फर्जीवाड़े की पराकाष्ठा

पाकिस्तान झूठ गढ़ने में महारत रखता है

फर्जीवाड़े की पराकाष्ठा

आसिम मुनीर ने शहबाज को फर्जी तस्वीर भेंट कर दी

पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर 'फेल्ड' मार्शल बनने के साथ ही फर्जीवाड़े के उस्ताद भी निकले हैं। 'ऑपरेशन सिंदूर' में भारतीय सशस्त्र बलों के प्रहार से पाकिस्तान के कई आतंकी अड्डे और सैन्य ठिकाने ध्वस्त हो गए, लेकिन मुनीर ने अपने प्रधानमंत्री को जो तस्वीर भेंट की, वह तो फर्जीवाड़े की पराकाष्ठा थी। उन्होंने चीनी फौज द्वारा अगस्त 2018 में किए गए एक अभ्यास की तस्वीर को अपनी नकली बहादुरी से जोड़कर प्रचारित कर दिया। इस दौरान मुनीर भी मुस्कुरा रहे थे, शहबाज शरीफ भी मुस्कुरा रहे थे। इसलिए नहीं कि दोनों ने कोई अज़ीम फ़तह हासिल की थी, बल्कि इसलिए कि दोनों ही पाकिस्तानी जनता की आंखों में धूल झोंकने में कामयाब रहे। तस्वीर फर्जी थी, इसकी जानकारी दोनों को जरूर रही होगी, क्योंकि वे इस तथ्य अवगत हैं कि उसमें दिखाई दे रही सैन्य कार्रवाई पाकिस्तान की ओर से कभी नहीं हुई। पाक ने पहली बार ऐसा फर्जीवाड़ा नहीं किया है। याद करें, साल 2017 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में पाकिस्तान की तत्कालीन स्थायी प्रतिनिधि मलीहा लोधी ने एक लड़की की तस्वीर लहराते हुए दावा किया था कि वह कश्मीर में भारतीय सेना की पैलट गन से घायल हुई थी। हालांकि जल्द ही खुलासा हो गया था कि वह लड़की फिलिस्तीनी थी और कुछ साल पहले इजराइली गोलीबारी से घायल हुई थी। इससे पाकिस्तान की खूब किरकिरी हुई थी। इस बार आसिम मुनीर, मलीहा लोधी से काफी आगे निकल गए हैं। उन्होंने अपनी फौज की शिकस्त के बावजूद फर्जी तस्वीर भेंट करने का जो हौसला दिखाया, वह दुर्लभ है। हालांकि मुनीर का दुर्भाग्य रहा कि भारत में कई लोगों ने चुटकियों में इस तस्वीर की पोल खोल दी। अगर वे ऐसा न करते तो यह झूठ काफी हद तक चल जाता।

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पाकिस्तान के संबंध में एक बात हमें स्वीकार करनी होगी कि वह झूठ गढ़ने में महारत रखता है। उसने 'ऑपरेशन सिंदूर' के दौरान भारतीय मीडिया और नागरिकों को भ्रमित करने के लिए बहुत सारे फर्जी वीडियो वायरल किए थे। ऐसा करने के लिए कई वर्षों की तैयारी चाहिए, क्योंकि सूचनाएं इकट्ठी करनी होती हैं, खुराफाती तरीके ढूंढ़ने होते हैं; तब जाकर ऐसा माहौल बनता है कि बड़े-बड़े बुद्धिजीवी भी झूठ को सच मान लेते हैं। छह मई के बाद पाकिस्तानी मीडिया, खासकर उर्दू अख़बारों और समाचार चैनलों में कई हास्यास्पद झूठ फैलाए गए थे। आज भी फैलाए जा रहे हैं। पाकिस्तानी जनता उन पर विश्वास कर रही है। विदेशों में रहने वाले कई पाकिस्तानी पत्रकार एवं यूट्यूबर तो यह कहने लगे हैं कि इस संपूर्ण घटनाक्रम का आसिम मुनीर ने भरपूर फायदा उठाया है। स्थानीय मीडिया शहबाज शरीफ की उपेक्षा कर रहा है, लेकिन मुनीर को इस तरह पेश कर रहा है, गोया वे नहीं होते तो पाकिस्तान का अस्तित्व ही न रहता। पाकिस्तानी जनता अंग्रेजी मीडिया को ज्यादा महत्त्व नहीं देती। वह उर्दू में आने वाली सूचनाओं पर बहुत भरोसा करती है। आज ऐसे सशक्त माध्यम की जरूरत महसूस की जा रही है, जो उर्दू में पाकिस्तानी फौज की पोल खोले। अगर ऐसा होता तो इस्लामाबाद, लाहौर, कराची, रावलपिंडी में जो लोग पाकिस्तान की झूठी फतह की मिठाइयां खा रहे हैं, वे जीएचक्यू के सामने मुनीर का इस्तीफा मांग रहे होते। जब वर्ष 1971 के युद्ध में पाकिस्तान बुरी तरह हारा था तो जनता का गुस्सा फूट पड़ा था। उसने फर्जी ख़बरें छापने वाले मीडिया पर धावा बोल दिया था। शराब की कई दुकानें तोड़ दी थीं, चूंकि तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल याह्या ख़ान नशे के आदी थे। उसके बाद कुछ पत्रकारों ने पाकिस्तानी फौज की पोल खोली, जिससे याह्या और उनकी मंडली के दुर्दिन शुरू हो गए थे। लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी समेत कई सैन्य अधिकारियों को मिले सम्मान वापस ले लिए गए थे। याह्या भी इस लपेटे में आए थे। हमें भविष्य में रावलपिंडी के जनरलों की पोल खोलने के लिए पुख्ता इंतजाम करने होंगे, ताकि उनकी जनता ही उनसे हिसाब मांगे।

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