सांस्कृतिक चेतना व गौरव

'भारत' ही वह नाम है, जिसमें सर्वाधिक अपनत्व है और यह हमारे राष्ट्रीय गौरव को पूर्णत: अभिव्यक्त करता है

सांस्कृतिक चेतना व गौरव

जब प्रश्न हमारी सांस्कृतिक चेतना का हो, राष्ट्र-जागरण का हो, ज्ञान के भारतीयकरण का हो तो यह सब 'भारत' से ही संभव है

राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् (एनसीईआरटी) द्वारा गठित उच्च स्तरीय समिति की ओर से सभी स्कूली कक्षाओं में 'इंडिया' की जगह 'भारत' शब्द के इस्तेमाल की सिफारिश स्वागत-योग्य है। हर राष्ट्र को अधिकार है कि वह अपने गौरव को तलाशे और उसे जिए। यूं तो हमारे देश के कई नाम प्रचलन में हैं / रहे हैं - भरतखंड, मेलुहा, अजनाभवर्ष, आर्यावर्त, जंबूद्वीप, हिंदुस्तान, इंडिया ... लेकिन 'भारत' ही वह नाम है, जिसमें सर्वाधिक अपनत्व है और यह हमारे राष्ट्रीय गौरव को पूर्णत: अभिव्यक्त करता है। इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि अन्य नाम कमतर हैं।

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इन दिनों 'इंडिया' बनाम 'भारत' को लेकर 'बुद्धिजीवियों' के बीच जो 'खींचतान' चल रही है, वह ग़ैर-ज़रूरी है। 'इंडिया' नाम अंग्रेज़ों के आगमन के बाद प्रचलित हुआ था। अन्य नामों के साथ देशवासियों ने इसे भी खुले हृदय से स्वीकारा। महान क्रांतिकारियों, स्वतंत्रता सेनानियों की अंग्रेज़ी में लिखीं चिट्ठियों में 'इंडिया' नाम मिलता है। आज उच्चतम न्यायालय, तीनों सेनाओं, रिजर्व बैंक, करेंसी नोटों, प्रशासनिक सेवाओं, रेलवे ... सबके नामों में 'इंडिया' है।

अगर सरकारी वेबसाइटों को देखें तो उनके आखिर में 'डॉट इन' मिलता है, जो 'इंडिया' को प्रदर्शित करता है। खेल जगत में भी टीम 'इंडिया' का बोलबाला है। दुनिया में लोग हमारे देश को 'इंडिया' नाम से ही ज्यादा जानते हैं। अंतरराष्ट्रीय विमान सेवाओं की उड़ानों में यही नाम प्रचलित है। इसलिए यह कहना तर्कसंगत नहीं है कि 'इंडिया' नाम को रातोंरात हटा दिया जाएगा। न तो ऐसा संभव है और न ऐसा करने की ज़रूरत है। हां, 'इंडिया' हमारे देश का एक नाम है। इससे इन्कार नहीं किया जा सकता।

जब प्रश्न हमारी सांस्कृतिक चेतना का हो, राष्ट्र-जागरण का हो, ज्ञान के भारतीयकरण का हो तो यह सब 'भारत' से ही संभव है। इसके लिए 'भारत' नाम के प्रचलन को बढ़ावा देना चाहिए। यह कार्य धीरे-धीरे होना चाहिए। आज जो बच्चे अपनी स्कूली किताबों में 'भारत' पढ़ेंगे, वे भविष्य में 'भारत' लिखेंगे और बोलेंगे। इससे 'इंडिया' नाम के साथ टकराव कहां सिद्ध हुआ? हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि 'भारत' नाम 'इंडिया' से कहीं ज्यादा पुराना है। इसमें भी विशेष बात यह कि 'भारत' नाम 'भारतवासियों' ने दिया, इसे अपनाया और जिया। यह नाम अंग्रेज़ों के आने से पहले भी सदियों-सदियों से प्रचलित था। 'इंडिया' नाम का ऐसा कोई प्राचीन इतिहास नहीं है।

यह हमें ब्रिटिश उपनिवेश काल में मिला था, जो बाद में तेजी से प्रचलित हुआ। अगर आज हमारा देश आत्म-गौरव की जड़ों को ढूंढ़ने, उन्हें सींचने के लिए 'भारत' नाम को बढ़ावा दे रहा है तो इसमें कुछ भी अनुचित नहीं है। बल्कि यह काम तो बहुत पहले हो जाना चाहिए था। हमें शिक्षा का भारतीयकरण भी करना होगा। उन नायकों/ नायिकाओं, बलिदानियों को सम्मान देना होगा, जिनकी इतिहास के लेखकों ने 'किसी कारणवश' उपेक्षा की थी। हमें युवाओं में इस बात की जागृति पैदा करनी होगी कि 'भारत' न तो वर्ष 1947 में जन्मा था और न इसका इतिहास सिर्फ अंग्रेजों व मुगलों तक सीमित है। भारत युगों-युगों से है। प्राय: यह भ्रम फैलाया जाता है कि अंग्रेज, मुगल और अन्य आक्रांता यहां सुधार करने तथा कला-संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए आए थे। ये जिन देशों से आए थे, उनकी स्थापत्य कला ही इस बात की पोल खोल देती है।

भारत में प्राचीन काल में चट्टानों को काटकर जिस तरह सुंदर प्रतिमाओं, मंदिरों, जलाशयों आदि का निर्माण किया गया, उन देशों में वैसा उत्कृष्ट उदाहरण नहीं मिलता। उन्होंने अपने शासन को मजबूत बनाने के लिए कुछ ऐसे कदम ज़रूर उठाए, जिन्हें इतिहासकार 'सुधार' बताते हैं, लेकिन उसके पीछे उन (शासकों) का उद्देश्य अपनी गद्दी को सुरक्षित करना ही था। उस काल खंड में हमने जो वैभव खोया, उसकी पुन: स्थापना के लिए बहुत प्रयास करने होंगे। 'भारत' इसी का 'जयघोष' है।

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