अभिमान व्यक्तित्व का पतन और स्वाभिमान जीवन का सम्मान है: आचार्यश्री प्रभाकरसूरी
'अपना ज्यादा से ज्यादा समय आत्मकल्याण करने में लगाना चाहिए'
'खोया हुआ समय किसी प्रकार नहीं लौट सकता'
बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के महालक्ष्मी लेआउट स्थित चिंतामणि पार्श्वनाथ जैन मंदिर में चातुर्मासार्थ विराजित आचार्यश्री प्रभाकरसूरीश्वरजी व साध्वीश्री तत्वत्रयाश्रीजी की निश्रा में अपने प्रवचन में आचार्यश्री ने कहा कि हमें जिसमें सुख की अनूभूति होती है उस कार्य को करने के लिए हम समय नहीं देखते हैं, लेकिन हम हमारे आत्मकल्याण के कार्यो को करने में प्रायः समय देखते हैं।
आचार्यश्री ने कहा कि हमारा जीवन भी घड़ी के तीन कांटों के समान है, सेकेंड का कांटा हमारा बचपन है जो तीव्र गति से चला जाता है, मिनट का कांटा हमारी युवावस्था है जो सेकेंड के कांटे से थोड़ा धीरे चलता है और भौतिक सुख सुविधाओं की प्राप्ति में पूर्ण हो जाता है। घण्टे का कांटा हमारी वृद्धावस्था है जो धीरे धीरे चलता है और कब रुक जाए ये हमें मालूम ही नहीं चलता।हम बचपन नादानी, नासमझ में गंवा देते हैं। जवानी भौतिक सुखों में मशगूल रहकर गंवा देते हैं और वृद्धावस्था में हम शरीर की आसक्ति की वजह से कोई भी धार्मिक क्रिया और कार्य नहीं कर पाते हैं, इसलिए हमें अपना ज्यादा से ज्यादा समय आत्मकल्याण करने में लगाना चाहिए।
संतश्री ने कहा कि जिस तरह खोई हुई दौलत फिर कमाई जा सकती है, भूली हुई विद्या फिर याद की जा सकती है, खोया हुआ स्वास्थ्य चिकित्सा द्वारा लौटाया जा सकता है, पर खोया हुआ समय किसी प्रकार नहीं लौट सकता, उसके लिए केवल पश्चाताप ही शेष रह जाता है।
आचार्यश्री ने बताया कि कभी भी अभिमान नहीं करना चाहिए। अभिमान को सम्मान में परिवर्तित करने का प्रयास करना चाहिए। अभिमान से विद्या गौण होती है विनय व समकित चला जाता है। अभिमान तमाम गुणों का समाप्त कर देता है। अभिमान व्यक्तित्व का पतन है और स्वाभिमान जीवन का सम्मान है।
सभा में मुनिश्री महापद्मविजयजी, पद्मविजयजी, साध्वी तत्वत्रयाश्रीजी, गोयमरत्नाश्रीजी व परमप्रज्ञाश्रीजी उपस्थित थे।


