जीवन में सच्ची श्रद्धा से आत्मा परमात्मा बन सकती है: संतश्री वरुणमुनि

श्रद्धा की महिमा अपरंपार है

जीवन में सच्ची श्रद्धा से आत्मा परमात्मा बन सकती है: संतश्री वरुणमुनि

जो हमें जीवन जीने का सही रास्ता दिखाएं, वही सच्चे गुरु होते हैं

बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के गांधीनगर गुजराती जैन संघ में चातुर्मासार्थ विराजित श्रमण संघीय उपप्रवर्तक पंकजमुनिजी की निश्रा में रुपेश मुनि जी म. सा. ने मधुर भजन प्रस्तुत किया। मुनि डॉ. वरुणमुनिजी ने कहा कि श्रद्धा की महिमा अपरंपार है। 

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यदि जीवन में श्रद्धा आ जाए, तो आत्मा परमात्मा बन सकती हैं । रामकृष्ण परमहंस ने कहा है कि जिस आत्मा में संवेग की धारा का प्रवाह होता है, उसकी श्रद्धा एवं ब्रह्मचर्य सुदृढ़ होता है और वह आत्मा शीघ्र आत्मज्ञान को प्राप्त कर लेती है। जीवन में श्रद्धा का आना अत्यंत दुर्लभ है। 

संशय से आत्मा का विनाश होता है । शास्त्र यह भी कहते हैं की श्रद्धा पाप विमोचनी अर्थात अश्रद्धा भयंकर पाप है एवं श्रद्धा ही पापों को हरने वाली है। जिस प्रकार एक नहर में अनेक मोड़ होते हैं, घुमाव होते हैं ताकि पानी की गति निरंतर बनी रहे । 

इसी प्रकार से क्रांति जीवन को एक मोड़ देती हैं और जब-जब समाज में, देश में मूल्यों की गिरावट होती है, तबतब महापुरुष समाज और देश को एक नया मोड़ देते हैं, एक नई दिशा देते हैं। क्रांति करने वाले क्रांतिकारी होते हैं । क्रांति दो प्रकार की होती है। पहले रक्तिम क्रांति या हिंसक क्रांति या खूनी क्रांति। 

संतश्री ने कहा कि वाल्मीकि ने राम का उल्टा मरा-मरा का जाप करते हुए भी अपने जीवन को सीधा कर दिया और रामायण की संस्कृत में रचना कर डाली । पत्नी मोह से ग्रस्त तुलसीदासजी को जब पत्नी ने समझाया कि यदि आप चाम की बजाय राम से प्यार करते तो आपका बेड़ा पार हो जाता । 

इतना सुनकर उन्होंने अपना मन राम में लगा दिया और रामचरितमानस नामक ग्रंथ की रचना की। वासना का कीड़ा जब उपासना में लग जाएं, तभी जीवन में क्रांति घटित होती है। जो हमें जीवन जीने का सही रास्ता दिखाएं, जीवन जीने की कला सिखाएं, पाप से पुण्य की ओर, अधर्म से धर्म की ओर, बंध से निर्जरा की ओर ले जाएं, वही हमारे सच्चे गुरु होते हैं। जीवन में दीपक की भांति जलकर रोशनी देने वाले बहुत कम है। 

अगरबत्ती की भांति जलकर सुगंध देने वाले बहुत कम है, किंतु चंडकौशिक की भांति डंक मारने वाले बहुत मिल जाएंगे । यदि बनना है तो महावीर बनें, जिन्होंने विषधर चंडकौशिक को भी दिशा देकर दुर्गति से बचा लिया ।  

सभा का संचालन राजेश भाई मेहता ने किया। 

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