अफ्रीका बदहाल, चीन मालामाल

विदेश मंत्री एस जयशंकर के एक साक्षात्कार की अफ्रीका में काफी चर्चा है

अफ्रीका बदहाल, चीन मालामाल

सोशल मीडिया के जमाने में चीन के लिए असलियत दबाकर रखना आसान नहीं है

अफ्रीका में चीनी कंपनियों के 'कारनामों' के बाद वहां जिस तरह आक्रोश बढ़ता जा रहा है, वह स्वाभाविक है। यह विडंबना ही है कि ये देश खनिज संपदा से संपन्न होने के बावजूद आर्थिक बदहाली से जूझ रहे हैं। मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रही जनता के कदमों तले अरबों डॉलर के खनिज भंडार हैं, लेकिन वे उनके काम नहीं आ रहे हैं। 

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यहां अशिक्षा, महंगाई, बेरोजगारी, ड्रग्स के जंजाल, अपराध और सरकारी मशीनरी की नाकामी का जिसने जमकर फायदा उठाया, वह है- चीन। उसकी कई कंपनियां अफ्रीका में खूब चांदी कूट रही हैं। ये कंपनियां दिन-रात खनन के बाद अपनी जेबें तो भर रही हैं, लेकिन स्थानीय लोगों के हिस्से में कुछ खास नहीं आ रहा है। बहुत हुआ तो कुछ लोगों को नौकरी दे दी, लेकिन बड़े पदों पर चीनी ही बैठे हैं। 

सोशल मीडिया के जमाने में चीन के लिए असलियत दबाकर रखना आसान नहीं है, इसलिए देर-सबेर स्थानीय लोगों का आक्रोश और भड़केगा। हाल में इन देशों में जिस तरह चीनियों के खिलाफ माहौल बना है, वह किसी एक दिन का नतीजा नहीं है। कहीं चीनी लोगों पर हमले हो रहे हैं, तो कहीं स्थानीय लोग चीनी कंपनियों को मिले खनन के ठेकों को अदालतों में चुनौती दे रहे हैं। 

चीन जानता है कि जिस तरह लोगों के मन में आक्रोश उबाल मार रहा है, उससे भविष्य में हालात बिगड़ सकते हैं। इसलिए लोकदिखावे के लिए ऐसी योजनाएं चला रहा है, जिससे बता सके कि वह सिर्फ व्यापार करना नहीं, बल्कि उनकी 'फिक्र' करना भी जानता है। इन योजनाओं का लाभ कितने लोगों को मिला, इसका कोई स्पष्ट रिकॉर्ड नहीं है, लेकिन चीनी मीडिया अपनी सरकार के खूब गुणगान कर रहा है।

घाना में चीनी कंपनियां पर्यावरण की सुरक्षा संबंधी नियमों को दरकिनार कर जिस तरह सोने की खदानों में खनन कर रही हैं, उससे विशेषज्ञ चिंतित हैं। वहीं, अंगोला के कुछ इलाकों में इतने चीनी रहने लगे हैं कि स्थानीय लोगों को अपनी पहचान खत्म होने का डर सता रहा है। वहां रेलवे स्टेशन से लेकर आम बाजारों तक में चीनी काम कर रहे हैं।

प्राय: स्थानीय लोगों के साथ उनका बर्ताव गरिमापूर्ण नहीं होता। ऐसे में अन्य देश भी इस बात को लेकर चिंतित हैं कि कहीं वे अपने ही घर में 'पराए' तो नहीं हो जाएंगे! चूंकि जिस तरह चीन अपनी विशाल आबादी को अफ्रीका में कॉलोनियां बनाकर बसा रहा है, उससे स्थानीय संस्कृति, भाषा, रोजगार और संसाधनों पर असर पड़ रहा है। 

प्राय: चीनी नागरिकों के बारे में अफ्रीका में यह कहा जाता है कि ये यहां 'मित्र' बनकर नहीं, बल्कि 'मालिक' बनकर आते हैं। उनकी नजर प्राकृतिक संसाधनों पर होती है, जिनका बेतहाशा दोहन करते हैं। चीन का एक और बड़ा हथियार 'ब्याज' है। वह इन देशों में सरकारी मशीनरी की अकुशलता का फायदा उठाते हुए खूब कर्ज देता है, जिसकी ब्याज दर काफी ऊंची होती है। इन समझौतों की शर्तें सार्वजनिक नहीं की जातीं। इसके बदले ब्याज पर ब्याज वसूला जाता है। 

स्थानीय लोगों को आशंका है कि चीन इस हथकंडे के जरिए कई इलाकों पर अपने मालिकाना हक का दावा कर सकता है। चीनियों के साथ एक और बड़ी समस्या यह है कि वे स्थानीय लोगों की आस्था और खानपान संबंधी आदतों पर अपनी शर्तें थोपते हैं। जहां चीनी बड़ी तादाद में रहते हैं, वहां एक अलग कॉलोनी बना लेते हैं। उधर किसी स्थानीय व्यक्ति के आने पर पाबंदी रहती है। इसके अलावा जिन सरकारों को चीन ने भारी-भरकम कर्ज दे रखा है, उनकी पुलिस चीनियों के सामने खुद को बेबस महसूस करती है। 

ऐसे कई वीडियो वायरल हो चुके हैं, जिनमें चीनी लोग स्थानीय पुलिसकर्मियों से बदसलूकी करते नजर आए। वहीं, हाल में जी20 शिखर सम्मेलन में भारत ने जिस तरह ग्लोबल साउथ की आवाज उठाकर अफ्रीका को महत्त्व दिया, उससे नए समीकरण बन सकते हैं। अफ्रीकी लोगों को भारत में अपना सच्चा मित्र नजर आ रहा है। 

विदेश मंत्री एस जयशंकर के एक साक्षात्कार की अफ्रीका में काफी चर्चा है, जिसमें उन्होंने कहा था कि पश्चिमी देश अफ्रीकी और एशियाई देशों के बाजारों में सस्ता माल नहीं भर रहे हैं। उनका इशारा चीन की ओर था, जिसकी कंपनियों ने 'सस्ता, सुंदर और घटिया' की तर्ज पर अपना माल अफ्रीका में खपाकर कई लोगों के रोजगार खत्म कर दिए।

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