
यह डर अच्छा है
पाकिस्तान में भी रक्षा विश्लेषक दबी जुबान से यह स्वीकार करने लगे हैं कि अब 'पहले जैसी बात' नहीं रही
अगर अब भारत में आतंकवादी घटना हुई तो नई दिल्ली कोई कड़ा कदम उठाने से नहीं हिचकेगी
अमेरिकी खुफिया तंत्र ने पाकिस्तान और चीन की 'गतिविधियों' के संबंध में भारत सरकार के रुख को लेकर जो रिपोर्ट जारी की है, उसमें ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे आश्चर्यजनक माना जाए। इसका यह कहना कि पाकिस्तान के ‘कथित या वास्तविक’ उकसावों की स्थिति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पहले की तुलना में भारत द्वारा कहीं अधिक सैन्य बल के जरिए जवाबी कार्रवाई किए जाने की आशंका है', उचित ही है।
मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत कम से कम दो बार डंके की चोट पर ऐसा कर चुका है। उरी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक और पुलवामा हमले के बाद एयर स्ट्राइक कर भारत ने अपनी नीति पहले ही स्पष्ट कर दी थी, जिसकी पुष्टि अमेरिकी खुफिया विभाग कर रहा है। वैसे कुछ लोगों को किसी बात पर तब ही विश्वास होता है, जब पश्चिम से उसके समर्थन में बयान आए। मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही पाक के खिलाफ कड़ा रुख अपनाकर संदेश दे दिया था कि अब आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक की, लेकिन यहां कुछ 'बुद्धिजीवी' उसके सबूत मांगने लगे थे। अब उन्हें अमेरिका से सबूत मांगना चाहिए! अमेरिकी खुफिया तंत्र के वार्षिक खतरे के आकलन का हिस्सा रही यह रिपोर्ट राष्ट्रीय खुफिया निदेशक के कार्यालय द्वारा अमेरिकी कांग्रेस के समक्ष प्रस्तुत की जाती है, जिसे बहुत गंभीरता से लिया जाता है।
रिपोर्ट का यह कथन आधा सही है कि 'भारत-चीन द्विपक्षीय सीमा विवाद को बातचीत के जरिए सुलझाने में लगे हुए हैं।' वास्तव में इस विवाद को सुलझाने के लिए भारत की ओर से ईमानदारी से कोशिश की जा रही है। चीन का रुख तो 'नाटक' ही लगता है। वह एक दौर की बातचीत के बाद एलएसी पर ऐसी कोई गतिविधि कर देता है, जिससे तनाव पैदा हो जाता है।
रिपोर्ट के इन शब्दों पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि 'साल 2020 में दोनों देशों की सेनाओं के बीच हुए संघर्ष के मद्देनजर संबंध तनावपूर्ण ही रहेंगे।' यहां गलवान घाटी में हुए टकराव का उल्लेख किया गया है। वास्तव में इस तनाव को दूर करना काफी हद तक चीन पर निर्भर करता है। अगर वह अपने रुख में सकारात्मक बदलाव लाएगा तो संबंध सामान्य हो सकते हैं, लेकिन चीन की नीयत में खोट साफ नजर आता है।
दिसंबर 2022 में उसकी फौज ने तवांग में घुसपैठ की कोशिश की, जिसका भारतीय सेना ने मुंहतोड़ जवाब दिया था। इसलिए ऐसा प्रतीत नहीं होता कि चीन के रवैए में जल्द कोई सुधार आ सकता है, लेकिन भारत की नीति स्पष्ट है। जब गलवान में भारत के 20 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए थे तो प्रधानमंत्री ने कहा था कि 'देश को गर्व है, हमारे जवान मारते-मारते मरे हैं।'
देशवासियों ने इस बयान का स्वागत किया था। उक्त रिपोर्ट ने इस बात पर मुहर लगा दी है कि पाकिस्तान का आतंकवादी संगठनों का समर्थन करने का लंबा इतिहास रहा है और अब उसके उकसावे का जवाब भारत द्वारा मोदी के नेतृत्व में पहले से कहीं अधिक सैन्य बल के जरिए दिया जा सकता है। इन शब्दों से ज्यादातर भारतवासी सहमत होंगे। भारतीय सेना द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम देने के बाद देशवासियों में एक भरोसा पैदा हो गया कि अगर कोई आतंकवादी यहां गतिविधियां करेगा तो उसका निश्चित रूप से जवाब दिया जाएगा।
वहीं, पाकिस्तान में भी रक्षा विश्लेषक दबी जुबान से यह स्वीकार करने लगे हैं कि अब 'पहले जैसी बात' नहीं रही, अगर अब भारत में आतंकवादी घटना हुई तो नई दिल्ली कोई कड़ा कदम उठाने से नहीं हिचकेगी। यह डर अच्छा है, दुश्मन के दिल में भारत को लेकर यह डर होना ही चाहिए। अगर हम पहले ही यह पैदा करने के लिए कड़े कदम उठा लेते तो पाक की इतनी जुर्रत नहीं होती कि वह भारत की जमीन पर आतंकवाद को फैलाने की कोशिश करता।
निस्संदेह पाकिस्तान एक-दो बड़ी कार्रवाइयों से सुधरने वाला नहीं है। अगर वह फिर कोई 'दुस्साहस' करे तो भारत को पिछली बार की तुलना में ज्यादा ताकत से प्रहार करना होगा। यही वो सबसे बेहतर तरीका है, जिससे पाक को 'सीधे रास्ते' पर लाया जा सकता है।
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