जीवन ऐसा बनाओ कि लोगों के हाथों में पूंजनी थमा सको: डॉ. समकित मुनि
'सूर्यास्त के समय द्रव्य अंधकार छा जाता है'
'सच्ची सेवा श्रद्धा के बिना संभव नहीं है'
चेन्नई/दक्षिण भारत। यहां के पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम जैन मेमोरियल ट्रस्ट में पर्व पर्युषण के छठे दिवस पर प्रवचन देते हुए जयवंत मुनिजी म.सा ने कहा कि प्रभु महावीर ने बताया है कि संसार के अधिकांश प्राणी अंधकार में जीते हैं। ज्ञानियों ने समझाया कि अंधकार दो प्रकार का होता है - द्रव्य और भाव। दोनों ही अत्यंत खतरनाक हैं। सूर्यास्त के समय द्रव्य अंधकार छा जाता है, और अंधकार में जीव सक्रिय हो जाते हैं जिससे पाप की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि चोरी भी प्रायः रात में ही होती है क्योंकि तब उजाला नहीं होता। प्रवचन को आगे बढ़ाते हुए डॉ. समकित मुनिजी ने कहा कि धर्म ने हमें न जाने कितनी बार बचाया है। समय बहुत शक्तिशाली होता है, यह किसी का सगा नहीं होता।उन्होंने उदाहरण दिया कि केवल 25 सेकंड का भूकंप ही सबकुछ तहस-नहस कर देता है। धन कमाने में वर्षों लगते हैं, लेकिन नष्ट होने में एक पल भी नहीं लगता। इसलिए जब तक शरीर स्वस्थ है और हाथ-पाँव चल रहे हैं, तब तक धर्म, दान और पुण्य का कार्य करते रहना चाहिए।
मुनिजी ने कहा कि जीवन ऐसा होना चाहिए कि हम लोगों के हाथों में हथियार नहीं बल्कि पुंजनी थमा सकें। घर में नियम बनना चाहिए कि पूरा परिवार साथ बैठकर सामायिक करे। यात्रा पर निकलते समय जैसे जरूरी सामान रखते हैं, वैसे ही धर्म का साधन भी साथ रखना चाहिए क्योंकि आखिरकार धर्म ही हमारे काम आता है।
उन्होंने कहा कि कठिन समय में कोई मदद के लिए आगे नहीं आता, लेकिन जब खुशी का अवसर होता है तो सब साथ दिखते हैं। सच्ची सेवा श्रद्धा के बिना संभव नहीं है, और श्रद्धा के साथ सेवा करने से करुणा भाव उत्पन्न होता है।
मुनिजी ने समझाया कि परिक्षा हमेशा सज्जनों की ही होती है। सीता माता की अग्नि परीक्षा हुई, मंथरा की नहीं। इसी तरह सज्जन को ही कठिनाई झेलनी पड़ती है। अच्छे कर्म करने वालों को अक्सर ताने सुनने पड़ते हैं, जबकि बुरे लोगों को भीड़ वाहवाही देती है।
कार्यक्रम का संचालन मंत्री विनयचंद पावेचा ने किया।


