स्वच्छ ईंधन की क्रांति
उपभोक्ताओं की संख्या में उछाल सराहनीय है
पहले व्यवस्था में बहुत जटिलताएं थीं
पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी द्वारा राज्यसभा में दी गई यह जानकारी कि 'भारत में कुल सक्रिय घरेलू एलपीजी उपभोक्ताओं की संख्या 33.05 करोड़ हो गई है', से पता चलता है कि देश ने स्वच्छ ईंधन के क्षेत्र में बहुत प्रगति की है। एक अप्रैल, 2014 तक यह संख्या सिर्फ 14.51 करोड़ थी! उपभोक्ताओं की संख्या में यह उछाल सराहनीय है, जिसका श्रेय केंद्र सरकार को मिलना चाहिए। यह उपलब्धि इसलिए भी बहुत खास है, क्योंकि 33.05 करोड़ में से 10.33 करोड़ लाभार्थी प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) के हैं। गांव-ढाणियों तक स्वच्छ ईंधन की पहुंच ने लोगों के जीवन को बदला है। नब्बे के दशक तक गांवों में एक-दो घरों में ही गैस सिलेंडर होते थे। परंपरागत ईंधन, जैसे- लकड़ी, कोयला और उपलों का इस्तेमाल ज्यादा होता था। इनसे पैदा होने वाले धुएं से महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याएं होती थीं। यह धुआं पर्यावरण के लिए नुकसानदेह होता था। ईंधन की आपूर्ति के लिए जंगल काटे जाते थे। रसोई गैस ने इन सभी समस्याओं का समाधान कर दिया है। घरेलू एलपीजी उपभोक्ताओं के लिए वितरण और सब्सिडी हस्तांतरण प्रक्रिया को डिजिटल बनाने से क्रांतिकारी बदलाव देखने को मिल रहे हैं। लोगों ने वह ज़माना भी देखा है जब गैस सिलेंडर खत्म होते ही नया सिलेंडर लेने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता था। अत्यधिक साधन संपन्न और रसूख वाले परिवारों के लिए कोई दिक्कत नहीं थी, लेकिन आम आदमी को खाली सिलेंडर लेकर घंटों लाइन में खड़ा रहना पड़ता था। उस दौरान तेज धूप, पीछे से धक्का लगने और पर्याप्त सिलेंडर न होने से झगड़े तक हो जाते थे। जो बच्चे आज ऑनलाइन सिलेंडर बुकिंग और होम डिलिवरी की सुविधा देखते हुए बड़े हो रहे हैं, उन्हें यह जानकर आश्चर्य होगा कि पहले व्यवस्था में कितनी जटिलताएं थीं!
भारत में डिजिटल पेमेंट ने स्वच्छ ईंधन तक लोगों की पहुंच बहुत आसान कर दी है। क्या दो दशक पहले शहरों या गांवों में कोई कल्पना कर सकता था कि सिलेंडर बुक करने की प्रक्रिया इतनी आसान हो जाएगी? उस समय खुले पैसों को लेकर बहुत समस्या होती थी। कई बार तो ऐसा होता था कि ग्राहक का नंबर आ गया, लेकिन खुले पैसे न होने के कारण उसे दूसरी दुकानों के चक्कर लगाने पड़ते थे। अब डिजिटल पेमेंट होने के कारण यह समस्या भी दूर हो गई। धीरे-धीरे ग्रामीण क्षेत्रों में लोग रसोई गैस को प्राथमिकता देने लगे थे, लेकिन सिलेंडर लेने के लिए शहर जाने में उनका आधा दिन बीत जाता था। केंद्र सरकार ने इस समस्या की ओर ध्यान दिया और ग्रामीण क्षेत्रों में कई एजेंसियां स्थापित कीं। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि एक अप्रैल, 2016 से 30 जून, 2025 के बीच देशभर में 7,997 नई एलपीजी एजेंसियां खोली गईं, जिनमें से 7,403 एजेंसियां ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत हैं। इसी तरह, जुलाई 2025 तक देशभर में कुल एलपीजी वितरकों की संख्या 25,573 हो गई है, जिनमें से 17,646 ग्रामीण क्षेत्रों में सेवाएं दे रहे हैं। इससे ग्रामीण परिवार सशक्त हो रहे हैं। गांवों में बरसात के मौसम में महिलाओं को सूखा ईंधन लाने में बहुत संघर्ष करना पड़ता था। हर जगह लकड़ियों की उपलब्धता नहीं होती थी। रेगिस्तानी इलाकों में, जहां पेड़ पहले ही कम हैं, वहां ईंधन के लिए उनकी कटाई पर्यावरण पर बड़ी चोट करती थी। अब राजस्थान में कई-कई बीघा खेत ऐसे देखने को मिल जाएंगे, जहां पहले हर साल पेड़ काटकर लकड़ियां इकट्ठी की जाती थीं, लेकिन अब लकड़ियों की मांग ही नहीं है। यह घरेलू एलपीजी की आसान उपलब्धता के कारण संभव हुआ है। अब केंद्र सरकार को एक कदम और आगे बढ़ाते हुए, हर रसोईघर तक सोलर चूल्हा पहुंचाना चाहिए।

