ट्रंप को मोदी की खरी-खरी: भारत अपने किसानों, पशु पालकों .. के हितों के साथ समझौता नहीं करेगा

'व्यक्तिगत रूप से मुझे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी, लेकिन मैं इसके लिए तैयार हूं'

ट्रंप को मोदी की खरी-खरी: भारत अपने किसानों, पशु पालकों .. के हितों के साथ समझौता नहीं करेगा

photo: @narendramodi X account

नई दिल्ली/दक्षिण भारत। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को यहां आईसीएआर पूसा में एमएस स्वामीनाथन शताब्दी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं, जिनका योगदान किसी एक कालखंड तक सीमित नहीं रहता, किसी एक भू-भाग तक सीमित नहीं रहता। प्रो. एम एस स्वामीनाथन ऐसे ही महान वैज्ञानिक थे, मां भारती के सपूत थे।

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प्रधानमंत्री ने कहा कि प्रो. स्वामीनाथन ने विज्ञान को जनसेवा का माध्यम बनाया था। देश की खाद्य सुरक्षा को उन्होंने अपने जीवन का ध्येय बना लिया था। उन्होंने वो चेतना जाग्रत की जो आने वाली कई सदियों तक भारत की नीतियों और प्राथमिकताओं को दिशा देती रहेगी।

प्रधानमंत्री ने कहा कि आज राष्ट्रीय हथकरघा दिवस भी है। पिछले 10 सालों में हथकरघा क्षेत्र को देशभर में नई पहचान और ताकत मिली है। मैं आप सभी को, हथकरघा क्षेत्र से जुड़े लोगों को 'राष्ट्रीय हथकरघा दिवस' की बधाई देता हूं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि प्रो. स्वामीनाथन के साथ मेरा जुड़ाव कई वर्षों पुराना था। गुजरात की पहले की स्थितियां बहुत लोगों को पता है। पहले वहां सूखे और चक्रवात की वजह से कृषि पर काफी सकंट रहता था, कच्छ का रेगिस्तान बढ़ता चला जा रहा था।

प्रधानमंत्री ने कहा कि उसी दौरान हमने मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना पर काम शुरू किया। प्रो. स्वामीनाथन ने उसमें बहुत ज्यादा रुचि दिखाई थी। उन्होंने खुले दिल से हमें सुझाव दिया, हमारा मार्गदर्शन किया था। उनके योगदान से इस पहल को जबरदस्त सफलता भी मिली।

प्रधानमंत्री ने कहा कि वे केवल रिसर्च नहीं करते थे, बल्कि खेती के तौर-तरीके बदलने के लिए किसानों को प्रेरित भी करते थे। आज भी भारत के कृषि क्षेत्र में उनकी एप्रोच, उनके विचार हर तरफ नजर आते हैं। वे सही मायने में मां भारती के रत्न थे।

प्रधानमंत्री ने कहा कि मैं इसे अपना सौभाग्य मानता हूं कि डॉ. स्वामीनाथन को, हमारी सरकार में भारत रत्न से सम्मानित करने का सौभाग्य मिला। डॉ. स्वामीनाथन ने भारत को खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बनाने का अभियान चलाया था, लेकिन उनकी पहचान हरित क्रांति से भी आगे बढ़कर थी। वे खेती में रसायनों के बढ़ते प्रयोग और मोनो कल्चर फार्मिंग के खतरों से किसानों को लगातार जागरूक करते रहे।

प्रधानमंत्री ने कहा कि आज दुनिया भर में जैव विविधता को लेकर चर्चा होती है। इसे सुरक्षित रखने के लिए सरकारें अनेक कदम उठा रही हैं, लेकिन डॉ. स्वामीनाथन ने एक कदम आगे बढ़ते हुए बायो-हैपीनेस का आइडिया दिया था। आज हम यहां इसी आइडिया को सेलिब्रेट कर रहे हैं। डॉ. स्वामीनाथन कहते थे कि जैव विविधता की ताकत से हम स्थानीय लोगों के जीवन में बहुत बड़ा बदलाव ला सकते हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे लिए अपने किसानों का हित सर्वोच्च प्राथमिकता है। भारत अपने किसानों, पशु पालकों और मछुआरे भाई-बहनों के हितों के साथ कभी भी समझौता नहीं करेगा। मैं जानता हूं कि व्यक्तिगत रूप से मुझे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी, लेकिन मैं इसके लिए तैयार हूं। मेरे देश के मछुआरों के लिए, मेरे देश के पशु पालकों के लिए आज भारत तैयार है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि किसानों की आय बढ़ाना, खेती पर खर्च कम करना, आय के नए स्रोत बनाने के लक्ष्यों पर हम लगातार काम कर रहे हैं। हमारी सरकार ने किसानों की ताकत को देश की प्रगति का आधार माना है। इसलिए बीते वर्षों में जो नीतियां बनीं, उनमें सिर्फ मदद नहीं थी, किसानों में भरोसा बढ़ाने का प्रयास भी था। 

प्रधानमंत्री ने कहा कि पीएम किसान सम्मान निधि से मिलने वाली सीधी सहायता ने छोटे किसानों को आत्मबल दिया है। पीएम फसल बीमा योजना ने किसानों को जोखिम से सुरक्षा दी है। सिंचाई से जुड़ीं समस्याओं को पीएम कृषि सिंचाई योजना के माध्यम से दूर किया गया है। 10 हजार एफपीओ के निर्माण ने छोटे किसानों की संगठित शक्ति बढ़ाई है। सहकारी और स्वयंसहायता समूहों को आर्थिक मदद ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई गति दी है। ई-नाम की वजह से किसानों को अपनी उपज बेचने में आसानी हुई है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि हाल में पीएम धन धान्य योजना को भी मंजूरी दी गई है। इसके तहत उन 100 जिलों को चुना गया है, जहां खेती पिछड़ी रही। यहां सुविधाएं पहुंचाकर, किसानों को आर्थिक मदद देकर, खेती में नया भरोसा पैदा किया जा रहा है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि किसानों की आय बढ़ाना, खेती पर खर्च कम करना, आय के नए स्रोत बनाना, इन लक्ष्यों पर हम लगातार काम कर रहे हैं। हमारी सरकार ने किसानों की ताकत को देश की प्रगति का आधार माना है। इसलिए बीते वर्षों में जो नीतियां बनी, उनमें सिर्फ मदद नहीं थी, किसानों में भरोसा बढ़ाने का प्रयास भी था।

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