अध्यात्म हमें मुक्ति दिलाने का कार्य करता है: मुनि मलयप्रभसागर
'धर्म और अध्यात्म की भेद रेखा हमें जाननी और समझनी है'
' हमारा जीवन अभी देह केंद्रित है'
बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के जिनकुशलसूरी जैन दादावाड़ी ट्रस्ट बसवनगुड़ी के तत्वावधान में चातुर्मास हेतु विराजित मुनि मलयप्रभसागरजी ने अपने प्रवचन में कहा कि हर व्यक्ति को प्रारंभिक रूप में कुछ सीखना होता है जो कि जीवन में धर्म के लिए भूमिका तैयार करता है। प्रारंभिक रूप से किया जाने वाला कर्म ही धर्म है, उसके पश्चात अध्यात्म में हम प्रवेश करते हैं।
बच्चा जब जन्म लेता है तब अपने आत्म स्वरूप में आता है। जब परिवार और कर्मों का सहयोग उस आत्मा को मिलता है तब उसे धर्म की सीढ़ी मिलती है। अध्यात्म में प्रवेश करने से पहले उसे धर्म को ग्रहण करना होता है। धर्म हमारे चारों तरफ सुरक्षा चक्र बनाता है जो कि हमारी बाहर की बातों से सुरक्षा करता है।धर्म हमें बंधन में लाने की शुरुआती भूमिका निभाता है और बांधने के बाद अध्यात्म हमें मुक्ति दिलाने का कार्य करता है। हमारी आत्मा के विकास का कार्य अध्यात्म करता है। परमात्मा ने बताया है कि 22 परिषहों को सोचकर, जानकर और उनको आचरण में उतार कर एवं उन्हें जीतकर हमारे कर्मों को परास्त करना है, यही सम्यक दर्शन, ज्ञान, चरित्र और तप है।
धर्म और अध्यात्म की भेद रेखा हमें जाननी और समझनी है। हम श्रावक जीवन में रहकर भी आध्यात्म में जी सकते हैं। हमारा जीवन अभी देह केंद्रित है और उसे आत्म केंद्रित बनाना है। जब यह देह से ऊपर उठकर आत्म केंद्रित हो जाएगा उस दिन हमें आत्मा का सही बोध हो जाएगा।


