सुख के सही मार्ग की खोज करो: आचार्य विमलसागरसूरी
कानून एवं संसदीय कार्य मंत्री एचके पाटिल ने किए संत दर्शन
'मनुष्य का मन सदैव सुख चाहता है'
गदग/दक्षिण भारत। स्थानीय राजस्थान जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ के तत्वावधान में सोमवार को जीरावला पार्श्वनाथ सभागृह में विशाल धर्मसभा में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए जैनाचार्य विमलसागरजी ने कहा कि भीतर की उपलब्धियों को कोई छीन नहीं सकता। वे कभी नष्ट भी नहीं होती। इस सत्य को समझकर इच्छाओं, तृष्णाओं, कामनाओं और भोग-वासनाओं को कम करने की आवश्यकता हैं। लाख कोशिशों के बावजूद वे कभी पूरी नहीं हो सकती।
ज्ञानियों के इस आशीर्वाद को हमेशा याद रखना चाहिए। ज्यों-ज्यों हम इच्छाओं और वासनाओं की पूर्ति के लिए प्रयत्न करते है, त्यों-त्यों वे अधिक बढ़ती ही जाती हैं। वे तृप्ति का आश्वासन देकर मनुष्य को और अधिक अतृप्ति की ओर ले जाती हैं। आज तक के इतिहास में कोई भी व्यक्ति अपनी सभी इच्छाओं और वासनाओं को कभी पूरी नहीं कर सका। बस, यह अतृप्ति और असंतोष ही दुःख का मार्ग है।आचार्य विमलसागरसूरीजी ने कहा कि मनुष्य का मन सदैव सुख चाहता है, लेकिन जिस तरह हम जीते हैं, उससे दुःख ही मिलता है। सुख और दुःख सिर्फ बाहर से ही प्राप्त नहीं होते, भीतर से भी उत्पन्न होते हैं। बाहर के बाजय भीतर का प्रभाव अधिक होता है।
सुख की तलाश में बाहर की दुनिया में हम कितना भी भटकें, यदि उसका अस्तित्व हमारे भीतर नहीं हैं तो उसे कहीं से भी प्राप्त नहीं किया जा सकता। सुख की प्राप्ति और दुःख से मुक्ति की मनुष्य जाति की दौड़ हर काल में रही है। हजारों कोशिशों के बाद भी सुख कम ही पड़ता है और दुःख ज्यादा ही मिलता है। इसलिए सबसे पहले सुख के सही मार्ग की तलाश जरूरी है।
संघ के अध्यक्ष पंकज बाफना ने बताया कि कर्नाटक सरकार के कानून एवं संसदीय कार्य मंत्री एचके पाटिल ने आचार्य विमलसागरसूरीजी से मुलाकात कर आशीर्वाद ग्रहण किया। जैनाचार्य ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा कि वे बिना किसी भेदभाव के सबकी उन्नति, सुरक्षा और न्याय के लिए काम करें।
जैनाचार्य ने उनके पिता कृष्णगौड़ा पाटिल, पूर्व मुख्यमंत्री देवराज अर्स और निजलिंगप्पा के साथ के उनके परिचय का जिक्र किया।


