ऊंचे नंबर, ऊंची रैंक ... पेशेवर जीवन में सफलता के लिए क्या है जरूरी? सीजेआई ने बताया

उन्होंने याद किया कि वे एक प्रतिभाशाली छात्र थे, लेकिन ...

ऊंचे नंबर, ऊंची रैंक ... पेशेवर जीवन में सफलता के लिए क्या है जरूरी? सीजेआई ने बताया

कहा- 'परीक्षा में आपकी रैंक पर मत जाइए'

पणजी/दक्षिण भारत। सीजेआई बीआर गवई ने शनिवार को कहा कि पेशेवर जीवन में सफलता का स्तर परीक्षा परिणामों से नहीं, बल्कि दृढ़ संकल्प, कड़ी मेहनत, समर्पण और काम के लिए प्रतिबद्धता से निर्धारित होता है। उन्होंने याद किया कि वे एक प्रतिभाशाली छात्र थे, लेकिन कक्षाएं छोड़ देते थे।

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पणजी के निकट मीरामार में वीएम सलगांवकर कॉलेज ऑफ लॉ के स्वर्ण जयंती समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि कानूनी शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन आया है।
 
उन्होंने लॉ कॉलेज के छात्रों से कहा, 'परीक्षा में आपकी रैंक पर मत जाइए, क्योंकि परिणाम यह निर्धारित नहीं करते कि आप किस स्तर की सफलता प्राप्त करेंगे। आपका दृढ़ संकल्प, कड़ी मेहनत, समर्पण और पेशे के लिए प्रतिबद्धता ही मायने रखती है।'

उन्होंने याद किया कि जब वे मुंबई के सरकारी लॉ कॉलेज में पढ़ रहे थे, तो कक्षाएं छोड़कर कॉलेज की दीवार पर बैठते थे, और कक्षा में उनकी उपस्थिति दर्ज कराने वाले दोस्तों पर निर्भर रहते थे।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, '(कानून की डिग्री के) आखिरी साल में मुझे अमरावती जाना पड़ा, क्योंकि मेरे पिता (महाराष्ट्र) विधान परिषद के अध्यक्ष थे। मुंबई में हमारा घर नहीं था। जब मैं अमरावती में था तो मैं लगभग आधा दर्जन बार ही कॉलेज गया था। मेरे एक मित्र, जो बाद में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने, मेरे पास आते-जाते थे।'

बता दें कि सीजेआई गवई के पिता आरएस गवई, जो रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (गवई) के संस्थापक थे, साल 1978 से 1982 तक महाराष्ट्र विधान परिषद के अध्यक्ष रहे थे। बाद में वे बिहार, सिक्किम और केरल के राज्यपाल बने।

सीजेआई ने आगे कहा कि परिणामों में शीर्ष स्थान पाने वाला छात्र आगे चलकर फौजदारी वकील बना, जबकि दूसरा स्थान पाने वाला छात्र उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बना।

उन्होंने कहा, 'और तीसरा मैं था, जो अब भारत का मुख्य न्यायाधीश हूं।'

उन्होंने बताया कि वे कॉलेज गए बिना ही मेरिट सूची में तीसरे स्थान पर रहे, लेकिन किताबें पढ़ते रहे और पांच साल तक परीक्षा के प्रश्नपत्र हल करते रहे।

छात्रों का उल्लेख करते हुए सीजेआई ने कहा, 'अब आप काफी भाग्यशाली हैं कि पांच वर्षीय पाठ्यक्रम के आगमन के साथ, कानूनी शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन आ गया है।'

उन्होंने कहा, 'जब मैं बंबई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में मूट कोर्ट की अध्यक्षता करता था और छात्रों की दलीलें सुनता था, तो कभी-कभी मुझे लगता था कि उच्च न्यायालय के वकीलों को मूट कोर्ट में उपस्थित होना चाहिए और युवा वकीलों से सीखना चाहिए कि अदालत में कैसे बहस की जाए।'

सीजेआई के अनुसार, आज प्रदान किया जाने वाला व्यावहारिक प्रशिक्षण छात्रों को वकील के रूप में अपना करियर बनाने में मदद करता है।

उन्होंने कहा, 'हमारे पास बहुत सारे प्रशिक्षु हैं और उनके पास जो गहन ज्ञान है, उसका अनुकरण करने का प्रयास अवश्य करना चाहिए।'

कनिष्ठ वकीलों के समक्ष आने वाली समस्याओं के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा कि वरिष्ठ वकीलों द्वारा कनिष्ठ वकीलों को दिया जाने वाला वजीफा बहुत कम है, जिससे उनका गुजारा करना मुश्किल हो जाता है।

सीजेआई गवई ने कहा कि कानूनी सहायता का लाभ देश के सुदूरतम हिस्से तक पहुंचना चाहिए।

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