संप्रदायों की बातों से समाज हो रहा कमज़ोर: आचार्य विमलसागरसूरीश्वर
समाजोपयोगी अनेक ज्वलंत विषयों पर चर्चा की
व्यक्तिगत बुद्धि, शक्ति, संपत्ति और सफलताएं महत्त्वपूर्ण नहीं होतीं
गदग/दक्षिण भारत। रविवार को स्थानीय जीरावला पार्श्वनाथ सभागृह में राजस्थान जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ के तत्वावधान में चल रहे चौथे जागरण सेमिनार को संबोधित करते हुए जैनाचार्य विमलसागरसूरीजी ने समाजोपयोगी अनेक ज्वलंत विषयों की तलस्पर्शी चर्चा की।
आचार्यश्री ने कहा कि हजारों साधु-संतों और लाखों पढ़े-लिखे सफल लोगों की उपस्थिति के बावजूद विघटनकारी शक्तियां समाज का सर्वनाश कर रही है और शालीन समाज बिखरकर कुरीतियों की गर्त में उतरता जा रहा है। प्रतिदिन समाज में नाना प्रकार की दुर्घटनाएं घटती जा रही हैं। समस्याओं के रोने सभी रोते हैं, पर उनके ठोस उपाय तलाशकर उन्हें लागू नहीं किया जा रहा।इसका यही अर्थ हैं कि साधु-संतों और समाज के वरिष्ठ लोगों की मानसिकता विभक्त हैं। या तो उनके पास सही दृष्टिकोण नहीं है अथवा वे समस्याओं से बेपरवाह हैं। सभी को यह याद रखना चाहिए कि व्यक्तिगत बुद्धि, शक्ति, संपत्ति और सफलताएं महत्वपूर्ण नहीं होती, वे जब समाज के हित में काम में आती हैं तो सार्थक बनती हैं।
आचार्य विमलसागरसूरीश्वर ने कहा कि समाज को बिखरने से बचाने और सुदृढ बनाने के लिये उसे आपसी सद्भाव, सामंजस्य और संगठन की बातें ही सिखाई जानी चाहिए। अब विघटन और वैनस्य की बातें सिखाकर समाज का कल्याण नहीं हो सकता। ऐसी बातों से सभी पंथ-संप्रदायों का अहित ही होगा। साधु-संतों और समाज के पदाधिकारियों को अपने भ्रम मिटाने की जरूरत है। नायक होने के नाते वे समाज को जो शिक्षा देते हैं, समाज उसी रास्ते पर गति करता है।
संघ के अध्यक्ष पंकज बाफना ने बताया कि लाभार्थियों ने दीप प्रज्वलन कर सेमिनार का शुभारंभ किया। समारोह में जीरावला पार्श्वनाथ सभागृह के लाभार्थी तुलसीबाई छोगमल गादिया परिवार का संघ की ओर से सम्मान किया गया।
सचिव हरीश गादिया ने बताया कि यहां प्रारंभ हुए सामूहिक तपोत्सव में सैकड़ों साधकों ने रविवार को आठ उपवास की साधना के संकल्प लिये। गणि पद्मविमलसागरजी ने सभी को प्रतिज्ञा देकर उनके लिए स्तोत्र व मंत्रपाठ किए।
संघ के कोषाध्यक्ष निर्मल पारेख ने जानकारी दी कि रविवार को गुर्जर बस्ती स्थित कच्छी दशा ओसवाल समाज के एक सौ दस वर्ष प्राचीन चिंतामणि पार्श्वनाथ जिनालय का ध्वजारोहण गणि पद्मविमलसागरजी के सान्निध्य में हर्ष-उल्लास और विधि-विधान पूर्वक संपन्न हुआ। इसके लिए अठारह अभिषेक के पश्चात सत्तरभेदी पूजा रचाई गई।


