पाप से बचो, पुण्य कभी भी करवट बदलेगा: आचार्य विमलसागरसूरीश्वर

'दुःख देने से दुःख मिलता है और सुख देने से सुख'

पाप से बचो, पुण्य कभी भी करवट बदलेगा: आचार्य विमलसागरसूरीश्वर

'जो बीज हम बोते हैं, उसी की फसल हम प्राप्त कर सकते हैं'

गदग/दक्षिण भारत। सोमवार को जीरावला पार्श्वनाथ सभागृह में विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए जैनाचार्य विमलसागरसूरीजी ने कहा कि कर्मवाद के सिद्धांत के अनुसार सुख और दुःख किसी के दिए हुए नहीं हैं। वे हमारे ही द्वारा उपार्जित हैं। अतः दुःख के समय दूसरों को दोष देकर हम नए दुःख बढ़ाते हैं, फायदा कुछ भी नहीं होता। 

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आगमशास्त्रों में महावीरस्वामी कहते हैं कि दुःख देने से दुःख मिलता है और सुख देने से सुख। जो बीज हम बोते हैं, उसी की फसल हम प्राप्त कर सकते हैं। सुख पाने के लिए तो सबको सुख देना जरूरी है। दुःख देकर सुख नहीं मिल सकता, इसलिए जो लोग हिंसा, व्यसन, झूठ, चोरी, फिरौती, अपहरण, बलात्कार, हत्या आदि पाप प्रवृत्तियों में अनुरक्त हैं, वे कोई शाश्वत सुख या सुरक्षा की आशा नहीं कर सकते। वे प्रशासन और कानून से बच सकते हैं, कर्मवाद के सिद्धांत से नहीं बच सकते। देरसबेर सबका न्याय होना है। 

आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि भगवान महावीर के विश्वकल्याणकारी सिद्धांतों में कर्मवाद बहुत महत्वपूर्ण है। इसमें अष्टकर्म की तार्किक और रोचक विवेचना हुई है। इन आठ कर्मों के रहस्यों को समझकर कोई भी व्यक्ति अपने जीवन की सभी समस्याओं से छुटकारा पा सकता है। कर्मवाद अंतिम समाधान है। 

सुख को पुण्यकर्म का और दुःख को पापकर्म का प्रतिफल कहा गया है। दोनों ही परिस्थितियां शाश्वत नहीं हैं, लेकिन पुण्य के संबंध में अत्यंत सावधानी बरतने की आवश्यकता है, क्योंकि उसका भंडार कभी भी खाली हो सकता है। इसलिए पुण्य पर गर्व करना निपट अज्ञानता है। पुण्य के उदयकाल में सुख-सुविधाओं और सफलताओं के बीच मनुष्य अक्सर अपना विवेक भूल जाता है। वह उछलने लगता है। 

पुण्य के प्रभाव में हर कोई अपनी वास्तविक हैसियत भूल जाता है। उस काल में ही मनुष्य के पापमार्ग पर आगे बढ़ने की तीव्रतम संभावनाएं रहती हैं। जो पुण्यकाल को पाप प्रवृत्तियों में खर्च कर देते हैं, वे अपना भारी नुकसान करते हैं। एक न एक दिन पुण्य अस्त होता है और वे कंगाल बन जाते हैं। यह जीवन के स्वर्णिम काल को मिट्टी में बरबाद करने की तरह है।

अध्यक्ष पंकज बाफना में बताया कि संघ के तत्वावधान में करीब तीन सौ पचास साधक आठ उपवास से तीस उपवास तक की तप साधना कर रहे हैं। सचिव हरीश गादिया ने बताया कि उत्तर कर्नाटक से प्रतिदिन सैकड़ों लोग वर्षावास के कार्यक्रमों से लाभांवित होने गदग आ रहे हैं।

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