तप से तन और मन दोनों की शुद्धि होती है: मुनिश्री पुलकित कुमार
'इसे धर्म शास्त्रों में दुःख मिटाने का उत्तम उपाय बताया गया है'
' श्रावक समाज में तपस्या की लड़ी लगनी चाहिए'
बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के तेरापंथ भवन गांधीनगर में चातुर्मासार्थ विराजित मुनि डॉ. पुलकित कुमारजी सहवर्ती आदित्य कुमारजी ने मंगलवार को मीना देवी की तपस्या के प्रत्याख्यान के अवसर पर अपने प्रवचन में कहा कि शरीर के लिए जितना जरूरी अन्न है, उतना ही जरूरी है तपस्या करना।
तप से तन और मन दोनों की शुद्धि होती है। इसे धर्म शास्त्रों में दुःख मिटाने का उत्तम उपाय बताया है। धार्मिक व्यक्ति के लिए अनेक प्रकार की समाधि प्राप्ति का विधान है उनमें एक मुख्य है तप की समाधि।मुनिश्री ने विनय समाधि की भी विस्तार से विवेचना की। मुनिश्री ने कहा कि अभी सावन के महीने में जैसे बरसात की झड़ी लगती है वैसे ही श्रावक समाज में तपस्या की लड़ी लगनी चाहिए।
मुनिश्री ने उपस्थित सभी श्रावक समाज को राजस्थानी भाषा में ‘तपस्या रो बादलियो बरस्यो’ गीत के माध्यम से तपस्या करने की सलाह दी। मुनि आदित्य कुमार जी ने तप की अनुमोदना में गीत प्रस्तुत किया। तपस्विनी मीना सुरेश दक को मुनिश्री ने जैसे ही 21 की तपस्या का प्रत्याख्यान करवाया वैसे ही तेरापंथ भवन ओ अर्ह की मंगल ध्वनि से गूंज उठा।
टीना मांडोत ने नौ तपस्या का पच्चखान किया। तेरापंथ सभा की तरफ से सभा के अध्यक्ष पारसमल भंसाली सहित अन्य पदाधिकारियों ने तपस्वियों का सम्मान किया।कार्यक्रम का संचालन मंत्री विनोद छाजेड़ ने किया।


