सबरीमाला मंदिर के खुले कपाट, कोच्चि में तृप्ति देसाई का भारी विरोध
सबरीमाला मंदिर के खुले कपाट, कोच्चि में तृप्ति देसाई का भारी विरोध
तिरुवनंतपुरम। केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर के कपाट शुक्रवार को खुल गए। शाम 5 बजे कपाट खुलने से पहले ही महिलाओं के प्रवेश को लेकर यहां एक बार फिर विवाद भड़का। मंदिर में दर्शन के लिए भूमाता ब्रिगेड की संस्थापक तृप्ति देसाई शुक्रवार तड़के ही पुणे से कोच्चि पहुंच गईं। यहां लोगों ने उनका बहुत विरोध किया। तृप्ति के साथ कुछ महिलाएं भी थीं।
यहां लोगों ने तृप्ति देसाई का इतना तीखा विरोध किया कि वे हवाईअड्डे से बाहर भी नहीं निकल पाईं। विभिन्न रिपोर्टों में बताया गया कि वे करीब 12 घंटे तक हवाईअड्डे में ही रहीं और दोबारा पुणे लौटने का इरादा कर रही थीं। उन्होंने कहा कि वे ऐसा कोई काम नहीं करेंगी कि केरल में कानून व्यवस्था बिगड़ने का डर हो।इससे पहले उन्होंने कहा था कि वे भगवान अयप्पा के दर्शन करने के लिए मंदिर जाएंगी। उनके आने की सूचना के चलते कोच्चि हवाईअड्डे के बाहर प्रदर्शनकारी विरोध करने लगे। बता दें कि सबरीमाला मंदिर के द्वार अब दो महीने के लिए खुले हैं। यहां परंपरागत धार्मिक रीतियों का पालन करते हुए वार्षिक पूजा की गई। मंदिर परिसर में भारी पुलिसबल तैनात किया गया था। मंदिर के कपाट खुलने से पहले ही यहां विवाद होने की आशंका जताई जा रही थी। इसलिए प्रशासन ने सुरक्षा व्यवस्था पर खास जोर दिया।
तृप्ति देसाई के आते ही कई प्रदर्शनकारी उनके विरोध में नारे लगाने लगे। उन्होंने आरोप लगाया कि तृप्ति भक्तिभाव से नहीं बल्कि मंदिर की परंपरा तोड़ने और माहौल में अशांति फैलाने आई हैं। स्थानीय टैक्सी चालकों ने भी तृप्ति और उनकी साथियों को धार्मिक स्थल की ओर ले जाने से इनकार कर दिया। दूसरी ओर तृप्ति देसाई ने बताया कि वे दर्शन के बाद ही लौटेंगी। उन्होंने कहा कि केरल सरकार से सुरक्षा मांगी गई है और मुख्यमंत्री को ईमेल भी भेजा गया है। हालांकि उन्हें इनकार कर दिया गया। तृप्ति देसाई ने आरोप लगाया कि प्रदर्शनकारियों ने टैक्सी चालकों और होटलकर्मियों को धमकी दी थी।
मंदिर और उसके आसपास के इलाकों में सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध किए गए। यहां लगभग 15 हजार पुलिसकर्मी तैनात किए गए, जो हालात पर नजर बनाए हुए थे। गुरुवार रात को ही मंदिर और करीबी इलाकों में धारा 144 लागू कर दी गई थी। बता दें कि उच्चतम न्यायालय ने 28 सितंबर को एक फैसले में सभी महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति दे दी थी। यहां एक परंपरा के तहत 10 से 50 साल उम्र वाली महिलाओं का प्रवेश वर्जित था। उसके बाद महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर काफी विवाद हुआ। केरल सरकार ने एक सर्वदलीय बैठक भी बुलाई जो किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच सकी।
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