे में पूछा तो मुनिश्री ने कहा कि आज हमारी परिवारिक व्यवस्था खो गई है, युवा पीढ़ी बुर्जुगों से दूर हो गई है, बुर्जुगों से दूर होकर हम मोबाइल जैसे आधुनिक उपकरणों के नजदीक हो गए हैं। आधुनिक साधनों के अति उपयोग के चलते पारिवारिक व्यवस्था धराशायी हो गई है जिसके कारण घर में अशांति का माहौल है।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि पहले जब पर्दा प्रथा थी, तो बात आई कि पर्दा प्रथा हटाओ और जब पर्दा प्रथा हटी तो पूरी तरह से, अर्थात अधिक ही हट गई। पहनावे में फूहड़ता आ गई। इसलिए मुद्दे की बात यह है कि अति सर्वत्र वर्जयेत। अति किसी भी चीज की अच्छी नहीं। किसी भी मामले में अति होगी तो मामला गड़बड़ होगा ही।
पहले गांव छोटे थे परन्तु लोगों में प्रेम, प्रीत और वात्सल्यता अधिक थी जिसके कारण एक परिवार के लोग साथ बैठकर खाना खाते थे और एक दूसरे की खोज खबर रखते थे। पहले साधन कम थे और भावना अच्छी थी। आज साधन तो बढ़ गए हैं परन्तु मानवता कम हो गई है। हमें आधुनिक साधनों के प्रति वितृष्णा बढ़ानी होगी। यदि हम बुर्जुगों व संतों के पास जाएंगे, उनके सान्निध्य में अधिक समय बिताएंगे तो पारिवारिक ताने बाने में सुधार आएगा।
जड़ों से जुड़े रहना आवश्यक
मुनिश्री ने कहा कि हमें अपनी संस्कृति, सभ्यता व परिवार के साथ रहने के लिए अपनी जन्मभूमि से, अर्थात् जड़ों से जुड़े रहना आवश्यक है। उन्होंने उदाहरण दिया कि आज भी जालोर, सिरोही, गोड़वाड़ क्षेत्र के प्रवासी समाज के लोग अपने सामाजिक रीति रिवाज, शादी विवाह व मौत मरघट के कार्यक्रम अपने मूलनिवास अर्थात् राजस्थान जाकर ही करते हैं जिससे उनका अपनी जड़ों से जुड़ाव बना रहता है। यदि हम अपनी मातृभूमि से जुड़े रहेंगे तो मन में स्थायीपन और शांति का आभास होगा।
उन्होंने कहा कि हमें अपने मूल गांव में छोटा या बड़ा मकान अवश्य ही बनाए रखना चाहिए जिससे वहां आने जाने का सिलसिला बना रहे। जैन समाज को चाहिए कि वे राजस्थान अपनी जन्मभूमि से किसी न किसी तरह से जुड़े रहें, कारण कोई भी हो यदि हम अपनी जड़ों को ताजा रखते हैं तो हमारे जीवन के नए पत्ते हमेशा हरे रहते हैं।
संतश्री ने राजनीति के गिरते स्तर पर टिप्पणी करते हुए कहा कि आज महाराष्ट्र में भाषा विवाद सिर उठा रहा है जो कि किसी काम का नहीं है लेकिन राजनीतिक स्वार्थ के चलते राजनेता ऐसे कार्य करते रहते हैं।
अपनत्व व भावनाओं से करें युवाओं का मार्गदर्शन
युवाओं को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने की बात पर मुनिश्री ने कहा कि समाज में युवा अवश्य जुड़ेंगे केवल उन्हें अपनत्व देना होगा और उनकी मानसिक भावनाओं को समझना होगा। मुनिश्री ने सुझाव दिया कि समाज में वरिष्ठ जनों को चाहिए कि युवाओं को तरह तरह की जिम्मेदारी सौंपें और उन पर विश्वास करें। युवाओं के पास होश के साथ जोश भी होता है और वे काम अच्छा करते हैं, बस हमें उनपर विश्वास करना जरूरी है।
ज्ञानमुनिजी ने बताया कि यलहंका में लोकेशमुनिजी की निश्रा में रोजाना युवक-युवतियों को प्रतिकम्रण सिखाया जा रहा है, जो कि इसी ओर बढ़ाया हुआ एक कदम है। ज्ञानमुनिजी ने कहा कि धर्म के संस्कार यदि बच्चों में आ जाएं तो वह जिन्दगी बदल सकते हैं। उन्होंने कहा कि हमें आने वाली पीढ़ी को धर्म, संस्कार व आत्मरक्षा के गुर अवश्य सिखाने चाहिएं।
देशप्रेम होना अति आवश्यक है
नशा मुक्ति पर चर्चा करते हुए मुनिश्री ने कहा कि आज नशा एक बड़ी बीमारी है, नशा चाहे गुटके का हो, तम्बाकू का हो या सिगरेट का हो, आज यह एक विकट सामाजिक समस्या बन गई है। यदि हम हमारे युवाओं को कौशल सम्पन्न बनाएंगे तो वे गलत आदतों से दूर रहेंगे।
संतश्री ने कहा कि आज गांव विशेषकर राजस्थान में आर्थिक सम्पन्नता व रोजगार के अवसर तो अवश्य बढ़े हैं परन्तु साथ में एक नई समस्या पैदा हो गई है जो कि है विदेश जाने व वहां बस जाने की संस्कृति।
संतश्री ने कहा कि आज युवा पैदा हमारे भारत में होता है, खाता है, पीता है, बड़ा होता है, शादी भी भारत में ही करता है परन्तु बसना विदेश में चाहता है, जो कि गलत संस्कृति है। समाज के अग्रगण्य लोगों को चाहिए कि इस संस्कृति को रोकना चाहिए और अपनी नई पीढ़ी को इसके लिए जागरूक करना चाहिए। भारत एक समृद्ध संस्कृति व सभ्यता का देश है हमें अपने देश से प्रेम रखना चाहिए।
प्रदर्शन व आडंबर से बचना चाहिए
संतश्री ने समाज में चल रही देखा-देखी की होड़ व प्रदर्शन की दौड़ पर कहा कि धर्म हमेशा सादगी से करना चाहिए। धर्म में प्रदर्शन नहीं अपितु सहयोग की भावना होनी चाहिए। प्रदर्शन में होने वाले व्यय का उपयोग साधर्मिक कार्यों में करना चाहिए।
मुनिश्री ने कहा कि जो व्यक्ति समाज के लिए काम करते हैं, समाज को उनकी आर्थिक व्यवस्था की चिंता अवश्य करनी चाहिए, तभी आगे आने वाले समय में समाज के लिए कार्य करने हेतु लोग आगे आएंगे। उन्होंने कहा, प्रदर्शन व आडम्बर से बचना चाहिए। समाज के अग्र जनों को चाहिए कि बिना किसी स्वार्थ के अच्छे कार्यों को बढ़ावा दें।
संतश्री ने आजकल बड़े-बड़े महत्वपूर्ण आयोजनों के बीच हो रहे कथित सम्मान कार्यक्रमों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि आज मुख्य कार्यक्रम तो गौण हो जाता है और सम्मान समारोह प्रमुख हो जाता है जो कि अनावश्यक व अवांछनीय है। इस ओर हम सभी को चिंतन करना चाहिए। इस मौके पर यलहंका संघ के महामंत्री मनोहरलाल लुकड़, कोषाध्यक्ष मनोहरलाल मुथा भी उपस्थित थे।


