अपनत्व का मरहम लगाएं

जब तक पर्यटक सुरक्षित महसूस नहीं करेंगे, वे क्यों आएंगे?

अपनत्व का मरहम लगाएं

कश्मीरी पंडितों को भी बसाना होगा

पहलगाम आतंकी हमले से जम्मू-कश्मीर के पर्यटन उद्योग को बड़ा नुकसान हुआ है। इस सीजन में जो इलाके पर्यटकों से गुलजार रहते थे, आज वहां सन्नाटा पसरा हुआ है। श्रीनगर, गुलमर्ग और अन्य स्थानों की 80 से 90 प्रतिशत बुकिंग रद्द हो चुकी हैं। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और अन्य नेता पर्यटन उद्योग को वापस खड़ा करने के लिए कितने ही वादे करें, जब तक पर्यटक सुरक्षित महसूस नहीं करेंगे, वे क्यों आएंगे? पर्यटकों की सुरक्षा की जिम्मेदारी सिर्फ सुरक्षा बलों की नहीं होती। स्थानीय लोगों को भी सुरक्षित माहौल बनाने में योगदान देना होता है। इन दिनों सोशल मीडिया पर ऐसे कई वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिनमें कश्मीर के निवासी अपनी मेहमान-नवाजी का जिक्र करते हुए पर्यटकों से आग्रह कर रहे हैं कि वे भविष्य में वहां पर्यटन के लिए जरूर आएं। जम्मू-कश्मीर भारत मां का मुकुट है। जब स्थिति सामान्य हो जाएगी तो वहां पर्यटक जाएंगे। सवाल है- क्या जम्मू-कश्मीर में सिर्फ पर्यटकों को जाना चाहिए? स्थानीय लोगों को चाहिए कि वे ऐसा आग्रह पर्यटकों से ही न करें, बल्कि कश्मीरी पंडितों से भी करें। कश्मीर उनकी भी मातृभूमि है। स्थानीय लोग ऐसे माहौल का निर्माण करें कि भविष्य में कश्मीरी पंडित वहां रहें और सुरक्षित महसूस करें। पाकिस्तान ने कश्मीर में अशांति फैलाने के लिए बहुत षड्यंत्र रचे हैं। उनमें से कुछ सफल हुए हैं। कश्मीरी पंडितों का उत्पीड़न और पर्यटन उद्योग को क्षति पहुंचाने की कोशिशें उसी का हिस्सा हैं। पाकिस्तान और उसके इशारों पर चलने वाले आतंकवादी चाहते हैं कि कश्मीर में न तो पंडित दोबारा बसें और न पर्यटक आएं। अब स्थानीय लोगों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी आ गई है कि वे शांति और सूझबूझ से दुश्मन के नापाक मंसूबों को विफल बनाएं।

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प्राय: यह तर्क दिया जाता है कि कश्मीर घाटी में सुरक्षा बलों की संख्या बढ़ानी चाहिए, इससे सुरक्षा व्यवस्था मजबूत होगी और भविष्य में पर्यटन बढ़ेगा। हालांकि यह तर्क अपनेआप में पर्याप्त नहीं है। घाटी में सुरक्षा बलों की कितनी तादाद होनी चाहिए, यह कई बातों पर निर्भर करता है। इसका फैसला केंद्र सरकार लेगी। जहां तक इससे पर्यटन बढ़ने का सवाल है तो आम पर्यटक ऐसी जगह जाना कम ही पसंद करता है, जिधर ज्यादा तादाद में सैनिक तैनात हों। आसान शब्दों में कहें तो बंदूकों के साए में पर्यटन नहीं पनपता। सुरक्षा बल एक निश्चित तादाद में होने चाहिएं। इससे पर्यटकों में सुरक्षा की भावना पैदा होती है। इसके बाद स्थानीय लोगों की जिम्मेदारी होती है कि वे पर्यटकों के साथ मिलनसार स्वभाव रखते हुए सुरक्षा व्यवस्था को स्थायी बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएं। स्थानीय लोगों के सहयोग से ही हालात बेहतर हो सकते हैं, पर्यटकों के मन में विश्वास पैदा हो सकता है। आज न्यूजीलैंड, नॉर्वे, डेनमार्क, स्पेन, इटली, स्विट्जरलैंड, थाईलैंड, यूएई, जापान जैसे देश पर्यटन के दम पर खूब कमाई कर रहे हैं। दुनियाभर में लोगों का सपना होता है कि एक बार वहां जरूर घूमकर आएं। इन देशों में पर्यटक सुरक्षित महसूस करता है, क्योंकि स्थानीय लोगों ने वैसा माहौल बनाया है। वे पर्यटकों को खोने का जोखिम नहीं ले सकते। जब एक पर्यटक कहीं जाता है तो वह कई लोगों के लिए रोजगार के अवसरों का सृजन करता है। सोचिए, अगर इन देशों में सख्त फौजी पहरा लगा होता तो कितने लोग वहां जाना पसंद करते? सुरक्षा बलों की मौजूदगी किसी इलाके को निश्चित रूप से सुरक्षित बनाती है, लेकिन पर्यटकों के मन में सुरक्षा की स्थायी भावना स्थानीय लोग ही जगा सकते हैं। जम्मू-कश्मीर को जो घाव आतंकवादियों ने दिया है, उसे भरने में समय लगेगा। इस पर अपनत्व का मरहम लगाना होगा। पर्यटकों का खुले दिल से स्वागत करना होगा, कश्मीरी पंडितों को भी बसाना होगा।

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