इंद्रियों का असंयम जीवन में पतन का मार्ग है: आचार्य प्रभाकरसूरी
प्रमाद के पांच भेद हैं, इनमें मद्य, विषय, कषाय, निद्रा व विकया शामिल हैं
व्यसनी व्यक्ति अच्छी तरह से धर्म साधना नहीं कर सकता
बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के महालक्ष्मी लेआउट स्थित चिंतामणि पार्श्वनाथ जैन मंदिर में चातुर्मासार्थ विराजित आचार्यश्री प्रभाकरसूरीश्वरजी ने अपने प्रवचन में कहा आत्म साधना के मार्ग में आगे बढ़ने के लिए प्रमाद सबसे बड़ा शत्रु है। प्रमादी व्यक्ति जीवन में धर्म साधना नहीं कर सकता। प्रमाद में व्यक्ति अपना अमूल्य समय गंवा देता है। प्रमाद के पांच भेद हैं, इनमें मद्य, विषय, कषाय, निद्रा व विकया शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि मद्य, शराब आदि का व्यसनी व्यक्ति अच्छी तरह से धर्म साधना नहीं कर सकता। नशे वाला व्यक्ति जिनवाणी नहीं सुन सकता। पांच इंद्रियों के विषय में शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श के प्रति जो आसक्त है वह धर्माराधना नहीं कर सकता।उन्होंने कहा कि इंद्रियों का असंयम पतन का मार्ग है। इनके संयम से उत्थान संभव है। इंद्रियों की पराधीनता हमें धर्म श्रवण व धर्म आचरण से वंचित रख सकती है। कषाय, क्रोध, मान, माया व लोभ के रूप में आत्म धन को लूटते हैं। स्वतंत्र रूप से भी धर्म श्रवण व आचरण में बाधक हैं। निद्रा हमारे अमूल्य समय को खा जाती है। यद्यपि दर्शनावरणीय कर्म के उदय के कारण नींद आती है फिर भी कर्म व पुरुषार्थ के जरिए उसे कम किया जा सकता है। किसी ने ठीक ही कहा है कि आहार व निंद्रा बढ़ाने से बढ़ते हैं और घटाने से घटते हैं।
जयंतीलाल श्री श्रीमाल ने बताया कि गोड़वाड़ भवन के प्रमुख कुमारपाल सिसोदिया ने आचार्य व साध्वियों के दर्शन किए। सभा में मुनिश्री महापद्मविजयजी, पद्मविजयजी, साध्वी तत्वत्रयाश्रीजी, गोयमरत्नाश्रीजी व परमप्रज्ञाश्रीजी उपस्थित थे।


