देर आयद, दुरुस्त आयद
बीआरआई को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का 'ड्रीम प्रोजेक्ट' कहा जाता है
बीआरआई प्रोजेक्ट से चीन सिर्फ अपना स्वार्थ सिद्ध करेगा
आखिरकार इटली को भी चीन के मंसूबों का एहसास हो गया। देर आयद, दुरुस्त आयद। जब चार साल पहले यह देश चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) प्रोजेक्ट में शामिल हुआ तो पश्चिमी देशों को आश्चर्य हुआ था। चूंकि यह जाहिर था कि चीन इस प्रोजेक्ट के जरिए दुनिया पर अपनी पकड़ मजबूत बनाना चाहता है।
कोरोना काल में सबने देखा कि चीन का रवैया किस हद तक लालच और स्वार्थ से भरा था। फिर भी इटली ने ऐसा फैसला लिया! अब उसके रक्षा मंत्री गुइडो क्रोसेटो उस फैसले पर पछता रहे हैं। उसे 'तात्कालिक और तबाह करने वाला फैसला' बता रहे हैं। जब इटली बीआरआई प्रोजेक्ट में शामिल हुआ था तो उसके पीछे मंशा थी कि इससे उसे व्यापार में फायदा होगा, लेकिन मामला उलटा पड़ा। इससे चीन को फायदा हो रहा है, जबकि इटली के लिए नतीजे उत्साहजनक नहीं हैं।अब इटली की सरकार इस प्रोजेक्ट से अलग होने के संकेत दे रही है। बीआरआई को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का 'ड्रीम प्रोजेक्ट' कहा जाता है। वे खुद को माओ से भी बड़े नेता के तौर पर स्थापित करना चाहते हैं। इसलिए बीआरआई प्रोजेक्ट को नए 'सिल्क रूट' के तौर पर प्रचारित किया गया। इस पर भारी-भरकम निवेश कर यह बताया गया कि बीआरआई प्रोजेक्ट चीन के कारोबार को पंख लगाएगा, उसका प्राचीन 'वैभव' लौटाएगा। इसके जरिए चीनी माल बड़ी आसानी से एशिया, यूरोप, अफ्रीका तक पहुंच जाएगा। हालांकि चीन इतने भर से संतुष्ट नहीं होगा।
आलोचकों का कहना है कि बीआरआई प्रोजेक्ट से चीन सिर्फ अपना स्वार्थ सिद्ध करेगा। वह जहां-जहां जाएगा, अपने जासूसी अड्डे स्थापित करेगा। उन देशों के अर्थतंत्र के अलावा राजनीतिक तंत्र में घुसपैठ करेगा। इस तरह वह संबंधित देशों में अपना प्रभाव बढ़ाकर 'चीनीकरण' को प्राथमिकता देगा।
इनमें कई देश ऐसे हैं, जहां पारदर्शिता नहीं है, भ्रष्टाचार चरम पर है। आशंका है कि चीन ऐसे देशों में सरकारों को मनमानी शर्तों पर कर्ज देकर स्थानीय संसाधनों पर कब्जा कर लेगा! हाल में कई देशों में चीन के गुप्त पुलिस स्टेशन पकड़े गए थे, जिन पर जासूसी और राजनीतिक विरोधियों के उत्पीड़न जैसे गंभीर आरोप लग चुके हैं।
बीआरआई प्रोजेक्ट से इटली के बाजारों में चीनी माल की आवक काफी बढ़ गई। वहीं, चीन को होने वाले इतालवी माल के निर्यात पर खास असर दिखाई नहीं दिया। आसान शब्दों में कहें तो इटली ने चीन की 'चिकनी-चुपड़ी' बातों में आकर घाटा मोल ले लिया। जबकि चीन को कारोबारी फायदे के अलावा दो फायदे और हुए। जब इटली इस प्रोजेक्ट में शामिल हुआ तो चीन पश्चिमी देशों को यह संदेश देने में सफल रहा कि उसकी स्वीकार्यता बढ़ रही है। वहीं, चीन भविष्य में इससे राजनीतिक लाभ भी ले सकता है।
इससे यूरोप की राजनीति में उसका हस्तक्षेप बढ़ सकता है। निस्संदेह व्यापार में आयात-निर्यात होते हैं, लेकिन इनका संतुलित होना जरूरी है। अगर दो देश वस्तुओं या सेवाओं का आयात-निर्यात करते हैं और पलड़ा किसी एक की ओर ही झुका हो तो दूसरा देश घाटे में रहता है। बीआरआई प्रोजेक्ट ने चीन और इटली के मामले में यही किया।
इटली ने इसमें शामिल होने से पहले जो आकलन किया था, वह वास्तविकता से परे साबित हुआ। आज चीन तो इसके जरिए इटली के बाजारों में भरपूर माल भेज रहा है, लेकिन इटली यही करने में कामयाब नहीं हो रहा है। ऐसे में प्रश्न तो यह भी पैदा होता है कि अगर भविष्य में यही सिलसिला चलता रहा तो इटली का रुख क्या होगा? क्या वह प्रोजेक्ट से अपने हाथ खींच लेगा? क्या इससे इटली-चीन संबंधों में कड़वाहट नहीं आएगी?
हाल में इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी ने व्हाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से मुलाकात के बाद कहा था कि इस संबंध में दिसंबर तक कोई फैसला लिया जाएगा और वे जल्द ही चीन की यात्रा करेंगी। बहरहाल इटली का यह रुख उन देशों के लिए सबक जरूर है, जो तात्कालिक लाभ के लिए चीन से 'नजदीकियां' बढ़ा रहे हैं।