संतों के गुण स्मरण करने से होता है पुण्यों का उपार्जन: संत ज्ञानमुनि

यलहंका में मनाई गई मरुधर केसरी व रूपमुनि की जयंती

संतों के गुण स्मरण करने से होता है पुण्यों का उपार्जन: संत ज्ञानमुनि

'अगर संत मिलते हैं तो उसका चार गुना फल मिलता है'

बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के यलहंका स्थित सुमतिनाथ जैन संघ के तत्वावधान में चातुर्मासार्थ विराजित संत ज्ञानमुनिजी के सान्निध्य में रविवार को मरुधर केसरी मिश्रीमलजी की 135वीं व लोकमान्य संत रूपचंदजी की 97जयंती व 7वीं पुण्यतिथि मनाई गई। महापुरुषों का गुणगान करते हुए ज्ञानमुनिजी ने कहा कि तीर्थ करने के लिए कोई गंगा जाता है तो कोई चार धाम जाता है। तीर्थ का एक फल मिलता है। लेकिन अगर संत मिलते हैं तो उसका चार गुना फल मिलता है। 

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संत के मिलने से सभी प्रकार की दुविधा दूर हो जाती है। लेकिन अगर सतगुरु मिले तो अनंत फलों की प्राप्ति होती है। कोई मार्ग दिखाने वाला मिल जाए तो सभी प्रकार की दुविधा दूर हो जाती है। ऐसे ही महापुरुषों को आज याद करने का दिन आया है। गुरु के दिखाए मार्गों पर चलने वाला अपने बंध कर्मों से मुक्त हो सकता है। 

मुनिश्री ने कहा कि ऐसे मौके मनुष्य को सही मार्ग दिखाने के लिए ही आते हैं। महापुरुषों ने अपने जीवन में क्या किया है, उसे सुन कर जीवन में बदलाव करना चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य अपने वर्तमान के साथ ही आने वाले भवों को भी सफल बना सकता है। साधु, संत मनुष्य को हर वक्त सही मार्ग दिखाते हैं। अगर उस मार्ग पर चला जाए तो निश्चित ही मनुष्य का कल्याण हो सकता है।

मनुष्य जन्म मिला है तो उसे भजन कीर्तन करके सफल बना लेना चाहिए। गुरुदेवों के स्मरण का जब भी मौका मिले तो उसे सुनकर आत्मसात कर लेना चाहिए। मनुष्य को सही मार्ग पर पहुंचाने के लिए ही महापुरुषों की जयंती मनाई जाती है। ऐसे महान लोगों के बारे में सुनने के लिए भी पुण्यवान होना जरूरी है। 

संतश्री ने कहा कि सभी को याद नहीं किया जाता है अपितु याद उन्हीं को किया जाता है जिनमें कुछ बात होती है। आज मनुष्य सुंदरता में उलझ गया है। लेकिन याद रखना सुंदरता जरूरी नहीं है, बल्कि कर्तव्य जरूरी है। इंसान के तन की सुंदरता का महत्व नहीं है, बल्कि उनके व्यवहार की सुंदरता महत्वपूर्ण होती है। ऐसे लोग जब जाएंगे तो दुनिया उनको याद करेगी। इसलिए हम आज ऐसे महापुरुषों को याद करते हैं। 

इस मौके पर अशोक कुमार बोहरा केजीएफ, उत्तमचंद कोठारी चिक्कबलापुर, उगमराज लुणावत, मानिकचंद खारीवाल, प्रेमचंद कोठारी, नेमीचंद चौरडिया, मंगलचंद मुणोत, मांगीलाल चोरड़िया, जयंतीलाल अखावत, राकेश कोठारी, अल्केश धोका एवं अन्य लोगों की विशेष उपस्थिति रही। सभी का स्वागत संघ के संयोजक नेमीचंद लुकड़ ने किया। महामंत्री मनोहर लाल लुकड़ ने संचालन किया।

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