उच्चतम न्यायालय ने जस्टिस वर्मा की याचिका खारिज की
कहा- 'आचरण विश्वास पैदा नहीं करता'
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नई दिल्ली/दक्षिण भारत। उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें नकदी बरामदगी मामले में उन्हें कदाचार का दोषी पाए जाने वाली आंतरिक जांच रिपोर्ट को अमान्य करने की मांग की गई थी।
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति एजी मसीह की पीठ ने कहा कि न्यायमूर्ति वर्मा का आचरण विश्वास पैदा नहीं करता है और उनकी याचिका पर विचार नहीं किया जाना चाहिए।यह न्यायमूर्ति वर्मा के लिए बड़ी निराशा की बात है, जो मार्च से विवादों के केंद्र में हैं, जब दिल्ली में उनके आधिकारिक आवास के स्टोर रूम में आग लगने के बाद बड़ी मात्रा में अधजली नकदी मिली थी।
न्यायमूर्ति वर्मा ने भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की 8 मई की सिफारिश को भी रद्द करने की मांग की थी, जिसमें संसद से उनके खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने का आग्रह किया गया था।
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि तत्कालीन सीजेआई और आंतरिक समिति ने वीडियो फुटेज और फोटो अपलोड करने के अलावा अन्य प्रक्रिया का पूरी ईमानदारी से पालन किया।
न्यायमूर्ति दत्ता ने फैसला पढ़ते हुए कहा, 'हमने माना है कि प्रक्रिया के अनुसार ऐसा करना आवश्यक नहीं था। लेकिन ऐसा कहने के बाद, हमने यह भी माना है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि उपयुक्त समय पर आपने इस पर सवाल नहीं उठाया। और जहां तक अपलोडिंग का सवाल है, रिट याचिका में किसी राहत का दावा भी नहीं किया गया है।'
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि आंतरिक प्रक्रिया और तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश द्वारा नियुक्त न्यायाधीश समिति ने निर्धारित प्रक्रिया का पालन किया तथा उन्हें हटाने की सिफारिश के साथ प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेजना असंवैधानिक नहीं था।
पीठ ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय की आंतरिक प्रक्रिया को कानूनी मान्यता प्राप्त है और यह संवैधानिक ढांचे से बाहर कोई समानांतर तंत्र नहीं है।
न्यायालय ने यह भी पाया कि न्यायमूर्ति वर्मा के मौलिक अधिकारों का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है।
न्यायालय ने न्यायमूर्ति वर्मा को उनके विरुद्ध शुरू की गई किसी भी महाभियोग कार्यवाही में अपनी बात रखने की स्वतंत्रता प्रदान की।
शीर्ष न्यायालय ने इससे पहले न्यायमूर्ति वर्मा से कहा था कि उनका आचरण विश्वास पैदा करने वाला नहीं है और साथ ही किसी भी न्यायिक कदाचार पर कार्रवाई करने के सीजेआई के अधिकार का बचाव करते हुए कहा था कि वे महज एक डाकघर नहीं हो सकते, बल्कि राष्ट्र के प्रति उनके कुछ कर्तव्य हैं।


