श्वान: पहरेदार न बने परेशानी

श्वानों को हमारे समाज से पूरी तरह अलग नहीं किया जा सकता

श्वान: पहरेदार न बने परेशानी

कुछ श्वानों का व्यवहार काफी आक्रामक होता है

उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली-एनसीआर में आवारा श्वानों से जुड़े एक मामले में संशोधित निर्देश देकर पशु कल्याण का ध्यान रखा है। समाज में मनुष्य के साथ श्वानों को भी जीवन जीने का अधिकार है। ये प्राचीन काल से ही मनुष्य के मित्र रहे हैं। हमारे ग्रंथों में ऐसे कई प्रसंग मिलते हैं, जिनमें श्वानों का महत्त्व बताया गया है। अच्छे विद्यार्थी की कई विशेषताओं में से एक विशेषता 'श्वान निद्रा' है। श्वानों की सूंघने की क्षमता गजब की होती है। ये हमारे देश की सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। ये गांव-मोहल्ले के पहरेदार कहलाते हैं, क्योंकि जैसे ही कोई अजनबी शख्स आता है, (श्वान) सबको सूचित कर देते हैं। आज भी गांवों के घर-घर में श्वान के लिए रोटी बनाने की परंपरा है। वह सुबह-शाम आता है, रोटी खाता है और चुपचाप चला जाता है। न किसी से शिकायत, न कोई फरमाइश। जिन गांवों में श्वान स्वतंत्र घूमते हैं, उनके निवासी रात को चैन की नींद सोते हैं, क्योंकि किसी भी चोर की हिम्मत नहीं होती कि वहां कदम रख सके। श्वान को किसान का साथी यूं ही नहीं कहा जाता। वह हर मौसम में उसके साथ रहकर खेत की रखवाली करता है। ऐसे में श्वानों को हमारे समाज से पूरी तरह अलग नहीं किया जा सकता। इसके कई गंभीर नतीजे हो सकते हैं। हां, उनके भोजन, स्वास्थ्य, आश्रय आदि की ओर ध्यान देना चाहिए। शहरों के जिन इलाकों में आवारा श्वानों की संख्या काफी बढ़ गई है, वहां वैज्ञानिक तरीके से इनका बंध्याकरण और टीकाकरण होना चाहिए। उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्देशों में इस बिंदु का उल्लेख किया है।

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कुछ श्वानों का व्यवहार काफी आक्रामक होता है। इसके पीछे कई वजह हो सकती हैं, लेकिन यह प्रवृत्ति बहुत लोगों को नुकसान पहुंचा चुकी है। यहां तक कि कुछ लोग तो जान गंवा चुके हैं। प्राय: लोग शिकायत करते हैं कि जब वे सुबह सैर करने के लिए निकलते हैं तो उन्हें आवारा श्वान घेर लेते हैं। अक्टूबर 2023 में अहमदाबाद में एक मशहूर कंपनी के मालिक जब सैर करने निकले तो आवारा श्वानों के एक झुंड ने उन पर हमला बोल दिया था। वे जान बचाने के लिए भागे और फिसलकर गिर गए थे। इससे उनके सिर में गंभीर चोट आई और उनकी मौत हो गई। लोग अपने दफ्तर जाते हैं तो आवारा श्वान उनके वाहनों का पीछा करते हैं। उस समय दोपहिया वाहन चालकों को ज्यादा खतरा होता है। श्वान उनके पीछे सरपट दौड़ लगाते हैं और पांव को काट खाने की कोशिश करते हैं। इससे दुर्घटना की आशंका होती है। यह किसी एक शहर की समस्या नहीं है। हर शहर में ऐसे दृश्य देखने को मिल जाएंगे। इससे आवारा श्वानों की आबादी नियंत्रित करने की सख्त जरूरत महसूस होती है। उच्चतम न्यायालय द्वारा दिया गया यह निर्देश लोगों और श्वानों, दोनों की सुरक्षा के लिए उचित है कि 'ऐसे विशेष भोजन क्षेत्र बनाए जाएं, जहां लोग आवारा श्वानों को खाना खिला सकें।' कई लोग सड़कों और सार्वजनिक स्थानों पर इन्हें खाना खिलाते हैं। उनके मन में दया और करुणा की भावना हो सकती है, लेकिन इससे कुछ समस्याएं भी पैदा होती हैं। उन इलाकों से जब अन्य लोग आते-जाते हैं और श्वानों को खाना नहीं खिलाते तो वे उनका पीछा करने लगते हैं। कुछ श्वान तो हमला कर देते हैं। विशेष भोजन क्षेत्र बनाने से इस समस्या का समाधान हो सकता है। श्वानों से लगाव रखना, उनके कल्याण का ध्यान रखना अच्छी बात है। बदलते परिवेश के साथ ऐसे तौर-तरीकों को अपनाना भी जरूरी है, जिनसे मनुष्य और श्वान, दोनों अधिक सुरक्षित महसूस करें।

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