बहुत प्रभावशाली होते हैं मंत्र और अनुष्ठान: आचार्यश्री विमलसागरसूरी

तीन दिवसीय नवग्रह शांति अनुष्ठान शुरू

बहुत प्रभावशाली होते हैं मंत्र और अनुष्ठान: आचार्यश्री विमलसागरसूरी

'शहर में पहला और कर्नाटक में तीसरा बड़ा नवग्रह शांति का सामूहिक अनुष्ठान'

गदग/दक्षिण भारत। सोवार को प्रातः यहां पार्श्व बुद्धि वीर वाटिका में तीन दिवसीय नवग्रह शांति अनुष्ठान का मंगलमय शुभारंभ हुआ। आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी और गणि पद्मविमलसागरजी के सान्निध्य में आयोजित हो रहे इस अनुष्ठान में 500 से अधिक साधकों ने भाग लिया। 

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पुरुषों ने श्वेत व महिलाओं ने लाल वस्त्र धारण कर ताम्र यंत्र, वासक्षेप, कर्पूर-बरास, मोगरे के पुष्प, नैवेद्य, फल, अर्घ्य आदि पूजन सामग्री के साथ संकल्प पूर्वक अनुष्ठान में प्रवेश किया। राजस्थान जैनेशेतांबर मूर्तिपूजक संघ के तत्वावधान में आयोजित हुए इस पूजन-अनुष्ठान के बारे में संघ के अध्यक्ष पंकज बाफना ने बताया कि पहले दिन पीठिकाओं पर स्वास्तिक रचना और मंत्रोच्चारण पूर्वक तीन तीर्थंकरों की विशालकाय मनोहारी प्रतिमाओं और जयपुरी आर्ट में बनाए गए ग्रह देवताओं के यंत्रों की स्थापना की गई। 

श्रमण परिवार ने लाभार्थियों के करकमलों से अखंड ज्योत, मणिभद्र वीर, घंटाकर्ण वीर, भैरव देव और क्षेत्रपाल देव के विधान सम्पन्न करवाए। इस मौके पर आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि मंत्र-विधान और पूजन-अनुष्ठान अत्यंत प्रभावशाली होते हैं। वे वातावरण को सत्वशाली एवं शुभ बनाने की सामर्थ्य रखते हैं। मंत्रों और अनुष्ठानों से मनुष्य का आभामंडल बदल जाता है। उसमें सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। 

मंत्रों और विधि-विधानों से दैविक तत्वों को रिझाने एवं उनसे अपनी समस्याओं के निराकरण पाने के प्रयास पूर्ण मनोवैज्ञानिक हैं। ये प्रार्थना, कामना, श्रद्धा, भक्ति और आराधना का ही विशिष्ट रूप हैं। जैन और वैदिक परंपरा में अनेक प्राचीन मंत्र साधनाओं और सात्विक, पौष्टिक विधि विधानों के उल्लेख मिलते हैं। वे आधुनिक विज्ञान के संशोधन का विषय हैं। 

दलीचंद कवाड़ ने आयोजन की जानकारी देते कहा कि शहर में यह पहला और कर्नाटक में यह तीसरा बड़ा नवग्रह शांति का सामूहिक अनुष्ठान है। तीन दिन तक 9 तीर्थंकरों और नवग्रहों के छोटे व बड़े प्राचीन मंत्रों के आधार पर द्रव्यपूजन, भावपूजन, अर्घ्य अर्पण, मंत्रजाप, ग्रंथिविधान, मुद्रा विधान और आरती के साथ यह बुधवार को संपन्न होगा। 

सभी साधकों को गुरुपुष्य अमृतसिद्धि योग में बनाये गए बड़े ताम्रयंत्र प्रदान किए गए हैं। निर्मल पारेख ने बताया कि सोवार को जैनाचार्य ने नवरात्रि में आयोजित होने वाले मणिभद्र इंद्र अनुष्ठान और घंटाकर्ण वीर पूजन-हवन की घोषणा की।

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