पश्चिम बंगाल में ध्रुवीकरण का दांव

कुछ लोग एक विदेशी आक्रांता का इतना महिमा-मंडन कर रहे हैं!

पश्चिम बंगाल में ध्रुवीकरण का दांव

बाबर ने हमारे पूर्वजों का लहू बहाया था

तृणमूल कांग्रेस (तृणकां) से निलंबित विधायक हुमायूं कबीर द्वारा पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के रेजीनगर में बाबरी मस्जिद के मॉडल पर आधारित मस्जिद का शिलान्यास किए जाने की घटना से राज्य में धार्मिक ध्रुवीकरण बढ़ सकता है। सोशल मीडिया के जमाने में ऐसी घटनाओं का असर किसी खास इलाके तक सीमित नहीं रहेगा। बंगाल रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद, महर्षि अरविंद, सुभाष चंद्र बोस, रवींद्रनाथ टैगोर जैसे महापुरुषों की भूमि है। यहां ऐसे दार्शनिक, क्रांतिकारी और सुधारक पैदा हुए, जिन्होंने देश को एकजुट किया था। अब प. बंगाल में कुछ राजनेता क्या कर रहे हैं? वे क्या संदेश देना चाहते हैं? भारत सद्भाव और शांति का देश है। यहां हर धर्म के प्रार्थना स्थल हैं। उनका पूरा सम्मान है। लोग मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे में जाते हैं। इस पर किसी को आपत्ति नहीं है। हर नागरिक को अपनी आस्था के अनुसार धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता है। समस्या तब पैदा होती है, जब कोई व्यक्ति आस्था के नाम पर समाज को बांटने की कोशिश करता है। हुमायूं कबीर मस्जिद बनाना चाहते हैं, जरूर बनाएं। क्या वे नहीं जानते कि बाबरी की तर्ज पर मस्जिद बनाने और 6 दिसंबर को माहौल गरमाते हुए उसकी नींव रखने से लोगों पर क्या असर होगा? बाबरी मस्जिद-श्रीराम जन्मभूमि मामले में निचली अदालत से लेकर उच्चतम न्यायालय तक खूब बहसें हुई थीं, एक-एक सबूत को चुनौती दी गई थी। अनगिनत दलीलों की जांच-परख करने के बाद फैसला श्रीराम जन्मभूमि के पक्ष में आया था। उसमें गलती की कहीं गुंजाइश ही नहीं रही। समस्त देशवासियों को खुले दिल से वह फैसला मानना चाहिए और आगे बढ़ना चाहिए।

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यह भी ताज्जुब की बात है कि कुछ लोग एक विदेशी आक्रांता का इतना महिमा-मंडन कर रहे हैं! बाबर ने हमारे पूर्वजों का लहू बहाया था, लोगों के घर उजाड़े थे। उसने हमारे आराध्य भगवान श्रीराम का मंदिर तोड़ा था। मुगल काल में एक नहीं, हजारों मंदिरों को निशाना बनाया गया था। बाबर और उसके वंशजों की क्रूरता के निशान आज भी मौजूद हैं। बेहतर तो यह होता कि आज़ादी के बाद बाबर के कुकृत्यों की एक स्वर में कड़ी निंदा की जाती और पूरा देश श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर बनाता। अदालतों के चक्कर लगाने की नौबत ही नहीं आनी चाहिए थी। उससे पूरी दुनिया हमारी एकता देखती। श्रीराम जन्मभूमि की वास्तविकता को स्वीकार करने की जगह कुछ लोग अभी भी अवैज्ञानिक एवं आधारहीन बातें कर रहे हैं। उन्होंने उच्चतम न्यायालय का फैसला नहीं पढ़ा, लेकिन कुतर्क देते हैं, जिद करते हैं। हुमायूं कबीर जैसे नेता उनमें अपना वोटबैंक देखते हैं। प. बंगाल के इन विधायक को दो दिन पहले कितने लोग जानते थे? अब ये सोशल मीडिया पर वायरल हैं। इनके कहने पर हजारों लोग ईंट, सीमेंट, निर्माण सामग्री लेकर आ गए; नोटों का ढेर लगा दिया। प. बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। अगर हुमायूं कबीर धार्मिक ध्रुवीकरण का दांव खेलते हुए अपनी पार्टी बनाते हैं तो तृणकां के वोटबैंक में सेंध लगा सकते हैं। हालांकि इस घटना को सिर्फ चुनावी राजनीति के नजरिए से नहीं देखना चाहिए। जब सोशल मीडिया पर तीखी बयानबाजी के वीडियो वायरल होंगे तो सामुदायिक सद्भाव और शांति को नुकसान होगा। जवाब में, अन्य संगठन / नेतागण बयान देंगे, जिससे माहौल में और तनाव बढ़ेगा। इससे क्या हासिल होगा? शिक्षा, रोजगार, चिकित्सा, आवास, स्वच्छता, परिवहन समेत दर्जनों मुद्दे दब जाएंगे। बस, एक ही मुद्दा हावी रहेगा। ऐसे माहौल में कौन फायदा उठाएगा? क्या इससे जनता का भला होगा? इतिहास उठाकर देख लें, सांप्रदायिक ताकतें देश और समाज को नुकसान ही पहुंचाती हैं। इनके उकसावे से सावधान रहें। भारत की एकता किसी भी राजनेता की कुर्सी से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है।

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