वीरगाथा: पाठ्यक्रम में योद्धाओं का सम्मान

योद्धाओं के बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता

वीरगाथा: पाठ्यक्रम में योद्धाओं का सम्मान

कुछ इतिहासकारों ने पक्षपातपूर्ण लेखन किया

एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम में फील्ड मार्शल मानेकशॉ, मेजर सोमनाथ शर्मा, ब्रिगेडियर उस्मान जैसे महान योद्धाओं पर आधारित अध्यायों को शामिल किए जाने का फैसला सराहनीय है। इससे विद्यार्थियों में साहस और कर्तव्य की भावना पैदा होगी। उन्हें मालूम होगा कि जो आज़ादी हमें मिली है, उसे कायम रखने के लिए अनेक योद्धाओं ने बलिदान दिए हैं। इस देश की अखंडता की रक्षा के लिए अनेक सैनिक विकट परिस्थितियों में हमेशा तैनात रहते हैं। कुछ इतिहासकारों ने पक्षपातपूर्ण लेखन कर विदेशी आक्रांताओं को महान घोषित कर दिया। उन्होंने भारतीय योद्धाओं की उपेक्षा करते हुए विद्यार्थियों के मन में यह बात बैठाने की कोशिश की कि 'हम तो सदैव हारते रहे हैं, बाहर से जो भी हमलावर यहां आया, वह हुकूमत करता रहा।' इससे विद्यार्थियों के मन पर कैसा असर होता है? क्या यह पढ़कर वे शक्ति और साहस के धनी बन सकेंगे? विद्यार्थियों को चाहिए कि वे जुआ, सट्टा और अमर्यादित जीवन जीने की सीख देने वाले कथित सेलिब्रिटी के बजाय भारत के उन योद्धाओं को अपना आदर्श मानें, जिन्होंने देश के लिए बड़े बलिदान दिए हैं। आज कितने नौजवान हैं, जो मेजर सोमनाथ शर्मा के बारे में जानते हैं? उन्होंने वर्ष 1947 में पाकिस्तान द्वारा किए गए हमले में दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब दिया था। आज जम्मू-कश्मीर पर तिरंगा लहरा रहा है, तो इसका श्रेय मेजर सोमनाथ शर्मा और उन सभी त्यागी एवं बलिदानी योद्धाओं को देना चाहिए, जो अपनी जान की परवाह न करते हुए रणभूमि में कूद पड़े थे। अब फील्ड मार्शल मानेकशॉ के बारे में बहुत लोग जानते हैं। इसकी एक वजह उनके जीवन पर बनी फिल्में हैं। उनके भाषण सोशल मीडिया पर सुने जाते हैं। वे बहादुर योद्धा तो थे ही, अद्भुत रणनीतिकार भी थे। उनके नेतृत्व में सेवाएं दे चुके सैनिक बताते हैं कि उन्हें सुनकर मन में ऐसा जोश उमड़ता था कि हम बड़े से बड़े दुश्मन को शिकस्त दे सकते हैं।

Dakshin Bharat at Google News
ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान के बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता। वे वीरता के साथ ही मानवता की मिसाल थे। उन्हें नौशेरा के शेर के नाम से जाना जाता था। जब उनकी उम्र सिर्फ 12 साल थी, तो एक बच्चा कुएं में गिर गया था। उसे बचाने के लिए उस्मान ने छलांग लगा दी और सुरक्षित निकाल लाए थे। जब विद्यार्थी इस घटना के बारे में पढ़ेंगे तो उनमें अपने देशवासियों की मदद करने की भावना पैदा होगी। उस्मान सेना में भर्ती होना चाहते थे। उन्हें बलोच रेजिमेंट में तैनात किया गया था। भारत-पाक बंटवारे के दौरान पाकिस्तानी नेताओं ने उन्हें ऊंचे ओहदे जैसे कई प्रलोभन देकर बुलाना चाहा, लेकिन उस्मान ने उनके प्रस्ताव ठुकरा दिए थे। इसके बाद उस्मान डोगरा रेजिमेंट में आ गए थे। नफरत की आग में जल रहा पाकिस्तान किसी भी कीमत पर जम्मू-कश्मीर को हड़पना चाहता था। उसने घुसपैठियों के साथ खुद की फौज को भी लूटमार और कत्ले-आम करने के लिए भेजा था। जब ब्रिगेडियर उस्मान और उनके साथियों ने मोर्चा संभाला तो दुश्मन के कई जवानों को मार गिराया था। इससे पाकिस्तानी जनरल भड़क उठे थे। उनके इरादों के सामने ब्रिगेडियर उस्मान मजबूत दीवार बनकर खड़े थे। दुश्मन फौज ने उन पर 50 हजार रुपए का इनाम तक घोषित कर दिया था, जो उस समय बहुत बड़ी रकम होती थी। उस्मान 3 जुलाई, 1948 को जब शहीद हुए तो अपने जवानों को यह कहते हुए आखिरी सांस ली कि 'हम तो जा रहे हैं, लेकिन जमीन के एक भी टुकड़े पर दुश्मन का कब्जा न हो पाए।' बहुत कम लोगों को इस बात का पता होगा कि ब्रिगेडियर उस्मान अपनी कमाई का एक हिस्सा अनाथ और जरूरतमंद बच्चों की शिक्षा पर खर्च करते थे। ऐसे बलिदानी हमारे देश के सच्चे नायक हैं, जिनसे सबको शिक्षा लेनी चाहिए।

About The Author

Dakshin Bharat Android App Download
Dakshin Bharat iOS App Download