स्वदेशी और उद्यमिता: विकसित भारत की राह
हमें अपने उद्योगों को मजबूत भी करना होगा

सरकार को चाहिए कि वह उद्योग लगाना बिल्कुल आसान कर दे
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकसित भारत के निर्माण के लिए स्वदेशी उत्पादों का जिस तरह खुलकर समर्थन किया है, वह स्वागत योग्य है। देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए दीपावली से पहले विदेशी झालरों और होली से पहले विदेशी पिचकारियों का बहिष्कार कर देना ही काफी नहीं है। हमें अपने उद्योगों को मजबूत भी करना होगा। प्रधानमंत्री ने गणेशजी की प्रतिमाओं का जिक्र करते हुए जिस देश की ओर संकेत किया, वह दुनियाभर में अपना माल बेचने के लिए जाना जाता है। मोदी ने सत्य कहा कि देश को बचाना, बनाना और बढ़ाना है, तो यह सिर्फ सैनिकों की नहीं, 140 करोड़ नागरिकों की जिम्मेदारी है। देश सशक्त होना चाहिए, उसका नागरिक सामर्थ्यवान होना चाहिए। लेकिन यह होगा कैसे? इसके लिए हमें स्वतंत्रता आंदोलन के हमारे महान नेताओं के बारे में पढ़ना चाहिए। महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक, सरदार पटेल, नेताजी सुभाष चंद्र बोस आदि ने स्वदेशी चीजों के इस्तेमाल और विदेशी चीजों के बहिष्कार की बहुत बड़ी मुहिम चलाई थी। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जापान, जर्मनी, इटली जैसे देशों की अर्थव्यवस्थाएं चौपट हो गई थीं। ये देश खंडहर के ढेर से दोबारा खड़े हो गए। इन्होंने यह मुकाम स्वदेशी चीजों को बढ़ावा देकर हासिल किया था। भारत ने भी बहुत उन्नति की है, लेकिन यह इससे काफी ज्यादा का हकदार है। हमें आज चौथे स्थान पर नहीं, पहले स्थान पर होना चाहिए था। इसके लिए गुणवत्ता युक्त चीजों का उत्पादन होना जरूरी है।
पिछले दिनों सोशल मीडिया पर एक पोस्ट बहुत वायरल हुई थी, जिसमें दावा किया गया था कि भारत के एक राज्य में किसी को आटा चक्की लगानी हो तो कई सरकारी दफ्तरों से मंजूरी लेनी होती है। जब एक छोटा-सा उद्योग लगाने के लिए इतने चक्कर काटने पड़ते हैं तो 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' की हकीकत सामने आ जाती है। सरकार को चाहिए कि वह उद्योग लगाना बिल्कुल आसान कर दे। उदाहरण के लिए, अगर गांव में किसी को पापड़ और अचार उद्योग शुरू करना हो तो पूरी प्रक्रिया डिजिटल होनी चाहिए और सभी दफ्तरों से एक ही दिन में मंजूरी मिलनी चाहिए। उसके बाद संबंधित विभागों के अधिकारी खुद जाकर उस व्यक्ति को सलाह दें और सहयोग के लिए हमेशा तैयार रहें। उसे बिजली-पानी के कनेक्शन लेने और बैंक खाता खुलवाने के लिए किसी दफ्तर न जाना पड़े। जो व्यक्ति उद्योग लगाता है, वह देश को कई तरह से लाभ पहुंचाता है, शक्तिशाली बनाता है। उसकी वजह से अन्य लोगों को रोजगार मिलता है। इससे मांग बढ़ती है और अर्थव्यवस्था का पहिया चलता है। सरकार को बुनियादी स्तर पर कई सुधार करने होंगे। उद्योग लगाने को जितना आसान बनाएंगे, बेरोजगारी जैसी समस्या का उतनी ही जल्दी समाधान होगा। विद्यार्थियों में स्कूली दिनों से ही यह सोच विकसित करनी होगी कि वे बड़े होकर उद्यमी बनेंगे। इसके लिए पाठ्यक्रम में अध्याय जोड़े जाएं। उद्यमियों को समय-समय पर स्कूलों में आमंत्रित करना चाहिए। इससे विद्यार्थियों को प्रेरणा मिलेगी। जून 2020 में जब गलवान घाटी में पीएलए से भारतीय सेना की भिड़ंत हुई और हमारे देश में चीनी माल के बहिष्कार की मुहिम ने जोर पकड़ा था, तब बीजिंग से प्रकाशित होने वाले एक अख़बार के संपादक ने इसका उपहास उड़ाते हुए लिखा था, 'भले ही चीनी लोग भारतीय उत्पादों का बहिष्कार करना चाहें, लेकिन उन्हें वास्तव में बहुत सारे भारतीय सामान नहीं मिल सकते। आपके पास कुछ ऐसी चीजें होनी चाहिएं, जो राष्ट्रवाद से भी ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हों।' हमें इसका जवाब उद्यमिता के जरिए देना होगा। हम स्वदेशी को अपनाकर और उद्यमिता को बढ़ावा देकर न केवल अपनी अर्थव्यवस्था को सशक्त कर सकते हैं, बल्कि विश्व मंच पर भारत को अग्रणी बना सकते हैं।