कल्पसूत्र श्रवण करके श्रावक भवसागर से पार हो जाते हैं: आचार्य प्रभाकरसूरी
आचार्यश्री ने कल्पसूत्र महाग्रंथ का वाचन किया
'कल्पसूत्र आगमग्रंथों में सर्वाधिक उपकारी ग्रंथ है'
बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के महालक्ष्मी लेआउट स्थित चिंतामणि पार्श्वनाथ जैन मंदिर में चातुर्मासार्थ विराजित आचार्यश्री प्रभाकरसूरीश्वरजी ने पर्युषण पर्व के चौथे दिन पर अपने प्रवचन में मनोजकुमार, दिनेशकुमार, विक्रमकुमार छाजेड़ परिवार द्वारा आचार्यश्री को कल्पसूत्र ग्रंथ प्रदान किया गया। अध्यक्ष नरेश बंबोरी परिवार द्वारा अष्टप्रकारी पूजन एवं सभी लाभार्थी परिवारों द्वारा कल्पसूत्र की ज्ञान पूजा की।
आचार्यश्री ने कल्पसूत्र महाग्रंथ का वाचन करते हुए कहा कि कल्पसूत्र आगमग्रंथों में सर्वाधिक उपकारी ग्रंथ है। पूर्वधर श्रुत के वली आर्यवर श्रीभद्रबाहु स्वामीजी द्वारा कल्पसूत्र की रचना करने से जैन समाज का इतिहास अमर हो गया है। इसका श्रवण करके श्रावक भवसागर से पार हो जाते हैं।पूर्व में कल्पसूत्र का वाचन व श्रवण के बल साधु-साध्वी मंडल द्वारा ही किया जाता था लेकिन वर्तमान समय में कल्पसूत्र का वाचन गृहस्थ श्रावकों के मध्य किया जाता है, क्योंकि इस पवित्र ग्रंथ के श्रवण मात्र से ही प्राणियों के दुःख, पाप और संताप का क्षय होता है। जैसे रामायण, गीता का जिस तरह अपने अपने धर्मो में महत्व है, वैसे ही जैन जगत में कल्पसूत्र का अपना एक प्रमुख स्थान है।
आचार्यश्री ने कहा कि कल्पसूत्र को ध्यान से सुनने से आठ भवों में मोक्ष मिलता है।ग्रंथ के संबंध में कहा कि चातुर्मास में एक जगह रहना स्थिरता का प्रतीक है। जैन दर्शन में कल्पसूत्र ग्रंथ के वाचन की सुव्यवस्थित विधि है। इसका वाचन एवं श्रवण करने वाले जीवात्मा निश्चय ही आठवें भव तक मोक्ष सुख को प्राप्त होते हैं। इस महान पवित्र ग्रंथ में प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव से लेकर भगवान महावीर तक साधुओं के प्रायश्चित कर्म में जड़ का वर्णन है।
आचार्य ने कहा कि कल्पसूत्र को जो मनुष्य सर्व अक्षरश ध्यान से सुनता है। वह जीव आठ भवों में मोक्ष को जाता है।
प्रवचन में महावीर स्वामी के पारणा घर लेकर जाने का आदेश मेघराज कांतिलाल बेताला परिवार को मिला। जयंतीलाल श्रीश्रीमाल ने बताया कि प्रवचन में काफी संख्या में श्रद्धालुओं की उपस्थिति थीं।


