भारत का करारा जवाब
पाकिस्तान ने कोई हिमाकत की तो भारत की ओर से घातक जवाब मिलेगा
'ऑपरेशन सिंदूर' इसकी शानदार मिसाल है
भारतीय सुरक्षा बलों ने 'ऑपरेशन महादेव' के तहत पहलगाम हमले के गुनहगार तीन आतंकवादियों का खात्मा कर सराहनीय कार्य किया है। देश को पूरा भरोसा था कि पहलगाम में निर्दोष नागरिकों की हत्याएं करने वालों को हमारे सुरक्षा बल बख्शेंगे नहीं; भले ही कुछ समय लग जाए। आखिरकार यही हुआ। पहलगाम की घटना को अंजाम देने वाले आतंकवादियों का खात्मा तय था, लेकिन 'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत जिस तरह पीओके से लेकर पाकिस्तान में चल रहे आतंकी अड्डों और पाकिस्तानी सैन्य ठिकानों को उड़ाया गया, उससे इस पड़ोसी देश में खौफ का माहौल है। आज जो लोग कह रहे हैं कि ऑपरेशन से क्या हासिल हुआ, उन्हें एक बार पाकिस्तानी समाचार चैनलों और सोशल मीडिया पेजों को देखना चाहिए। भारतीय मिसाइलों ने जिस तरह अग्नि बरसाई थी, उसकी तपिश वहां अब तक महसूस की जा रही है। पाकिस्तान भलीभांति समझ चुका है कि अगर उसने अब कोई हिमाकत की, तो भारत की ओर से जो जवाब आएगा, वह और ज्यादा घातक होगा। जो नेता भारतीय सशस्त्र बलों की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए यह कह रहे हैं कि 'देश पहलगाम हमले के आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर नहीं, ऑपरेशन तंदूर चाहता था', उन्हें समझना होगा कि इस बार तो पाकिस्तान ने खुद स्वीकार किया कि उसके यहां जबर्दस्त तबाही मची थी। कई अंतरराष्ट्रीय चैनलों ने दिखाया कि भारतीय मिसाइलें कंक्रीट और लोहे से बनीं मजबूत इमारतों (जिनमें पाकिस्तानी आतंकवादी मौजूद थे) को इस तरह काटती हुईं अपने लक्ष्य तक पहुंचीं, जैसे तेज धारदार चाकू किसी केक को काट देता है। जब मिसाइलों में धमाके हुए तो वे इमारतें आतंकवादियों के लिए तंदूर ही बन गई थीं।
कुछ नेतागण अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बयानबाजी का जिक्र कर रहे हैं। वे ट्रंप के बयानों को इतनी गंभीरता से क्यों ले रहे हैं? क्या वे नहीं जानते कि ये अमेरिकी नेता मौके का फायदा उठाते हुए वाहवाही पाने की कोशिश कर रहे हैं? ट्रंप नोबेल पुरस्कार लेने के लिए बार-बार ऐसे बयान दे रहे हैं, जिनसे अमेरिकी राष्ट्रपति पद की प्रतिष्ठा धूमिल हो रही है। अब अमेरिका में ही लोग उनकी बातों को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। ट्रंप सुर्खियां बटोरने के लिए कुछ भी कह सकते हैं। वे आज भारत-पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध रुकवाने का दावा कर रहे हैं। हो सकता है कि वे अगले महीने यह दावा कर दें कि उन्होंने धरती की ओर बढ़ रहे एलियंस को मार भगाया और दुनिया की रक्षा की, लिहाजा उन्हें इतिहास के सबसे 'महान रक्षक' की उपाधि दे दी जाए! असम के एक वरिष्ठ नेता पूछते हैं- 'सरकार बताए कि ऑपरेशन सिंदूर क्यों रोका गया?' बेशक सवाल पूछना उनका हक है। नेतागण को राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित सवाल पूछते समय उससे जुड़े कुछ पहलुओं का भी ध्यान रखना चाहिए। 'ऑपरेशन सिंदूर' बंद नहीं हुआ है। अभी पाकिस्तान की हरकतों पर कड़ी नजर रखी जा रही है। भारत सरकार ने बहुत सूझबूझ के साथ यह फैसला लिया है। हमें किसी सूरत में वह गलती नहीं करनी है, जो रूस ने यूक्रेन में की थी। कई अंतरराष्ट्रीय ताकतें चाहती हैं कि भारत फौरन युद्ध में कूदे और उसमें बुरी तरह फंस जाए, ताकि उसकी अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हो। एक बड़ा युद्ध हमें कई साल पीछे ले जा सकता है। क्या हमारे देशवासियों पर यह बोझ डालना चाहिए, वह भी उस पड़ोसी देश की वजह से जो पहले ही बर्बाद है? जवाब है- नहीं, हमें बहुत सोच-समझकर आगे बढ़ना चाहिए। अगर भविष्य में दोबारा संघर्ष की स्थिति पैदा हो तो अपने नागरिकों का जीवन सुरक्षित करना चाहिए, संघर्ष को कुछ ही क्षेत्रों में सीमित रखते हुए दुश्मन को ऐसा नुकसान पहुंचाना चाहिए कि वह कई वर्षों तक उसकी भरपाई करने में ही व्यस्त रहे। 'ऑपरेशन सिंदूर' इसकी शानदार मिसाल है। हमें इसके अनुभवों से शिक्षा लेते हुए भविष्य के लिए तैयारी करनी चाहिए।

