भारत-चीन संबंधों में सुधार के संकेत
इससे दोनों देशों को अनेक लाभ हो सकते हैं
चीन के साथ भारत का कोई सांस्कृतिक टकराव नहीं रहा है
भारत और चीन के संबंधों में सुधार के संकेत मिलना स्वागत योग्य है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने चीनी विदेश मंत्री वांग यी के साथ सीमा पर तनाव कम करने और संबंधित मुद्दों पर बातचीत के बाद जो बयान दिया, उससे इस संभावना को बल मिलता है कि भविष्य में दोनों देश अपने संबंधों को बेहतर बनाने के लिए ठोस कदम उठाएंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 31 अगस्त और एक सितंबर को तियानजिन में आयोजित होने वाले एससीओ शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए चीन का दौरा करेंगे। यह दौरा ऐसे समय में होने जा रहा है, जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने बड़बोलेपन से बाज़ नहीं आ रहे और रूसी तेल आयात को लेकर भारत को टैरिफ की धमकियां दे रहे हैं। भारत-चीन संबंधों में सुधार आने से दोनों देशों को अनेक लाभ हो सकते हैं। दोनों ही दुनिया के सबसे ज्यादा आबादी वाले देश हैं। ये दुनिया की कुल आबादी के लगभग 35 प्रतिशत हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो बहुत बड़ा बाजार, बहुत मांग और बहुत खपत। चीन, भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। दोनों देशों के संबंधों में सुधार से व्यापार और निवेश के अवसरों में वृद्धि होगी। इससे लाखों लोगों के लिए रोजगार के अवसर सृजित हो सकते हैं। चीन ने इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी और अन्य तकनीकी क्षेत्रों में बहुत उन्नति की है। उसने आसान कृषि को बढ़ावा देने के लिए कई यंत्रों का निर्माण किया है। हम उस तकनीक पर काम कर करोड़ों किसानों को लाभ पहुंचा सकते हैं।
लद्दाख के देपसांग और डेमचोक में सैनिकों की वापसी और पारस्परिक गश्त की बहाली से दोनों देशों के बीच यकीनन तनाव कम हुआ है। यह न सिर्फ भारत, बल्कि चीन के लिए भी अच्छा है। अत्यधिक ऊंचाई और विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले इलाकों में तनाव बढ़ने और बड़ी तादाद में सैनिकों की तैनाती से दोनों को ही नुकसान होता है। बेहतर होगा कि दोनों देश मिलकर किसी ऐसे समाधान पर पहुंचें, जिससे सैन्य तैनाती की लागत और घटे तथा करोड़ों नागरिकों का जीवन स्तर सुधरे। चीन के साथ भारत का कोई सांस्कृतिक टकराव नहीं रहा है। एक ओर जहां पाकिस्तान मजहब के नाम पर भारत के साथ लगातार टकराव और आतंकवाद की नीति पर अड़ा हुआ है, उसने अपने नागरिकों के मन में नफरत घोल रखी है, वहीं चीन के साथ ऐसा नहीं है। इस देश के साथ हमारे सदियों पुराने मधुर संबंध रहे हैं। प्राचीन काल में चीन से कई विद्यार्थी हमारे विश्वविद्यालयों में अध्ययन करने आते थे। चीनी यात्री ह्वेन सांग को कौन भूल सकता है! चीनियों के लिए भारत धर्म, ज्ञान और योग की भूमि है। एक आम चीनी के मन में भारत के लिए नफरत नहीं, बल्कि जिज्ञासा है। आज भी भारत के कई योग प्रशिक्षक चीन में कार्यरत हैं। वे बताते हैं कि चीनी उनका बहुत सम्मान करते हैं। उनके बीच रहकर कभी महसूस ही नहीं हुआ कि ये लोग हमसे नफरत करते हैं। चीनी भारतीय संस्कृति, खानपान, पहनावे, त्योहार और सिनेमा से बहुत प्रभावित हैं। उनकी सरकार भले ही कट्टर नास्तिकता को बढ़ावा देती हो, लेकिन एक आम चीनी के मन में आध्यात्मिक जिज्ञासा होती है। वह वाराणसी, बोधगया, हरिद्वार समेत विभिन्न तीर्थों के दर्शन करना चाहता है। इसके अलावा तमिलनाडु, केरल के आयुर्वेद चिकित्सा केंद्र उसे आकर्षित करते हैं। समस्या चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ है, जो भारत को हमेशा प्रतिद्वंद्वी मानती है। संबंधों में सुधार के लिए उसे अपना रवैया बदलना होगा।

