समत्व है तो आत्मा मोक्ष की अधिकारी बन जाती है: आचार्यश्री प्रभाकरसूरी
नेमीनाथ प्रभु के जन्म तथा च्यवन कल्याणक की भावपूर्ण प्रस्तुति दी गई
जीवन में सुख-दुख आते रहते हैं लेकिन साधक दोनों परिस्थितियों को सम्भालते हैं
बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के महालक्ष्मी लेआउट स्थित चिंतामणि पार्श्वनाथ जैन मंदिर में चातुर्मासार्थ विराजित आचार्यश्री प्रभाकरसूरीश्वरजी व साध्वीश्री तत्वत्रयाश्रीजी की निश्रा में मंगलवार को 22वें तीर्थंकर नेमीनाथ भगवान का जन्म व च्यवन कल्याणक महोत्सव मनाया गया।
नेमीनाथ प्रभु के जन्म तथा च्यवन कल्याणक की भावपूर्ण प्रस्तुति दी गई। कार्यक्रम में प्रभु के माता-पिता, इंद्र-इंद्राणी, नगरसेठ, महामंत्री, सेनापति, कोषाध्यक्ष, प्रियवंदना, राजज्योतिषी के पात्रों में लाभार्थी परिवार के लोगों ने भाग लिया।आचार्यश्री ने अपने प्रवचन में कहा कि भगवान नेमीनाथ का जीवन भगवान बनने के पूर्व सामान्य था, लेकिन उन्होंने जीवन को सफल बनाने के लिए तप, साधना व वैराग्य प्राप्ति के कार्य किए। नेमीनाथ का जीवन तब तेजस्वी बना। देवता भी उनका वंदन करते हैं। भगवान नेमीनाथ ने जीवन को संयमी बनाया और जीव दया की प्रेरणा दी।
संतश्री ने कहा कि यदि समत्व है तो आत्मा मोक्ष की अधिकारी बन जाती है। संत किसी प्रकार के भाव के अहसास से परे होकर आत्म साधना में विलीन रहते हैं। जीवन में सुख-दुख आते रहते हैं लेकिन साधक दोनों परिस्थितियों को सम्भालते हैं।
आचार्यश्री ने कहा कि परमात्मा के च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान तथा निर्वाण के समय चौदह राजलोक के जीवमात्र को आनंद तथा प्रकाश की अनुभूति होती है। दुःखों की भट्टी में प्रतिपल झुलस रहे नरक के प्राणियों को भी सुख की सांस नसीब होती है।
मंदिर में परमात्मा नेमीनाथ भगवान का महाअभिषेक किया गया। अभिषेक का विधिविधान धनंजय गुरु ने कराया। विजेश व टीम ने संगीत की प्रस्तुति दी। सभा में मुनिश्री महापद्मविजयजी, पद्मविजयजी, साध्वी तत्वत्रयाश्रीजी, गोयमरत्नाश्रीजी व परमप्रज्ञाश्रीजी उपस्थित थे।


