खींचतान और क्लेश, बेपटरी बांग्लादेश
यूनुस सरकार की नाकामी उजागर हो गई है

यूनुस की कारगुजारी सब देख चुके हैं
बांग्लादेश में सियासी खींचतान और क्लेश ने मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार की नाकामी पूरी तरह उजागर कर दी है। इस पर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए, क्योंकि यूनुस ने कुर्सी संभालते ही जो 'प्रयोग' करने शुरू किए थे, उनका यही नतीजा निकलना था। इन अर्थशास्त्री ने बांग्लादेश का जितना अनर्थ किया, शायद ही किसी ने किया होगा। दरअसल यूनुस ने अपनी पूरी ताकत हालात बेहतर बनाने के बजाय भारत का विरोध करने में लगा दी थी। उन्होंने ऐसे तत्त्वों को खुली छूट दे रखी थी, जो आए दिन भारत के बारे में भड़काऊ टिप्पणियां करते थे। आज जब बांग्लादेश से ऐसी खबरें आ रही हैं कि वहां कामबंदी, हड़तालें हो रही हैं, कंपनियों के पास कर्मचारियों को वेतन देने के लिए भी धन नहीं है तथा लोगों में असंतोष बढ़ता ही जा रहा है, तो बांग्लादेशियों को चिंतन करना चाहिए। ऐसे हालात पैदा ही क्यों हुए? शेख हसीना के शासन में कमियां रही होंगी, लेकिन उनके नेतृत्व में इस देश ने बहुत उन्नति की थी। बांग्लादेश में लोग आज ज्यादा सुखी हैं या तब ज्यादा सुखी थे? उद्योग-धंधे आज ज्यादा अच्छे चल रहे हैं या तब ज्यादा अच्छे चल रहे थे? इस देश को कुछ कट्टरपंथियों ने ऐसा बेपटरी किया कि अब समझ नहीं आ रहा कि चलें तो कैसे चलें, किधर चलें! नोबेल पुरस्कार विजेता होने से यूनुस के साथ कई उम्मीदें जुड़ी थीं, लेकिन उन्होंने सबको बंगाल की खाड़ी में डुबो दिया। वे कभी चीन से नजदीकी बढ़ाते रहे, कभी पाकिस्तान से भाईचारा निभाते रहे। ये दोनों ही किसी काम नहीं आए।
याद करें, पिछले साल जब बीएनपी के नेता और कार्यकर्ता भारतीय साड़ियां जला रहे थे, तो हमने 10 दिसंबर के अंक में यह लिखते हुए चेताया था कि 'ये सिर्फ भारतीय साड़ियां नहीं जला रहे, बल्कि अपने देश का भविष्य जला रहे हैं, अपने लोगों की खुशहाली व समृद्धि को खाक में मिला रहे हैं।' आज बांग्लादेश उसी बिंदु पर पहुंच चुका है। भारत से दुश्मनी करके क्या मिला? हमारा देश तो जापान को पछाड़कर चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया। बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था कहां है? इस पड़ोसी देश में कोई अक्लमंद शख्स बागडोर संभालता तो सबसे पहले भारत के साथ संबंधों को मजबूत बनाने पर जोर देता। बांग्लादेशी अर्थव्यवस्था शीर्ष 20 में भी शामिल नहीं है। वह आंतरिक चुनौतियों से जूझती रहती है। उसके पास तकनीक में निवेश के लिए पूंजी का अभाव है। उसे भारत से सदैव सहयोग मिलता रहा है। पिछले एक दशक में बांग्लादेश के वस्त्र उद्योग ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था। वहां कार्यबल में महिलाओं की भूमिका बढ़ी थी। डॉलर के मुकाबले उसकी मुद्रा काफी हद तक स्थिर थी। कई विशेषज्ञ यह कहने लगे थे कि बांग्लादेश 'नेक्स्ट एशियन टाइगर' है। कुछ लोगों को यह रास नहीं आया। बांग्लादेशियों ने अपने हाथों देश का बंटाधार कर लिया। वे इसके लिए भारत को दोष नहीं दे सकते। अब तो स्पष्ट हो चुका है कि बांग्लादेश में जो हिंसा छिड़ी, वह कोई छात्र आंदोलन नहीं था। बेकाबू भीड़ में शामिल कई लोगों ने जिस तरह शेख हसीना के अंतर्वस्त्र लूटकर हवा में निर्लज्जता से लहराए थे, राष्ट्रपिता की प्रतिमा पर हथौड़े बरसाए थे, अल्पसंख्यकों के घरों और प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया था, उससे संकेत मिल रहे थे कि यह छात्र आंदोलन के नाम पर कट्टरपंथी तत्त्वों और विदेशी एजेंसियों का शक्ति प्रदर्शन है। इसने बांग्लादेश को कई साल पीछे धकेल दिया है। यूनुस की कारगुजारी सब देख चुके हैं। वे कब अमेरिका की फ्लाइट पकड़ लें, कुछ कहा नहीं जा सकता। अब सोचना उन लोगों को है, जिन्हें बांग्लादेश में ही रहना है। भारत से बैर करके पाकिस्तान कंगाली के कगार पर आ गया। उसके नक्शे-कदम पर चलने से ढाका को बर्बादी के सिवा कुछ नहीं मिल सकता। अगर बांग्लादेश को बचाना है, सही राह पर चलाना है तो भारत के साथ संबंधों को मधुर बनाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।