कैसे सुधरे गौवंश की हालत?

गाय पालना घाटे का सौदा होता जा रहा है

कैसे सुधरे गौवंश की हालत?

कोई व्यक्ति गाय क्यों पालेगा?

पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने गाय और भारतीय समाज के बारे में जो टिप्पणी की है, उस पर चिंतन करने की जरूरत है। न्यायालय ने वध के लिए गायों को ले जाने के आरोपी की अग्रिम जमानत खारिज कर सामाजिक आस्था का ध्यान रखा है। उसकी यह टिप्पणी उल्लेखनीय है कि 'गाय पूजनीय है और एक 'बड़ी आबादी वाले समूह' की आस्था को ठेस पहुंचाने वाले कृत्य शांति को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं।' न्यायालय ने माना है कि गाय हमारे देश की कृषि अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न अंग है। प्राचीन काल में जिसके पास जितना गौधन होता था, वह उतना ही समृद्ध कहलाता था। भगवान श्रीकृष्ण का गौप्रेम तो प्रसिद्ध है। भारत में ज्यादातर लोग गौवंश का सम्मान करते हैं, लेकिन इस कड़वी हकीकत से इन्कार नहीं किया जा सकता कि आज देश में गौवंश की हालत ठीक नहीं है। गांव हो या शहर, हर कहीं बेसहारा गायें कचरे के ढेर में खाने की तलाश करती नजर आती हैं। जिस देश में गाय को माता कहा जाता है, वहां ऐसी हालत क्यों है? हाल के वर्षों में गौशालाएं खूब बनी हैं। लोग अमावस्या, मकर संक्रांति और अन्य अवसरों पर गौवंश को हरा चारा खिलाते हुए फोटो बहुत खींच रहे हैं। फिर भी गौवंश की हालत में बहुत सुधार लाने की गुंजाइश क्यों है? इसकी कई वजह हैं। गांवों में चार दशक पहले जिस घर में बछड़े का जन्म होता था, वहां बहुत खुशियां मनाई जाती थीं। वह बछड़ा बड़ा होकर बैल बनता और खेती में बहुत मददगार साबित होता था। अब बैल की जगह ट्रैक्टर ने ले ली है, इसलिए बछड़ों को आवारा छोड़ दिया जाता है। कई जगह ये बछड़े खेती को भारी नुकसान पहुंचाते हैं। उनके झुंड एक ही रात में फसलों को तहस-नहस कर देते हैं।

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गाय पालना घाटे का सौदा होता जा रहा है। अक्सर लोग सोशल मीडिया पर गाय की महिमा वाली पोस्ट तो शेयर कर देते हैं, लेकिन वे गाय का दूध नहीं खरीदना चाहते। कुछ लोग खरीदते भी हैं तो उस समय, जब उन्हें किसी वैद्य ने इसके सेवन का परामर्श दिया हो। एक (पूर्व) गौपालक ने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि उनके गांव में रहने वाले एक सज्जन अपने विद्यार्थियों को 'गौ शब्द के रूप' याद करवाते, गाय पर निबंध लिखवाते, उसके दिव्य गुणों पर आधारित श्लोक सुनाते थे, लेकिन गाय का दूध बहुत सस्ता लेते थे। वे यह तर्क देते हुए बाजार भाव से भी कम कीमत देते थे कि 'गाय के दूध में घी कम होता है!' पिछले एक दशक में चारे की कीमतें बहुत बढ़ गई हैं। गौधन के लिए पौष्टिक आहार, दवाइयां आदि सब महंगे हो गए हैं, जबकि दूध का भाव तुलनात्मक रूप से कम मिल रहा है। ऐसे में कोई व्यक्ति गाय क्यों पालेगा? हमें गौवंश को खेती के साथ मजबूती से जोड़ने की जरूरत है। विभिन्न अध्ययनों से यह साबित हो चुका है कि फसलों में रासायनिक खाद और जहरीले कीटनाशक डालने से न केवल धरती की उर्वरता पर बुरा असर पड़ रहा है, बल्कि लोगों को गंभीर बीमारियां हो रही हैं। वहीं, कई किसानों का यह अनुभव रहा है कि गोबर, गौमूत्र आदि से बनी प्राकृतिक खाद, कीटनाशकों से उपज में बढ़ोतरी हुई है। उस धरती की फसल का स्वाद बहुत अच्छा रहा है। जिस तरह गाय का दूध खरीदा जाता है, उसी तरह गौमूत्र खरीदने की व्यवस्था होनी चाहिए। उसकी अच्छी कीमत मिलनी चाहिए। ऐसे स्थानों का निर्माण करना चाहिए, जहां बड़ी मात्रा में गौमूत्र का संग्रह कर उससे खाद और कीटनाशक बनाए जाएं। जब गाय पालने से लोगों को लाभ होगा तो गौवंश की हालत अपनेआप सुधर जाएगी।

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