यह बोझ भारत क्यों उठाए?
अवैध प्रवासियों को देश से निकाला जाए
अब भारत उनका बोझ बर्दाश्त नहीं कर सकता
उत्तर प्रदेश सरकार ने अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्या और बांग्लादेशी प्रवासियों के खिलाफ अभियान चलाकर दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाई है। इसके तहत कई जिलों में पुलिस और खुफिया इकाइयां गहन सत्यापन कर रही हैं। अगर अन्य राज्यों की सरकारें भी इसी तर्ज पर कार्रवाई करें तो कोई अवैध प्रवासी हमारे देश में रहने का दुस्साहस नहीं कर सकता। सरकारों के पास संसाधनों की कमी नहीं है। पुलिस और खुफिया इकाइयां बहुत आसानी से अवैध प्रवासियों का पता लगा सकती हैं। बस, इच्छाशक्ति की जरूरत है। अगर कोई सरकार मजबूती से फैसला कर ले तो नागरिक ही उसके लिए आंख-कान बन जाएंगे। वे संदिग्ध अवैध प्रवासियों की सूचना दे देंगे। अब तो मोबाइल फोन और सोशल मीडिया जैसे माध्यम हैं, जिनका इस्तेमाल करते हुए कोई जागरूक नागरिक आसानी से सूचना दे सकता है, जिसके बाद तुरंत कार्रवाई हो सकती है। घुसपैठियों को बचकर भागने का मौका नहीं मिलना चाहिए। उन तक यह संदेश पहुंचना चाहिए कि भारत में कानून का शासन है। यहां कोई विदेशी नागरिक अवैध तरीके से प्रवेश कर मनमर्जी से नहीं रह सकता। अगर वह अपराध करेगा तो सजा मिलेगी। धर-पकड़ की इस कार्रवाई में खुफिया इकाइयों और आम नागरिकों का ज्यादा से ज्यादा सहयोग लिया जाए। गांवों में तो ऐसे लोगों का पता लगाना आसान होता है, क्योंकि आबादी कम होती है। वहां ज्यादातर लोग एक-दूसरे को पहचानते हैं। बड़े शहरों में दिक्कत होती है। वहां लोग सुबह काम पर जाते हैं और रात को घर लौटते हैं। उन्हें अपने पड़ोसी के बारे में ही ज्यादा पता नहीं होता!
राज्य स्तर पर एक ऐसा फोन नंबर होना चाहिए, जिस पर कोई भी व्यक्ति अवैध प्रवासियों की सूचना दे और उसका नाम गुप्त रखा जाए। यह नंबर सोशल मीडिया पर डालने के बाद आम नागरिकों तक आसानी से पहुंच जाएगा। नागरिकों को अवैध प्रवासियों की पहचान करने के लिए सामान्य जानकारी दी जाए। उन्हें यह जरूर बताया जाए कि आपका काम सिर्फ सूचना देना है, बाकी काम सरकार का है, लिहाजा किसी तरह का टकराव नहीं होना चाहिए। अवैध प्रवासी कहां रहते हैं, किन क्षेत्रों में काम करते हैं, उन्हें नौकरी कौन देता है, वे फर्जी दस्तावेज कहां से बनवाते हैं, वे रोजमर्रा की जरूरतों के लिए चीजें कहां से खरीदते हैं, किन इलाकों में अचानक अनजान चेहरे दिखाई दे रहे हैं, कहां झुग्गियां खड़ी की जा रही हैं - इन सभी सवालों को ध्यान में रखते हुए रणनीति बनाई जाए। किराएदारों का सत्यापन जरूर होना चाहिए। पूर्व में ऐसी शिकायतें मिली हैं कि कुछ ठेकेदार अवैध प्रवासियों से मजदूर के तौर पर काम करवाते हैं। इस तरह वे स्थानीय मजदूरों का हक मारते हैं। जहां कहीं ऐसे इलाके हों, वहां सत्यापन होना चाहिए। भारतीय नागरिकों को ही काम मिलना चाहिए। इस संबंध में उच्चतम न्यायालय ने भी चिंता जताते हुए सख्त टिप्पणी की है- 'क्या घुसपैठियों के स्वागत के लिए रेड कार्पेट बिछाना चाहिए?' इस सवाल का जवाब उन कथित बुद्धिजीवियों के पास नहीं है, जो रोहिंग्या और अवैध बांग्लादेशियों के लिए बेहतर जीवन स्तर की मांग करते हुए न्यायालय का द्वार खटखटा देते हैं। भारत में करोड़ों लोग बुनियादी जरूरतें पूरी करने के लिए बहुत संघर्ष कर रहे हैं। ऐसे में देश के संसाधन उन पर खर्च होने चाहिएं या घुसपैठियों के आराम का ध्यान रखना चाहिए? सरकारें सख्ती बरतें और तमाम घुसपैठियों को उनके मुल्क का रास्ता दिखाएं। अब भारत उनका बोझ बर्दाश्त नहीं कर सकता।

